आधे देश में फिर सूखे के हालात

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तेज बारिश के दौरान पानी सतह से ढाल की ओर बहते हुए चला गया और ज़मीन प्यासी-की-प्यासी ही रह गई। दूसरा हुआ यह कि तेज बारिश ने जल स्रोतों को तुरन्त लबालब तो कर दिया लेकिन धरती अन्दर-ही-अन्दर इस पानी को सोखती रही और जल्दी ही जलाशय रीतने लगे। लगातार धीमी बारिश से धरती संतृप्त होती तो जलाशयों के पानी में उल्लेखनीय गिरावट इतनी जल्दी ही नहीं हो पाती। हालत यह है कि कई बड़े बाँध और जलाशय अभी से खाली होने लगे हैं। यहाँ बीते महीने भर से बरसात नहीं हुई है।

देश के कई हिस्सों में एक बार फिर सूखे के हालात की दस्तक सुनाई देने लगी है। साल-दर-साल सूखे का लगातार सामना कर रहे कुछ राज्यों के लिये तो यह किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। बीते कुछ सालों की तरह ही इस बार भी भारत के कई हिस्सों में अनियमित और कम बारिश ने सूखे के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं।

आँकड़े बताते हैं कि देश के करीब 44 फीसदी हिस्सों में कम बरसात के बाद सूखे के हालात बन रहे हैं। इनमें खासतौर पर उत्तरी भारत का बड़ा हिस्सा शामिल है। छत्तीसगढ़ में 93 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है और मध्य प्रदेश ने भी कुछ तहसीलों को सूखा घोषित करने का मन बना लिया है, जल्दी ही इसकी घोषणा हो जाएगी।

मौसम विभाग के मुताबिक़ मानसून खत्म हो चुका है लेकिन अब तक देश के मात्र 50 फीसदी हिस्से में ही औसत बारिश हो सकी है। साफ़ है कि वर्ष 2009 के बाद हम सबसे भीषण स्थिति का सामना कर रहे हैं।

चिन्ता की बात यह है कि इसमें बड़ा हिस्सा उन सूबों का भी है जहाँ बीते कुछ सालों में लगातार सूखे का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में इस साल अच्छी बारिश की आस थी लेकिन इस बार भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। इस बार भी गर्मियों के दिनों में देश के कई हिस्सों को एक बार फिर पानी और रोटी के संकट से रूबरू होना ही पड़ेगा।

अकेले जल और खाद्य संकट ही नहीं, खेती और ख़ासतौर पर खरीफ की फसल के लिये भी अच्छे संकेत नहीं हैं। सूखे का सबसे बुरा असर इन सूबों में रहने वाले उन परिवारों पर पड़ता है, जो अपनी आजीविका के लिये रोजनदारी की मजदूरी पर निर्भर हैं। खासतौर पर आदिवासी आबादी। ऐसे परिवारों के सामने एक बार फिर पलायन के हालात बनेंगे।

सूखे के चलते बीते कुछ सालों में किसानों की आत्महत्या का आँकड़ा भी बढ़ता रहा है। अधिकाँश किसानों की रबी फसलें मौसम की बेरुखी से बर्बाद हो चुकी है और अब खरीफ पर सूखे का संकट। किसानों के लिये बहुत बड़ी त्रासदी लेकर आ रहा है यह सूखा।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा सहित उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों और महाराष्ट्र में इस बार औसत से कम बारिश दर्ज की गई है। मानसून का दौर अब खत्म हो चुका है और अब तक के बारिश के आँकड़े बेहद चिन्ताजनक हैं। इनमें देश के 44 फीसदी क्षेत्र में औसत बारिश भी नहीं हो सकी है। जबकि 50 फीसदी क्षेत्र में केवल औसत भर बारिश ही हुई है।

पूरे देश की औसत बारिश भी 16 प्रतिशत कम दर्ज हुई है। जानकार बताते हैं कि देश के हालात इस बार वर्ष 2009 के बाद अब तक के सबसे भीषण दौर में होगी। देश के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र में क्रमशः 42 तथा 44 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है। मौसम विभाग का दावा है कि बारिश खत्म होने की तैयारी में है पर ऐसा लगा जैसे इस बार धरती पूरी तरह भींग भी नहीं सकी और बेवफा बादल लौटने की स्थिति में हैं।

दरअसल भारतीय परिप्रेक्ष्य में सावन से शुरू होकर भादो में तेज और क्वांर में हर साल सामान्य और आंशिक बारिश होती रही है। लेकिन इस बार बारिश के तेवर कुछ अलग ही नजर आये। सावन की शुरुआत के साथ ही तरबतर करती ऐसी तूफानी बारिश आई कि लोग सम्भल पाते तब तक तो कई जगह तबाही का मंजर छा गया।

ऐसा लगा कि इस बार बारिश अपने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देगी और कई जगह हुआ भी ऐसा ही, बीते सालों में औसत से कम बारिश वाले कई हिस्सों में अच्छी बारिश भी दर्ज की गई लेकिन इसका फायदा न तो धरती के पानी भण्डार को मिल पाया और न ही जल स्रोतों को ख़ासतौर पर तालाबों और बाँधों को।

ज्यादातर तेज बारिश के दौरान पानी सतह से ढाल की ओर बहते हुए चला गया और ज़मीन प्यासी-की-प्यासी ही रह गई। दूसरा हुआ यह कि तेज बारिश ने जल स्रोतों को तुरन्त लबालब तो कर दिया लेकिन धरती अन्दर-ही-अन्दर इस पानी को सोखती रही और जल्दी ही जलाशय रीतने लगे।

लगातार धीमी बारिश से धरती संतृप्त होती तो जलाशयों के पानी में उल्लेखनीय गिरावट इतनी जल्दी ही नहीं हो पाती। हालत यह है कि कई बड़े बाँध और जलाशय अभी से खाली होने लगे हैं। यहाँ बीते महीने भर से बरसात नहीं हुई है।

बिगड़ता पर्यावरण और प्रकृति से मनमानी छेड़छाड़ अब हमें महंगी साबित हो रही है। अनियमित बारिश इसी की देन है। इस अनियमित और एकमुश्त बारिश का खामियाजा हमें ही अगली गर्मियों के दिनों में उठाना पड़ेगा जब इन इलाकों में पानी की हाहाकार मचेगी।

इससे पानी की कमी से पीने, रोजमर्रा के काम, मवेशियों के लिये और सिंचाई के लिये पानी की तंगी होगी, तापमान बढ़ेगा, खाद्यान संकट होगा, कुपोषण और भूखमरी बढ़ेगी, महंगाई बढ़ेगी, लोगों को काम के अवसर कम मिलेंगे।

हमारे यहाँ महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य तथा पोषण स्तर पहले से ही अच्छा नहीं है, ऐसे में इस तरह के अकाल उनके स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। इतना ही नहीं बारिश कम होने का असर इन इलाकों के बिजलीघरों पर भी पड़ेगा। बाँधों के पर्याप्त नहीं भरे जाने से कई बिजली परियोजनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।

अकेले मध्य प्रदेश में ही बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड, महाकौशल और चम्बल इलाकों में सामान्य से 19 से 34 फीसदी तक बारिश कम हुई है। प्रदेश के 19 जिले सूखे की चपेट में आ रहे हैं। वहीं राजस्थान में भी कुछ जिले ऐसे हैं। जबकि इससे उलट मालवा–निमाड़ और रेवांचल में सामान्य से 10 से 60 फीसदी तक ज्यादा बारिश दर्ज की गई है।

यहाँ बारिश तो खूब हुई पर इतनी तेज कि नदी नालों में कई–कई बार बाढ़ के ऐसे हालात बने कि सम्भाले नहीं सम्भले। मध्य प्रदेश की औसत बारिश 990 मिमी दर्ज है जबकि सामान्य औसत 830 मिमी है।

साल-दर-साल सूखे के हालात, कम होते पानी और भूजल के धरती के अतल गहराई में जाते जाने के स्पष्ट रूख के बाद भी न तो सरकारें और न ही हमारा समाज इस पर अब भी कहीं से गम्भीर नजर नहीं आता है। हालाँकि इनमें कुछ जगह बहुत अच्छा काम हुआ भी है पर ऐसे कामों को बड़े पैमाने पर किये जाने की शिद्दत से जरूरत है। तभी कुछ बदलने की उम्मीद जाग सकती है।

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Post By: RuralWater
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