स्वजलधारा कार्यक्रम में जनभागीदारी के उदाहरण गुजरात में अनूठे रहे हैं। स्वजलधारा कार्यक्रम के तहत गुजरात सरकार का आर्थिक योगदान 224.60 करोड़ रुपयों का है। जब की जन भागीदारी से राज्य में कुल 45.0967 करोड़ रुपये एकत्र किये गये हैं। गुजरात के वलसाड जिल्ले का धरमपुर तालुका के आदिवासी इलाके के एक गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि कुछ कर गुजरना है . . . . . उनके प्रयासों पर नीलेश शुक्ला की रिपोर्ट
दिल्ली और देश के अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात में अक्सर सूखा पड़ता है और तब पानी की एक-एक बूंद की कीमत क्या होती है उसे वे अच्छी तरह से जानते हैं। इसीलिए अब गुजरात ने 'जल क्रांति' को अपनाकर पानी की एक-एक बूंद को संग्रहित करके उसका उपयोग करना सीख लिया है। आज शुद्ध पीने के पानी की कमी एक वैश्विक समस्या बन गई है। ऐसी परिस्थिति में गुजरात राज्य के सभी व्यक्ति को शुद्ध और नियमित पीने का पानी सुचारुरूप से मिलता रहे उसके लिए किये गये राज्य सरकार के प्रयास सराहनीय है। गुजरात के लोग न केवल पानी का उपयोग कंजूसीपूर्वक करते हैं बल्कि हर घर में पानी को सर्वग्राही और सुचारु रूप से संग्रहित करने की व्यवस्था 'स्वजलधारा कार्यक्रम' के तहत सीखकर उन्होंने देश को एक मिसाल दी है। इस कार्यक्रम के तहत गुजरात सरकार ने कुल 7673 गांवो में पानी की समस्या को दूर करने का प्रोजेक्ट 'स्वजलधारा योजना' के नाम से हाथ धरा था जिसमें से 4109 गांवो में स्वजलधारा योजना का कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया है जिससे गांव के लोगो को अब पानी आसानी से उपलब्ध हो रहा है। बाकी के अन्य गांवो में भी कार्य प्रगति पर है। वॉटर एन्ड सेनीटेशन मेनेजमेन्ट ऑर्गेनाइझेशन (वास्मो) एवं गुजरात सरकार के जल संसाधन विभाग के सचिव श्री वी.एस.गढवी के मुताबिक देश में स्वजलधारा कार्यक्रम अपनाने में गुजरात अग्रीम राज्य है।
गुजरात के वलसाड जिले का धरमपुर तालुका का आदिवासी बहुलता का इलाका जो पर्वतीय है वहां दूर-दूर मकान होने से पीने के पानी की बहुत समस्या रहती थी और महिलाओं को दूर-दूर तक हैंडपम्प और कुएं में से पानी लेने जाना पड़ता था और वह भी होली तक तो आसानी से पानी मिल जाता था लेकिन पानी के लिए खरी कसौटी उनकी होली के बाद होती थी। महिलाएं तपती धरती में पानी की बूंद-बूंद के लिए भटकती रहती थीं। सालों से वहां पानी की समस्या थी। तब गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाय, पानी की रोज-रोज की समस्य़ा का कोई रास्ता जरुर निकालना होगा। गुजरात के वलसाड जिले का धरमपुर तालुका का आदिवासी बहुलता का इलाका जो पर्वतीय है वहां दूर-दूर मकान होने से पीने के पानी की बहुत समस्या रहती थी और महिलाओं को दूर-दूर तक हैंडपम्प और कुएं में से पानी लेने जाना पड़ता था और वह भी होली तक तो आसानी से पानी मिल जाता था लेकिन पानी के लिए खरी कसौटी उनकी होली के बाद होती थी। महिलाएं तपती धरती में पानी की बूंद-बूंद के लिए भटकती रहती थीं। सालों से वहां पानी की समस्या थी। तब गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाय, पानी की रोज-रोज की समस्य़ा का कोई रास्ता जरुर निकालना होगा। स्वजलधारा कार्यक्रम में जनभागीदारी का उदाहरण गुजरात में अनूठे रहे हैं। गुजरात के वलसाड जिल्ले का धरमपुर तालुका का आदिवासी इलाके के एक गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाय लेकिन पानी की रोज-रोज की समस्य़ा का कोई रास्ता जरुर निकालना चाहिए। उनका संकल्प दृढ था और कहते है न कि यदि संकल्प दृढ हो तो मार्ग अपने आप निकल जाता है। गांववासियों ने 60,000 रुपयों का फंड एकत्र किया और योजना को सफल बनाने के लिए लोकसेवा की उदार भावना के साथ गांव के रहीश धनजीभाई हरजीभाई ने टंकी बनाने के लिए जगह दान में दी और पंप हाउस, स्टेन्ड पोस्ट और हौज बनाने के लिए श्री काळुभाई हरजीभाई ने अपनी जगह दान में दी। गांव के सभी स्त्री और पुरूषों ने एकजुट होकर काम करने का बीड़ा उठाया फलस्वरुप आज वहां एक ऊंची टंकी, पंप रूम और हौज एक प्रतीक के समान है। आज गांव के हर घर में पानी का कनेक्शन है और घर के नल में ही पानी दिन में दो बार दिया जाता है। आज गांव की महिलाओं की वेदना दूर हो गई है लेकिन फिर भी गांव के लोग पानी की एक-एक बूंद की कीमत जानते हैं इसलिए उसका खर्च भी वे संभाल कर करते हैं।
इसी प्रकार गुजरात के अन्य गांवों में भी स्वजलधारा कार्यक्रम के अंतर्गत लोगों को पानी की तकलीफ से निजात दिलाने में काफी हद तक सफलता मिली है। इतना ही नहीं बल्कि गांवों में चेकडेम भी बनाए गये हैं जिससे बारिश के पानी को संग्रहित किया जाय और उसका कृषि के लिए उपयोग किया जाय।
स्वजलधारा कार्यक्रम के तहत गुजरात सरकार का आर्थिक योगदान 224.60 करोड़ रुपयों का है। जब की जन भागीदारी से राज्य में कुल 4509.67 लाख रुपये एकत्र किये गये हैं। राज्य सरकार ने इस योजना को बढावा देने के लिए अन्य 2.82 करोड रुपयों का भी योगदान दिया है। इस प्रकार गुजरात सरकार और जन भागीदारी से गुजरात में जो जल सिंचन और जल संग्रह का काम हुआ है उसने अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल कायम की है। गुजरात में आज कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है जिसका पूरा श्रेय जल-सिंचन और जल-संग्रह के लिए अपनाये गये कारगर उपायों को जाता है।
दिल्ली और देश के अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात में अक्सर सूखा पड़ता है और तब पानी की एक-एक बूंद की कीमत क्या होती है उसे वे अच्छी तरह से जानते हैं। इसीलिए अब गुजरात ने 'जल क्रांति' को अपनाकर पानी की एक-एक बूंद को संग्रहित करके उसका उपयोग करना सीख लिया है। आज शुद्ध पीने के पानी की कमी एक वैश्विक समस्या बन गई है। ऐसी परिस्थिति में गुजरात राज्य के सभी व्यक्ति को शुद्ध और नियमित पीने का पानी सुचारुरूप से मिलता रहे उसके लिए किये गये राज्य सरकार के प्रयास सराहनीय है। गुजरात के लोग न केवल पानी का उपयोग कंजूसीपूर्वक करते हैं बल्कि हर घर में पानी को सर्वग्राही और सुचारु रूप से संग्रहित करने की व्यवस्था 'स्वजलधारा कार्यक्रम' के तहत सीखकर उन्होंने देश को एक मिसाल दी है। इस कार्यक्रम के तहत गुजरात सरकार ने कुल 7673 गांवो में पानी की समस्या को दूर करने का प्रोजेक्ट 'स्वजलधारा योजना' के नाम से हाथ धरा था जिसमें से 4109 गांवो में स्वजलधारा योजना का कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया है जिससे गांव के लोगो को अब पानी आसानी से उपलब्ध हो रहा है। बाकी के अन्य गांवो में भी कार्य प्रगति पर है। वॉटर एन्ड सेनीटेशन मेनेजमेन्ट ऑर्गेनाइझेशन (वास्मो) एवं गुजरात सरकार के जल संसाधन विभाग के सचिव श्री वी.एस.गढवी के मुताबिक देश में स्वजलधारा कार्यक्रम अपनाने में गुजरात अग्रीम राज्य है।
गुजरात के वलसाड जिले का धरमपुर तालुका का आदिवासी बहुलता का इलाका जो पर्वतीय है वहां दूर-दूर मकान होने से पीने के पानी की बहुत समस्या रहती थी और महिलाओं को दूर-दूर तक हैंडपम्प और कुएं में से पानी लेने जाना पड़ता था और वह भी होली तक तो आसानी से पानी मिल जाता था लेकिन पानी के लिए खरी कसौटी उनकी होली के बाद होती थी। महिलाएं तपती धरती में पानी की बूंद-बूंद के लिए भटकती रहती थीं। सालों से वहां पानी की समस्या थी। तब गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाय, पानी की रोज-रोज की समस्य़ा का कोई रास्ता जरुर निकालना होगा। गुजरात के वलसाड जिले का धरमपुर तालुका का आदिवासी बहुलता का इलाका जो पर्वतीय है वहां दूर-दूर मकान होने से पीने के पानी की बहुत समस्या रहती थी और महिलाओं को दूर-दूर तक हैंडपम्प और कुएं में से पानी लेने जाना पड़ता था और वह भी होली तक तो आसानी से पानी मिल जाता था लेकिन पानी के लिए खरी कसौटी उनकी होली के बाद होती थी। महिलाएं तपती धरती में पानी की बूंद-बूंद के लिए भटकती रहती थीं। सालों से वहां पानी की समस्या थी। तब गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाय, पानी की रोज-रोज की समस्य़ा का कोई रास्ता जरुर निकालना होगा। स्वजलधारा कार्यक्रम में जनभागीदारी का उदाहरण गुजरात में अनूठे रहे हैं। गुजरात के वलसाड जिल्ले का धरमपुर तालुका का आदिवासी इलाके के एक गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि अब कुछ भी हो जाय लेकिन पानी की रोज-रोज की समस्य़ा का कोई रास्ता जरुर निकालना चाहिए। उनका संकल्प दृढ था और कहते है न कि यदि संकल्प दृढ हो तो मार्ग अपने आप निकल जाता है। गांववासियों ने 60,000 रुपयों का फंड एकत्र किया और योजना को सफल बनाने के लिए लोकसेवा की उदार भावना के साथ गांव के रहीश धनजीभाई हरजीभाई ने टंकी बनाने के लिए जगह दान में दी और पंप हाउस, स्टेन्ड पोस्ट और हौज बनाने के लिए श्री काळुभाई हरजीभाई ने अपनी जगह दान में दी। गांव के सभी स्त्री और पुरूषों ने एकजुट होकर काम करने का बीड़ा उठाया फलस्वरुप आज वहां एक ऊंची टंकी, पंप रूम और हौज एक प्रतीक के समान है। आज गांव के हर घर में पानी का कनेक्शन है और घर के नल में ही पानी दिन में दो बार दिया जाता है। आज गांव की महिलाओं की वेदना दूर हो गई है लेकिन फिर भी गांव के लोग पानी की एक-एक बूंद की कीमत जानते हैं इसलिए उसका खर्च भी वे संभाल कर करते हैं।
इसी प्रकार गुजरात के अन्य गांवों में भी स्वजलधारा कार्यक्रम के अंतर्गत लोगों को पानी की तकलीफ से निजात दिलाने में काफी हद तक सफलता मिली है। इतना ही नहीं बल्कि गांवों में चेकडेम भी बनाए गये हैं जिससे बारिश के पानी को संग्रहित किया जाय और उसका कृषि के लिए उपयोग किया जाय।
स्वजलधारा कार्यक्रम के तहत गुजरात सरकार का आर्थिक योगदान 224.60 करोड़ रुपयों का है। जब की जन भागीदारी से राज्य में कुल 4509.67 लाख रुपये एकत्र किये गये हैं। राज्य सरकार ने इस योजना को बढावा देने के लिए अन्य 2.82 करोड रुपयों का भी योगदान दिया है। इस प्रकार गुजरात सरकार और जन भागीदारी से गुजरात में जो जल सिंचन और जल संग्रह का काम हुआ है उसने अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल कायम की है। गुजरात में आज कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है जिसका पूरा श्रेय जल-सिंचन और जल-संग्रह के लिए अपनाये गये कारगर उपायों को जाता है।
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