साठ सालों से खिवनी अभ्यारण्य में स्थित वनग्रामों को अब अचानक हटाए जाने की कवायद तेज हो गई है। मध्यप्रदेश सरकार के वन विभाग ने अब इस अभ्यारण्य क्षेत्र के 185 गाँवों में रह रहे लोगों को इस आशय के नोटिस जारी किए हैं। इनमें ज्यादातर आदिवासी गाँव हैं, जो बिना किसी बुनियादी सुविधाओं के यहाँ कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। ग्रामीणों के मुताबिक अब तक उनकी वजह से अभ्यारण्य क्षेत्र में रहने वाले जंगली जानवरों और घने जंगलों को कभी कोई नुकसान नहीं हुआ है, बावजूद इसके उन्हें यहाँ से हटाया जा रहा है। नए फरमान से यहाँ लोगों की परेशानियाँ बढ़ गई हैं।
मध्यप्रदेश में इंदौर से नागपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 59-ए पर कन्नौद से 20 किमी तथा भोपाल हाईवे पर आष्टा से करीब 40 किमी की दूरी पर सागौन के घने जंगलों और प्राकृतिक नदी-नालों से घिरा खिवनी अभ्यारण्य क्षेत्र अपनी जैव विविधता और यहाँ मिलने वाले जंगली जानवरों के लिये पहचाना जाता है। यहाँ से जामनेर गुजरती है, जो नर्मदा की सहायक नदी है।
खिवनी का जंगल ख़ासा समृद्ध है। यहाँ सागौन के साथ शीशम, टीक, खैर, बीजा साला, अर्जुन, महुआ, धावड़ा, कुल्लू, तिंसा, सलाई, मोयन, आंवला और बहेड़ा के घने पेड़ हैं। अभ्यारण्य के जंगल सदर्न ट्रोपिकल ड्राई डेसीड्यूस वनों की श्रेणी के हैं। ज्यादातर हिस्से में बेशकीमती सागौन है। ढलानों पर बांस है। सिराली, दूधी, लेंटाना, बैकल, घटबोर की झाड़ियों के साथ सिरेटा, धनवेला, कालावेला, काँच की कुटी आदि प्रजाति की बेलें पाई जाती हैं। घास में पोनिया, गोदराली, कुंदा, फुलेरा, सुकला और रोसा घास मिलती है।
जानवरों में तेंदुआ, लकड़बग्घा, सियार, सोनकुत्ता, लोमड़ी, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, सांभर, भेडकी, खरगोश सहित मोर, पपीहा, बाज़, दूधराज, राबिन, बगुला, सारस, चील, तीतर, नीलकंठ, कठफोड़वा सहित कई दुर्लभ प्रजातियाँ मिलती हैं। मप्र का राज्य पक्षी इंडियन पेराडाईज फ्लाईकेचर यहाँ प्रायः देखा जा सकता है। इसके अलावा जमीन पर घोंसला बनाने वाले पक्षी भी यहाँ मिलते हैं। यहाँ पक्षियों की एक सौ दस से ज़्यादा प्रजातियाँ मिलती हैं।
यहाँ बालगंगा नामक जगह पर अदृश्य जलस्रोत है, जिससे पूरे साल साफ़ पानी बहता रहता है। गर्मियों में यह जलस्रोत यहाँ के जानवरों के लिये पानी उपलब्ध करता है। साथ ही वन विभाग ने भी अब यहाँ दो बड़े, दो छोटे बाँध और दस हैंडपंप लगवाए हैं। हैंडपंप की पाल पर गर्मी में पानी भर दिया जाता है। करीब सौ हेक्टेयर क्षेत्र में चारागाह विकसित हो रहा है।
सीहोर तथा देवास जिले की सीमा पर बेशकीमती जंगल को संरक्षित करने और उसमें रहने वाले जंगली जानवरों को बेहतर पर्यावास उपलब्ध कराने के लिये 1955 में 132.778 वर्ग किमी क्षेत्र को खिवनी अभ्यारण्य घोषित किया गया था। आज़ादी से पहले यह जगह स्थानीय रियासत में शिकारगाह कही जाती थी और लोग यहाँ जंगली जानवरों का शिकार किया करते थे। 1955 में इसे अभ्यारण्य घोषित किया, तब भी इन गाँवों में आदिवासी रहते थे लेकिन इन्हें नहीं हटाया गया। तब से अब तक वे यहाँ बीते 60 सालों से रह रहे हैं और उन्होंने अब तक कभी भी यहाँ के शांत और प्राकृतिक वातावरण को नुकसान नहीं पहुँचाया है। उनसे वन्य जीवों को भी कोई नुकसान नहीं हुआ है। अब अचानक बीते महीने यहाँ के आदिवासी आबादी को बेदखली के नोटिस जारी किए गए हैं। इससे उनकी चिन्ताएँ बढ़ गई हैं।
अधिकांश ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। उनकी बड़ी दिक्कत यह है कि वे कई पीढ़ियों से जंगलों में ही रहते आए हैं और जैसे–तैसे अपना परिवार चलाते रहे हैं। ये लोग यहाँ की समतल जमीन पर अपने ज़रूरत के मुताबिक छोटे–छोटे खेतों में अनाज उगा लेते हैं। उन्हें यह सोचकर ही मुश्किल हो रही है कि वे अपनी जमीन से बेदखल होकर वहाँ अपना और परिवार का पेट कैसे भरेंगे। वन ग्राम होने से इन्हें न तो बिजली, पानी सड़क की सुविधा है और न ही स्कूल और पक्का निर्माण करने की अनुमति है। फिर भी ये लोग जैसे–तैसे अपनी ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। छोटी खिवनी में 1945-50 के आस-पास सरकार ने खेती के लिये कुछ पट्टे देकर खरगोन जिले की राजपुर तहसील के गाँवों से बारेला आदिवासियों को यहाँ बसाया था।
70 साल के लालूजी कहते हैं– 'हम जंगलों में प्रारम्भ से ही रहते आए हैं। हमें वन अधिकारियों ने बताया कि यहाँ बसने पर रेंजर (तत्कालीन) भौंरासकर सरकारी जमीन का खेती करने के लिये पट्टा दे रहे हैं। इसके पीछे बात यह थी कि यहाँ आदिवासियों के रहने से जंगलों में आग लगने और लकड़ी चोरों को पकड़ने में मदद मिलेगी। उन दिनों उनके पिता के साथ करीब 120 परिवार अपना सामान लेकर पैदल चलते हुए यहाँ पहुँचे थे। तब से अब तक वे यहीं रह रहे हैं। एक समय हमें यहाँ लाकर बसाया गया और अब यहाँ से हटाया जा रहा है। आदिवासियों से जंगल को क्या नुकसान हो सकता है।'
उधर खिवनी अभ्यारण्य के वन अनुविभागीय अधिकारी अशोक कुमार यहाँ से आबादी हटाने के फैसले को सही बताते हैं। वे कहते हैं– 'वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्र में अब किसी भी तरह की आबादी और मानव गतिविधियों पर पूर्णतया पाबंदी लगा दी गई है। इसी कारण इन्हें यहाँ से हटाया जा रहा है। हमने सभी 185 गाँव में रह रहे लोगों को नोटिस भेज दिए हैं। कुछ रहवासियों में विस्थापन को लेकर भ्रांतियाँ और आशंकाएँ हैं लेकिन हम इसे दूर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हम वनग्रामों में चौपाल पर जाकर उन्हें समझा रहे हैं। इन्हें विस्थापन के लिये मुआवजे के साथ हम पुनर्वास में भी मदद करेंगे। बातचीत से 86 गाँवों के लोगों में इस बात की सहमति बन गई है कि वे विस्थापन के लिये तैयार हैं। बाक़ी 99 गाँवों में भी हम अपनी बात पहुँचाने का जतन कर रहे हैं। यहाँ तक कि अब अभ्यारण्य क्षेत्र में पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियों को भी प्रतिबंधित किया जा रहा है।'
ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि एक तरफ सदियों से यहाँ रह रहे आदिवासियों को हटाया जा रहा है लेकिन इस क्षेत्र में वन माफिया सक्रिय हैं। उनकी वजह से बेशकीमती पेड़ काटे जा रहे हैं और शिकार की घटनाएँ लगातार बढ़ रही है। हाल ही में इसकी सुरक्षा पर बढती चिन्ता के बाद वन विभाग ने इसकी चौकसी बढ़ा दी है। वन परिक्षेत्र काफी बड़ा होने से इसकी सुरक्षा में परेशानियाँ ज़्यादा है। यह क्षेत्र 13 बीट में बंटा है। अब इसे 20 बीटों में बाँटकर एक की जगह दो रेंज कन्नौद और इछावर बनाई गई है, ताकि माफिया पर अंकुश लगाया जा सके।
इकोटूरिज्म की सम्भावनाएँ
प्रदेश सरकार इसे इकोटूरिज्म का बड़ा केंद्र बना सकती है। यहाँ वे सभी विशेषताएँ हैं, जो देशी–विदेशी सैलानियों को अपनी तरफ खींच सकती है। प्रदेश में जल पर्यटन की दृष्टि से विकसित नर्मदा पर इंदिरा सागर बाँध के बैकवाटर में स्थित हनुमन्तिया टापू से भी यह नजदीक है। पश्चिमी मध्यप्रदेश में यह एकमात्र अभ्यारण्य है जो वन सम्पदा और वाइल्ड लाइफ के लिहाज से समृद्ध है। खिवनी अभ्यारण्य को विकास की दरकार है।
देवास जिला प्रशासन इसके लिये पहले ही प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेज चुका है। इसमें 162 किमी लम्बाई की सुरक्षा दीवार की बात भी कही गई है। इसके साथ पर्यटन सुविधाओं में साइकिल ट्रेकिंग, क्लाइम्बिंग, पर्वतारोहण और बोटिंग के साथ साहसिक गतिविधियों के लिये भी प्रस्ताव दिए गए हैं। यहाँ जगह–जगह घाटियाँ होने से ट्रेकिंग का रोमांच सैलानियों को लुभा सकता है। फिलहाल 21 किमी वलयाकार रास्ता बनाया गया है। दौलतपुर वन मार्ग पर व्यू प्वाइंट तथा कलम तलाई से यहाँ की दूर–दूर तक फैली सुरम्य छटा देखते ही बनती है। विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिये भी यह जगह महत्त्वपूर्ण है।
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