फोटो साभार - चौथी दुनियाहिमालय को बचाना है. नदियों, पर्वतों और जंगलों को पैसों के लालची व्यापारियों की भेंट नहीं चढ़ने देना है. चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े. गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट के दिन रात आजकल इसी जद्दोज़हद में कट रहे हैं. वे लड़ रही हैं. उत्तराखंड की महिलाओं के साथ आंदोलन कर रही हैं. पर्वतों, नदियों, जंगलों और घाटियों की पद यात्रा करते हुए सरकार के ख़िला़फ, व्यापारियों और बिल्डरों के ख़िला़फ विरोध के स्वर पूरी मज़बूती से दर्ज़ करा रही हैं. रचना और संघर्ष के साझी पहल की अनूठी मिसाल पेश कर रही हैं.
लगभग 76 वर्ष की उम्र में भी राधा भट्ट की दुबली—पतली काया में कुछ कर गुज़रने की आग धधक रही है. उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के धुरका गांव में पैदा हुईं राधा भट्ट ने उत्तराखंड के वजूद को मूल स्वरूप में क़ायम रखने की ख़ातिर पूरी ज़िंदगी लड़ाई लड़ी है. आज भी ये जन जीवन और पर्यावरण पर आए संकट के लिए संघर्ष कर रही हैं. उत्तराखंड की नदियों के तेज़ी से घटते जा रहे प्रवाह और जलस्तर, कंपनियों की मनमानी व लूट, प्रशासन द्वारा जवाबदेही के कर्तव्य की उपेक्षा के विरूद्ध राधा भट्ट ने गांधीवादी तरीक़े से मोर्चा खोल दिया है. अपनी पूरी ज़िंदगी राधा भट्ट ने समाज के उत्थान के लिए क़ुर्बान कर दी, पर आज भी इनकी अदम्य जिजीविषा क़ायम है.
सरकार के कामकाज के तरीक़े से ये बेहद ख़फा हैं. कहती हैं कि सरकार प्रगति के नाम पर उत्तराखंड के अस्तित्व को संकट में डाल रही है. सेब के बगीचों को बिल्डरों के हाथों बेच दिया जा रहा है. जहां वे नाजायज़ तरीक़ों से काटेजेज़ का निर्माण कर रहे हैं. गांववालों के पीने के पानी का अवैध तरीक़े से दोहन कर रहे हैं. राधा भट्ट ने कादीर राणा और कंपनी नामक उस बिल्डर के विरोध में भी पदयात्रा निकाली है. वे लोगों को उसके ग़लत कामों के विरोध में जागरूक कर रही हैं ताकि वह आइंदा भोले—भाले ग्रामीणों का बेज़ा फायदा न उठा सके. इसके अलावा उन्होंने 5000 आम लोगों के साथ उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान के तहत 15 नदी घाटियों में 2000 किलोमीटर की पदयात्रा भी की, जिसमें उन्होंने पाया कि अगर सरकार लगातार अंधाधुंध हिमानी नदियों पर बांध बनाती रही तो आने वाले बीस वर्षों में उत्तराखंड में पानी के लिए त्राहि—त्राहि मच जाएगी. यहां के संवेदनशील पर्वतों और जंगलों का जीवन संकट में पड़ जाएगा.राधा भट्ट कहती हैं कि सरकार बिना सोचे—समझे यहां 330 बड़े और मध्यम सुरंग और बांध बनाने की योजना को अमली जामा पहना रही है. जिनसे वह 30 हज़ार मेगावाट बिजली उत्पादन कर उत्तराखंड के लोगों को ऊर्जा प्रदेश बनाने का सपना दिखा रही है. पर इन टनल्स को बनाने के क्रम में पहाड़ हिल जाते हैं. जिससे भूस्खलन का ख़तरा बढ़ जाता है. उत्तराखंड वैसे भी भूकंप के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है. सुरंगों को बनाने के लिए जो विस्फोट किए जाते हैं, उनकी वजह से जोशीमठ, ज़िला चमोली आदि जगहों पर रहने वाले लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं. रूद्रप्रयाग के चमोली गांव की धरती हर धमाके में थर्रा जाती है. ये यक़ीनन मानव के जीवित रहने के अधिकार का हनन है.
राधा भट्ट कहती हैं कि सरकारों की ये शोषक प्रवृत्ति नदियों के विनाश का कारण बन रही है. अगर हिमालय की नदियां सूख जाएंगी तो उत्तरी भारत तबाह हो जाएगा. बांग्लादेश और पाकिस्तान तक पानी की घोर कमी हो जाएगी. मानव आबादी ख़त्म होने लगेगी. सरकार कंपनियों का साथ दे रही है. उसे अपनी जनता की कोई चिंता नहीं है. सरकार यह सोचने तक को तैयार नहीं है कि अगर प्राकृतिक स्त्रोत ख़त्म हो गए तो पीढ़ियां बरबाद हो जाएंगी.सरकार की उदासीनता से नाराज़ राधा भट्ट अब यह मानने लगी हैं कि जनता को अपने हक़ की ख़ातिर अब समानांतर सरकारों का गठन करना चाहिए, जिस तरीक़े से महाराष्ट्र के हिवड़े बाज़ार के निवासियों ने किया. अब ज़रूरत है कि जनता सभी को नेपथ्य में डाल कर ख़ुद सामने आकर खम ठोके.
राधा भट्ट का नाम गांधी—विनोबा युग के बचे हुए थोड़े से गांधीवादियों में प्रमुखता से शुमार किया जाता है. वे आज देश—दुनिया के शीर्षस्थ गांधीवादी संस्थाओं और संगठनों में अहम पदों पर हैं. पिछले पचास वर्षों से महात्मा गांधी के विचारों को अपने जीवन में चरितार्थ करते हुए राधा भट्ट ने जिस दृढ़ता से उन विचारों को समाज निर्माण की दिशा में लागू करने की अथक साधना की है वह बेमिसाल है. विनोबा भावे के भूदान आंदोलन, उत्तराखंड में चिपको आंदोलन, शराबबंदी, खनन और नदी बचाओ जैसे आंदोलनों ने राधा भट्ट के व्यक्तित्व का निर्माण किया है.
राधा भट्ट, अपने चाहने वालों के बीच राधा दीदी के नाम से जानी जाती हैं. इनका मानना है कि जीवन तो समाज के लिए कुछ सार्थक कर गुज़रने का नाम है. सरकार की उदासीनता के बावजूद राधा भट्ट की हिम्मत नहीं टूटी है. राधा भट्ट कहती हैं कि वह उस गिलहरी की तरह अपना काम करना जानती हैं जो भगवान राम के श्रीलंका जाने के लिए सेतुबंध बनाने की ख़ातिर बहुत अल्प ही सही लेकिन निरंतर सहयोग देती रही. किसी भी काम का नतीजा तुरंत मिले, ऐसी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए. बस आपके विचार और आपकी दिशा सही होनी चाहिए.
राधा भट्ट के साथ पूरा कारवां है जो उनके विचारों के मुताबिक़ आंदोलन को गति दे रहा है. उत्तराखंड की महिलाओं का बड़ा समूह राधा भट्ट की अगुआई में अपनी नदियों को बचाने के लिए कृतसंकल्प है. कुल 12 नदियां कौसानी से निकलती हैं और उन सबके पानी पर सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं ने संकट पैदा कर रखा है. हर हाल में उन नदियों को बचाने की कशमकश जारी है. राधा भट्ट बताती हैं कि पहाड़ की महिलाएं अपनी प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण के लिए इतनी जागरूक हो चुकी हैं कि वे वन विभाग से तालमेल कर गांव-गांव में छोटे-छोटे तालाब बना रही हैं, वर्षा के जल को एकत्र कर रही हैं और भू—स्खलन के ख़तरों को रोकने के उपाय कर रही हैं.
हालांकि राधा भट्ट ने इस बाबत समिति की ओर से सरकार को द़िक्क़तों और उपायों का मसौदा बना कर भी दिया है. प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वासन भी दिया है कि उनके सुझावों पर अमल किया जाएगा. पर अभी तक कोई सरकारी पहल शुरू नहीं की गई है.
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