उत्तरप्रदेश के प्रयागराज जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर तहसील मेजा के पहाड़ी क्षेत्रो में पिछले साल राज्य सरकार ने प्रदेश का सबसे बड़ा काला हिरण अभयारण्य बानने की घोषणा की थी। कई सालों से यहाँ के ग्रामीण इन हिरनों को संरक्षित कर रहे थे। यहां के गांववासी बताते है कि अकसर ये काले हिरण उनके घरों में पहुंच जाते हैं। और कई बार उनके पशुओं के लिए बने नाद से पानी पी जाते है ।
ये काले हिरण फसल का नुकसान भी कम करते हैं। खेतों में जाकर ये घास ही चरते हैं। और जब तापमान अधिक हो जाता है तो टोंस नदी के किनारे बसे गांवों में चले जाते हैं और जब मौसम ठंडा हो जाता तो वह फिर वापिस गांव लौट आते है। ।
इन हिरानो की सबसे बड़ी समस्या पानी की रहती है। पठारी इलाका होने से गर्मी के मौसम में यहाँ के जलस्रोत सूख जाते हैं। ऐसे में ये काला हिरण पानी की तलाश में आबादी वाले इलाकों में प्रवेश करने पर मजबूर हो जाते है । हिरणों की पानी की तलाश को खत्म करने के लिए 3 साल पहले एनटीपीसी ने वन विभाग को 2.50 करोड़ दिए, जिससे आठ पक्के व तीन कच्चे तालाबों का निर्माण कराया जा चुका है। इन तालाबों को भरने के लिए नलकूप भी लगे हैं। इन पर निगरानी रखने के लिए वॉच टावर भी बना है। वही अब इस क्षेत्र को वन्य पर्यटन स्थल बना दिया गया है
पिछले 20 साल से ग्रामीण इन काले हिरानो को संरक्षित कर रहे उनके इसी प्रयास से आज प्रदेश के सबसे बड़े काला हिरण अभयारण्य में करीब साढ़े चार सौ से अधिक काले हिरण रह रहे है। लेकिन आज उन्हें उत्तरप्रदेश वन विभाग के कार्यशैली से इन हिरणों पर खतरा होने का डर सता रहा है वो कहते है कि हिरानो संरक्षित करने के लिये ये अभ्यारण्य बनाया गया था लेकिन विभाग की तरफ से ऐसा कोई काम नही हुआ जिससे ये हिरण संरक्षित हो सके।
ग्रामीण गांव के पास अंधाधुंध निर्माण से भी नाराज है जिसके कारण आज अधिक संख्या में काले हिरण गांव की ओर पलायन करने पर मजबूर है। वही विभाग के पास इनकी देखभाल करने के लिये पर्याप्त कर्मचारी भी नही है। ऐसे में इन काले हिरानो संरक्षित करना मुश्किल हो सकता है
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