आदि गुरु चरक ने कहा था कि, “स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध वायु, जल तथा मिट्टी आवश्यक कारक हैं।” प्रकृति हमारी सच्ची साथी है। जब कोई हमारे साथ नहीं होता, तो हम प्रकृति के साथ हो जाते हैं। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि हम प्रकृति के 5 मूलभूत तत्वों का संरक्षण करें। इसके लिए हमें अपने घर से ही प्रयास प्रारंभ करना है। हमें अपने घर को पूर्णतः पर्यावरण के अनुकूल और हितैषी बनाना है, अर्थात “हरित घर” की संकल्पना को साकार करना है।
हम सभी जानते हैं कि संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को महसूस कर रहा है, जिसका मुख्य कारक कार्बन डाइऑक्साइड है, जो लगभग 55 प्रतिशत वैश्विक तापन यानी गर्मी के लिये जिम्मेदार है। इसलिए घर में कम ऊर्जा की खपत, जल संरक्षण और अपशिष्ट रीसाइक्लिंग बेहद आवश्यक है। आसान भाषा में कहें तो पानी, गैस और बिजली का उपयोग करने वाली दैनिक आदतों में थोड़ा परिवर्तन करके हम “हरित घर' की संकल्पना साकार कर सकते हैं। एक घर को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए हमें पांच चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
1. जल संरक्षण :
पूरे विश्व में धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, लेकिन इसमें से 97प्रतिशत पानी खारा है और पीने योग्य नहीं है। पेयजल यानी पीने योग्य पानी की मात्रा केवल 3 प्रतिशत है। इसमें भी 2 प्रतिशत पानी ग्लेशियर और बर्फ के रूप में है। आज मानव जाति के लिये जल संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। यदि अब भी हम लोग जल सरंंक्षण के प्रति गंभीर नहीं हुए, तो यह बात बिल्कुल सही सिद्ध होगी कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा।
जल संरक्षण के लिए हम सबसे पहले अपने घर में बारिश के पानी को संरक्षित करने की व्यवस्था कर सकते हैं। घरों में जो पानी बहकर व्यर्थ चला जाता है, उसका उपयोग बगीचे में या अन्य कई कार्यों में किया जा सकता है। इसके अलावा अपने दैनिक कार्यों में हमें कम से कम पानी का प्रयोग करना चाहिए| नलों में जल के प्रवाह को कम करने के लिए हम “एरेटर' का प्रयोग कर सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि पानी का सीमित उपयोग करें। जैसे पीने के लिए उतना ही जल लें, जितनी आवश्यकता हो। इन छोटे-छोटे प्रयासों से हम बहुत बड़ी बचत कर सकते हैं।
2. जमीन संरक्षण :
“माता भूमिः पुत्रौ अहम् पृथिव्या:”? वेदों में भूमि को माता कहा गया है। भूमि पर्यावरण की आधारभूत इकाई है। एक स्थिर इकाई होने के नाते इसमें किसी भी प्रकार वृद्धि नहीं की जा सकती। लेकिन बड़ी समस्या ये है कि अपशिष्ट पदार्थ मिट्टी को प्रदूषित कर रहे हैं।
ठोस कचरा प्रायः घरों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है। इसके ढेर टीलों का रूप ले लेते हैं, क्योंकि इस ठोस कचरे में राख, कांच, 'फल तथा सब्जियों के छिलके, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, ईट, रेत, धातुएं, मवेशी गृह का कचरा, गोबर इत्यादि वस्तुएं सम्मिलित हैं। इस कचरे को रोकने के लिए हमें स्वयं भी प्रयास करना होगा तथा अपने आस-पास लोगों को भी जागरुक करने 58 की आवश्यकता है।
सर्वप्रथम हमें पॉलिथीन के स्थान पर कपडे की थैली का प्रयोग करना चाहिए। पॉलिथीन के कारण जल तथा भूमि के साथ जीवों को भी परोक्ष-अपरोक्ष रूप से हानि हो रही है। हमें अपने घर में आ गई पॉलिथीन को वापस बाहर नहीं जाने देना है। इसके लिए हम इस पॉलिथीन का प्रयोग इको ब्रिक बनाने में कर सकते हैं। प्लास्टिक की बोतल में पॉलिथीन को ठूंस कर भर देने से 300-350 ग्राम के लगभग ईट के जैसा उत्पाद तैयार हो जाता है। इसका प्रयोग हम पौधों की क्यारी बनाने या स्टूल कुर्सी बनाने में कर सकते हैं।
रसोई के गीले कचरे को भी फेंकने के स्थान पर खाद बना कर उपयोग में ले सकते हैं। इसके लिए मैजिक ड्रम (स्सोई की बगिया) का प्रयोग हर बहुत लोकप्रिय हो रहा है। इस तरह के कुछ प्रयास हमारे घर से अपशिष्ट की मात्रा को एकदम न्यूनतम कर देंगे।
3. जंगल संरक्षण:
जंगल संरक्षण का अर्थ व्यापक है। पेड़-पौधे हमारे जीवन की अमूल्य निधि हैं, जो हमारे पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक, औद्योगिक और सामाजिक स्थिति को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों से मानव समुदाय को अनेक बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त होती हैं। जिनमें स्वच्छ जल, वन्य प्राणियों के रहने के लिए स्थान, लकड़ी, भोजन, फर्नीचर, कागज सहित अनेक पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल सम्मिलित हैं
“हरित घर' में जंगल संरक्षण से तात्पर्य घरेलू उद्यान से है। घर में कम से कम पांच औषधीय पौधे हमको लगाने चाहिए। घर की छत पर गमलों या अन्य उपयुक्त पात्रों में पौधे एवं सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं। घर में खाली पड़ी जमीन पर भी पौधे लगाये जा सकते हैं। घर का वातावरण पर्यावरण अनुकूल होने से नई पीढ़ी को भी पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझने का अवसर मिलेगा।
4. जीव संरक्षण:
संपूर्ण प्राणी जगत का अस्तित्व, एक दूसरे के अस्तित्व पर निर्भर है। मनुष्य जाति ने प्रकृति के अन्य प्राणियों के आवास छीन लिए, दुनिया से जीवों की अनेकों प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं और कई लुप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए जीव संरक्षण को प्रकृति की आधारभूत आवश्यकता मानते हुए इस कार्य को करना चाहिए।इसके लिये हम घरों में, अपनी गली और पार्क में लगे पेड़ों पर चुग्गाघर एवं परिंडे लगाकर, पशुओं के पीने के पानी के लिए घर के बाहर व्यवस्था करके, कुत्तों व अन्य पशुओं के लिए आवास की व्यवस्था करके हम इस कार्य का एक अर्थपूर्ण प्रारंभ कर सकते हैं।
5. ऊर्जा संरक्षण:
किसी कार्य को करने के लिए ऐसी विधि का इस्तेमाल करना कि वह काम पूरा होने में न्यूनतम ऊर्जा लगे, इसे ही ऊर्जा संरक्षण कहते हैं। उदाहरण के लिए आप यदि कार से हर दिन आना-जाना कर रहे हैं, उसके स्थान पर साईकिल का प्रयोग करें, तो उससे कार में लगने वाले ईंधन की बचत होगी और आप ऊर्जा संरक्षण कर पाएंगे।घर में एलईडी लाइट्स का प्रयोग कर हम पर्याप्त मात्रा में बिजली बचा सकते हैं। यदि संभव है तो हमें अपने घर में सौर ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए। भोजन बनाने हेतु बिजली के स्थान पर सोलर कुकर व पानी गर्म करने हेतु गीजर के स्थान पर सोलर वाटर हीटर तथा अन्य सौर संचालित उपकरणों का उपयोग कर हम बहुमूल्य विद्युत ऊर्जा का संरक्षण कर राष्ट्रहित में भागीदार बन सकते हैं।
एक पर्यावरण अनुकूल घर यानी “हरित घर”, एक ऐसा घर है, जो ऊर्जा की खपत कम करता हो, पर्यावरण संरक्षण में सहायक हो, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन न करे और प्रकृति के साथ मिलकर चले। “हरित घर' न केवल प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी फायदेमंद हैं।
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