हमारे यहाँ एक तरफ जहाँ हरियाली और बरसात तेजी से घट रहे हैं, वहीं हवा भी लगातार जहरीली होती जा रही है। बीते दिनों कुछ शहरों में वायु और जल प्रदूषण के जो भयावह आँकड़े हमारे सामने आए हैं, उनसे साफ़ है कि अब सिर्फ बातों से हालात सुधरने वाले नहीं है। अब हमें नए सिरे से इस पर एक्शन की जरूरत है।
बढ़ते हुए प्रदूषण के बुरे असर को कम करने के लिये अब हरित भवन अवधारणा (ग्रीन बिल्डिंग कंसेप्ट) पर जोर दिया जा रहा है। इससे प्रदूषण के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है, वहीं इससे बिजली- पानी का कम से कम उपयोग तथा प्रदूषण कम होने से भी इसका चलन बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। इसमें कचरा निस्तारण और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के भी कारगर उपाय होंगे। ऐसे मकानों में अपेक्षाकृत करीब 10 डिग्री तक तापमान को कम कर सकेंगे।विकास की अलग तरह की अवधारणा और प्राथमिकताओं ने बीते कुछ सालों में ही हमारे सामने कई बड़े पर्यावरणीय संकट खड़े कर दिए हैं। ये संकट अब हमारे जीवन और सेहत के लिये ही भारी पड़ने लगे हैं। इसी तथाकथित विकास में लगातार निर्माण प्रक्रिया से प्रकृति और पर्यावरण को हो रहे नुकसान को कम करने की दिशा में सबसे कारगर साबित हो रही है ग्रीन बिल्डिंग या हरित भवन की अवधारणा। आने वाले भविष्य के लिये यह सबसे जरूरी कदम है।
ग्रीन बिल्डिंग कंसेप्ट भारत जैसे देशों के लिये नया हो सकता है लेकिन विदेशों में इसका चलन करीब 20 साल पहले ही शुरू हो चुका है। अच्छी बात यह है कि हमारे देश में भी अब इसकी तरफ लोगों और खासकर बिल्डर्स का ध्यान गया है। फिलहाल दुनिया में भारत पीछे है। इसमें अमेरिका पहले और चीन दूसरे स्थान पर है। देश के अलग-अलग शहरों में करीब तीन हजार से ज्यादा ग्रीन बिल्डिंग के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। बीते पाँच सालों में ही बेंगलुरु, हैदराबाद, पंचकूला तथा चंडीगढ़ के साथ इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में भी इसे लेकर लोगों की उत्सुकता बढ़ी है। इसके लिये बकायदा इंडियन ग्रीन बिल्डिंग कौंसिल अलग-अलग शहरों में जाकर बिल्डर्स और लोगों तक इसके फायदे गिना रहे हैं।
ग्रीन बिल्डिंग यानी हरित भवन खासतौर पर पर्यावरण को ही ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। ये पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाते हैं और उर्जा के बेतहाशा क्षय को भी रोकते हैं। बिगड़ते हुए पर्यावरण के नुकसानों को देखते हुए इनमें उर्जा और पानी बचाने पर जोर होता है। इनके आस-पास बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाए जाते हैं ताकि इसके तापमान को नियंत्रित किया जा सके। हमारे देश में हरियाली को करीब 30 से 35 फीसदी तक बढ़ाने की जरूरत है, जबकि सिंगापुर जैसी छोटी जगह पर हरियाली 49 फीसदी तक है। इनमें प्रकृति और पर्यावरण के नजरिए से यह ख़ास तौर पर ध्यान रखा जाता है कि यहाँ रहने वाले लोगों को उजाले और साफ़ हवा के लिये बिजली और अन्य संसाधनों का इस्तेमाल कम से कम करना पड़े। इनका तापमान भी ठंडा बना रहता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन सब फायदों के बाद भी इसकी लागत सामान्य मकानों की कीमत के मुकाबले महज तीन फीसदी ही ज्यादा होगी यानी बहुत कम अंतर।
ग्रीन कंसेप्ट के मकानों में पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे सूरज का उजाला मकान के अधिकांश हिस्से को रोशन कर सके ताकि बिजली की खपत कम हो सके। रात में जहाँ जरूरी हो वहाँ भी कितने वाट का बल्ब या ट्यूबलाइट जरूरी है तथा जहाँ जरूरी नहीं हो वहाँ खपत कम हो, इसके लिये भी ध्यान रखा जाता है। इसी तरह खिड़कियाँ आदि ऐसी बनाई जाती हैं कि लगातार हवा मिलती रहे। ऐसे मकानों में प्राकृतिक हवा के प्रवेश और निकासी के लिये जतन किए जाते हैं, इससे पंखें, कूलर और एसी चलाए बिना भी आसानी से प्राकृतिक हवा हर जगह मिलती रहे। गर्मियों के दिनों में बिना किसी संसाधन के मकान को ठंडा रखे जाने की तकनीक भी इसमें होती है। फ्लाई एश की टाइल्स अपेक्षाकृत ठंडी होती है और गर्मियों के दिनों में जब गर्म हवा और धूप की वजह से मकान की बाहरी दीवारें काफी गर्म हो जाती है तो ऐसे में भी फ्लाई एश अंदर की सामान को ठंडा बनाए रखती है। इसके अलावा भूजल स्तर को बढ़ाने के लिये इसमें प्राकृतिक रीचार्ज की तकनीकों तथा सीवरेज की अत्याधुनिक तकनीकों का भी इसमें उपयोग किया जाता है। इनके निर्माण में भूकम्परोधी तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इन सब वजहों से यह ख़ासा लोकप्रिय हो रहा है।
इनमें पानी की बचत पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया है। इनमें वाटर रिचार्जिंग के साथ पानी के पुनरुपयोग पर भी जोर दिया गया है। सीवरेज ट्रीटमेंट कर दैनिक उपयोग के लिये मकान में इस्तेमाल किए जा रहे पानी को साफ़ बनाकर इसे रिसायकिल किया जा सकेगा। इसमें पेड़ पौधों के लिये भी काफी बड़ी जगह रखी जाती है, इसके साथ ही बालकनी, खिड़की, गैलरी, छत और ओपन टेरेस में भी गमलों के जरिए छोटे-छोटे पौधों को लगाया जाने का प्रावधान किया गया है। इस तरह के प्रोजेक्ट में बिजली की बचत के लिये सौर उर्जा का उपयोग करने के लिये सोलर प्लेट भी लगाई जा रही हैं।
पंचकूला के आईटी पार्क में बीते साल ऐसी ही एक ग्रीन बिल्डिंग बनकर तैयार हो चुकी है। इसमें डबल ग्लास पैनल, फ्लाई ऐश स्लेब तथा सोलर पेनल के साथ सभी बारीकियों का ध्यान रखा गया है। इसमें कई आईटी कम्पनियों के दफ्तर हैं। यहाँ काम करने वाले अधिकांश युवा कर्मी हैं, इन्हें इसमें काम करना बेहद रास आ रहा है। वे बताते हैं कि इस बिल्डिंग में काम करने का अपना अलग सुकून है। वे यहाँ बेहतर और उर्जा से ओत प्रोत महसूस करते हैं। यह ऊर्जा संरक्षण का भी नायाब नमूना है। वहीं यहाँ करीब दर्जन भर से ज्यादा प्रोजेक्ट पर भी काम चल रहा है।
इन दिनों बड़े शहरों के बिल्डर्स इन ईकोफ्रेंडली ग्रीन बिल्डिंग के फायदे अपने ग्राहकों को बताकर उन्हें इसके लिये प्रेरित भी कर रहे हैं। यह पर्यावरण, बिल्डर्स और ग्राहकों तीनों के लिये ही फायदे का सौदा साबित हो रहा है। इसका चलन बड़े महानगरों के साथ ही देश के दूसरे बड़े शहरों में तेजी से बढ़ रहा है। इनमें से कई प्रोजेक्ट तो बनकर तैयार भी हो चुके हैं। सरकार भी इसे बढ़ावा देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। कुछ बड़ी सरकारी बिल्डिंग को भी ग्रीन बिल्डिंग ही बनाया जा रहा है। 2025 तक इसका दायरा और बढ़ाने के लिये विभिन्न शहरों में इसके लिये कांफ्रेंस की जा रही हैं, तो आर्किटेक्ट विद्यार्थियों को भी इसके फायदे बताए जा रहे हैं। सरकारें भी इस दिशा में काम कर रही है।
हालाँकि कुछ बिल्डर्स अपने प्रोजेक्ट में सिर्फ ग्रीन शब्द जोड़कर ही अपने ग्राहकों को धोखा दे रहे हैं। उनके प्रोजेक्ट में ऐसी तकनीकें शामिल नहीं है। लेकिन ग्राहकों को इसके मायने गम्भीरता से समझने की जरूरत है और जागरूक होने की भी। हमने अब तक पर्यावरण को जिस मनमाने ढंग से बर्बाद किया है, उसे अब गम्भीरता से सुधरने की दिशा में ग्रीन बिल्डिंग एक जरूरी कदम साबित हो सकता है। इसके लिये इंडियन ग्रीन बिल्डिंग कौंसिल ने बकायदा रजिस्ट्रेशन और रेटिंग जैसी व्यवस्था भी लागू की है और ग्राहक इनसे संतुष्ट हो सकता है।
हमारे यहाँ एक तरफ जहाँ हरियाली और बरसात तेजी से घट रहे हैं, वहीं हवा भी लगातार जहरीली होती जा रही है। बीते दिनों कुछ शहरों में वायु और जल प्रदूषण के जो भयावह आँकड़े हमारे सामने आए हैं, उनसे साफ़ है कि अब सिर्फ बातों से हालात सुधरने वाले नहीं है। अब हमें नए सिरे से इस पर एक्शन की जरूरत है। हमारे यहाँ कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बड़ी तादात में हो रहा है। हमने शहरों में सीमेंट-कांक्रीट के बड़े-बड़े जंगल तो खड़े कर लिये पर हम अपने जीवन के लिये सबसे जरूरी पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुँचाते रहे। हम पेड़ों को लगातार काटते रहे पर कभी एक पौधे को पेड़ बनाने के बारे में नहीं सोचा। हमने अपनी नदियाँ गंदी कर दी पर कभी इसे साफ़-सुथरा बनाने का नहीं सोचा।
हमने बरसात का पानी व्यर्थ ही बह जाने दिया पर कभी उसे सहेजने की दिशा में कोई पहल नहीं की। हमें नलों से पानी क्या मिलने लगा हमने अपने प्राकृतिक कुएँ-कुण्डियाँ ही बिसरा दी, उन्हें कूड़ेदान में तब्दील कर दिया। इतना ही नहीं हमने अपने सांस लेने के लिये सबसे जरूरी हवा को भी कभी साफ़ बनाए रखने पर सोचा नहीं और न कोई कदम उठाया। यही वजह है कि शहर अब लोगों के रहने लायक नहीं बचे। उनमें न पर्याप्त पानी है और न ही साफ़-सुथरी ताज़ी हवा। गर्मियों के दिनों में तो शहरों के कई मकान भट्टी की तरह तपते हैं। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि हम इस नई पहल का स्वागत करें और इसे मकान तक ही सीमित नहीं रहने दें बल्कि इससे एक कदम आगे बढ़कर हमारे आस-पास भी ऐसे जतन करें ताकि हमारे पर्यावरण को साफ़-सुथरा और रहने लायक बनाया रखा जा सके।
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