जहाँ तक नदी के पश्चिमी किनारे पर तटबन्धों का सवाल है उसके बारे में कोई मतभेद नहीं है। सवाल इस बात का है कि अगर बांध की ऊँचाई काफी ज्यादा होती है तो तटबन्धों के आकार को बदलना पड़ सकता है। जब तक बांध के बारे में फैसला नहीं होता तब तक तटबन्धों पर कोई फैसला करना मुमकिन नहीं होगा। फिर भी सरकार लोगों की भावनाओं से पूरी तरह वाकिफ है और इस परियोजना को शुरू करने के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही है।
उधर सरकार इस सिकुड़ी-पिचकी योजना पर अमल कर सकने की स्थिति में नहीं थी और जनता इसे सरकार पर शक की नीयत से देख रही थी। जय नारायण झा ‘विनीत’ ने बिहार विधान सभा में प्रश्न उठाया कि कोसी और उसकी विध्वंसलीला को रोकने में सरकार को और कितना समय लगेगा? तत्कालीन सिंचाई मंत्री, बिहार राज्य, का जवाब था कि, ‘...दिल्ली में सिंचाई और शक्ति मंत्रालय में 22 जुलाई 1953 को एक बैठक हुई थी जिसमें सामान्यतः यह विचार प्रकट किया गया कि बांध या नहर के लिए बेलका ही सबसे उपयुक्त स्थान होगा और बाढ़ की भयंकरता की रोकथाम करने के लिए इस सम्बन्ध में सी.डब्ल्यू. पी.सी. को पूरे पैमाने पर जाँच-पड़ताल करने को कहा गया। ...हम आशा करते हैं कि सन् 1953 में इसका काम शुरू हो जायेगा।’ उधर लहटन चौधरी को शक था कि बेलका योजना स्थगित हो गई है मगर सरकार को ऐसी कोई सूचना नहीं थी।लहटन चौधरी ने बिहार विधान सभा में अपनी निराशा व्यक्त करते हुये कहा था कि ‘यह सब कैसी भूल-भुलैयाँ है? एक के बाद दूसरी स्कीम बनाई जाती है और वह मिटा दी जाती है। एक एक्सपर्ट के बाद दूसरा एक्सपर्ट, दूसरे के बाद तीसरा और तीसरे के बाद चौथा एक्सपर्ट आता रहता है, किन्तु न जाने कब यह स्कीम लागू होगी और सरकार का जो वादा है यह पूरा भी होगा या नहीं? बेलका डैम के बारे में यह अपील की जा रही है कि 17 वर्षों में बालू जमा रखने वाला हिस्सा भर जायेगा और इतनी अवधि के लिए करोड़ों रुपये लगाना ठीक नहीं है। पर यह कोई नई बात नहीं...। फिर आज एकाएक 17 वर्षों में भर जाने के प्रश्न को नया बता कर योजना क्यों छोड़ी जा रही है।’
उधर विधायक रमेश झा ने शिकायत की कि कुछ दिन पहले सिंचाई मंत्री ने बताया था कि भविष्य में बेलका डैम बनेगा और कुछ दिनों बाद उन्हीं की अध्यक्षता में पटना में एक मीटिंग हुई जिसमें केन्द्र सरकार के एक एक्सपर्ट ने बताया कि यह बांध बन पायेगा, यह कोई जरूरी नहीं है। एक ओर केन्द्र सरकार पार्लियामेन्ट में बयान देती है कि बांध नहीं बनेगा तो दूसरी ओर राज्य सरकार विधान सभा में कहती है कि बेलका बांध बनेगा। अब किसको सही माना जाय?
योजनाएँ बनती रहीं, आवाजें उठती रहीं, आश्वासन दिये जाते रहे और कोसी अपनी गति से बहती रही यहाँ तक कि क्षेत्र से एक गैर-सरकारी प्रतिनिधि मंडल 11 अगस्त 1953 को पंडित नेहरू से मिलने और यह बताने के लिए गया कि सरकार की टाल-मटोल वाली नीति से पार्टी की छवि को कितना नुकसान पहुँच रहा है। इस प्रतिनिधि मंडल में हरिनाथ मिश्र, सत्येन्द्र नारायण अग्रवाल तथा ललित नारायण मिश्र आदि बहुत से लोग थे। यह लोग पं. नेहरू के साथ-साथ वी.टी. कृष्णमाचारी, उप-मंत्री, और कँवर सेन, उपाध्यक्ष, केन्द्रीय जल तथा विद्युत आयोग से मिले। पर बेलका योजना पर विशेषज्ञों की एक बैठक में पुनर्विचार होना था।
इस तरह के दबावों के चलते केन्द्र सरकार की ओर से जयसुख लाल हाथी को लोकसभा में आश्वासन देना पड़ा (9 सितम्बर 1953) कि, “...खोज-बीन अभी भी जारी है और यह उम्मीद की जाती है कि आने वाले 6 महीनों के भीतर इसे पूरा कर लिया जायेगा। तभी यह बताना मुमकिन हो पायेगा कि सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए कौन सी योजना लागू की जायेगी। जहाँ तक नदी के पश्चिमी किनारे पर तटबन्धों का सवाल है उसके बारे में कोई मतभेद नहीं है। सवाल इस बात का है कि अगर बांध की ऊँचाई काफी ज्यादा होती है तो तटबन्धों के आकार को बदलना पड़ सकता है। जब तक बांध के बारे में फैसला नहीं होता तब तक तटबन्धों पर कोई फैसला करना मुमकिन नहीं होगा। फिर भी सरकार लोगों की भावनाओं से पूरी तरह वाकिफ है और इस परियोजना को शुरू करने के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही है।” 31 अक्टूबर और 1 नवम्बर 1953 को पं. नेहरू ने एक बार फिर उत्तर बिहार का दौरा किया और इससे कार्यकलाप में कुछ तेजी जरूर आई।
आखिरकार भारत सरकार द्वारा एक दूसरी समिति गठित की गई जिससे कोसी परियोजना के तत्कालीन स्वरूप पर राय मांगी गई। वेंकटा कृष्ण अय्यर-चीफ इंजीनियर, आन्ध्र प्रदेश, कँवर सेन, अध्यक्ष, केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग, एम.पी. मथरानी, चीफ इंजीनियर, बिहार, तथा एन.के. बोस-निदेशक, सिंचाई शोध संस्थान, कलकत्ता, इस समिति के सदस्य थे। इस चारों सदस्यों ने क्षेत्र का 10 दिसम्बर 1953 को हवाई सर्वेक्षण किया और 13 दिसम्बर 1953 को अपना अन्तिम प्रतिवेदन सरकार को दिया जिसके आधार पर गुलजारी लाल नन्दा ने 14 दिसम्बर 1953 को लोकसभा में कोसी योजना का प्रारूप बताया जिसके आधार पर वर्तमान निर्माण कार्य हुआ है। इसे 1953 योजना के नाम से शोहरत मिली। इस योजना को केन्द्रीय जल तथा विद्युत आयोग की 1953 योजना भी कहते हैं (चित्र 2.1)। इस योजना के निम्न उद्देश्य थे।
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