केंद्रीय जल संसाधन विकास एवं गंगा पुनर्जीवन मंत्री उमा भारती जब गंगा दशहरा के मौके पर हरिद्वार के ‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ पहुँचीं तो उन्होंने गंगा समेत देश की दूसरी बड़ी नदियों को लेकर योजनाओं का खाका 90 दिनों के भीतर खींचने का ऐलान कर दिया। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि तीन साल पहले इसी ‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन से गंगा की अविरलता को लेकर अनशन किया था और आज सौभाग्य से गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय की जिम्मेवारी उन्हें सौंपी गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह उमा भारती का भी गंगा से पुराना लगाव है। भाजपा में वापसी के बाद उन्होंने अपनी सियासी पारी को गंगा के सहारे ही आगे बढ़ाया था। गंगोत्री से गंगासागर तक चले अपने ‘समग्र गंगा अभियान’ की नींव उन्होंने हरिद्वार के ‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ से रखी थी। इसी स्थान पर उन्होंने गंगा को लेकर आठ दिन तक अनशन भी किया था।
उमा भारती के हरिद्वार दौरे से आशा लगाई जा रही थी कि वह गंगा को लेकर कुछ बड़े ऐलान कर सकती हैं लेकिन अब वह 10 दिनों के बाद नदियों के लिये बनाई जा रही योजनाओं का प्रारूप तैयार हो जाने के बाद ही इस विषय पर कुछ बोलेंगी। हालाँकि इस मौके पर उन्होंने मिशन गंगा को कामयाब बनाने के लिये संतों का सहयोग लेने की बात जरूरी कही। इसी सिलसिले में वह मंत्री बनने के बाद पहली बार बाबा रामदेव के आश्रम पतंजलि योग संस्थान पहुँचीं। रामदेव भी लंबे समय से गंगा के लिये आंदोलन चलाते रहे हैं। उमा के गंगा अभियान पर भरोसा जताते हुए रामदेव ने कहा कि माँ गंगा के लिये अब तक जो भी योजनाएं बनाई गर्इं, वे सभी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गर्इं लेकिन अब उमा भारती के नेतृत्व में यह काम पूरा होगा।
उत्तराखंड में बाँधों के भविष्य को लेकर उठ रही आशंकाओं को दूर करते हुए उन्होंने कहा कि वह कभी भी बाँधों की विरोधी नहीं रहीं बल्कि उन्होंने हमेशा गंगा की अविरल धारा बहने की वकालत की है। उनके अनुसार गंगा की अविरलता, बाँध निर्माण व अन्य विकास कार्यों के समन्वय के लिये आईआईटी रुड़की और कानपुर के वैज्ञानिकों की एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति नई तकनीक के आधार पर नदी जल पर बाँध निर्माण व अन्य विकास कार्यों पर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
जिन पाँच राज्यों में गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है, प्रधानमंत्री उन्हीं में से एक, उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प उन्होंने चुनाव के पहले ही ले लिया था। ऐसे में गंगा की सफाई उनकी प्राथमिकता बन चुकी है। जल संसाधन मंत्री के मुताबिक, गंगा को मॉडल बनाकर देश की प्रमुख पवित्र नदियों की सफाई भी की जाएगी। गंगा को निर्मल और अविरल बनाने की योजना मौसम, स्थल और वर्षा के आधार पर की जाएगी। हालाँकि प्रधानमंत्री गंगा को साबरमती मॉडल के आधार पर साफ किए जाने की बात करते रहे हैं। गौरतलब है कि एक समय जब साबरमती लगभग सूख चुकी थी तो उसमें नर्मदा का पानी छोड़कर उसे पुनर्जीवित किया गया था।
दरअसल जिस गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाए जाने की योजना बनाई जा रही है, वह गोमुख से निकलने के बाद पहाड़ों से होते हुए जब मैदान में उतरती है तो हरिद्वार के बाद उधार के जल पर ज्यादा निर्भर रहती है। जिन सहायक नदियों की मदद से वह आगे का सफर तय करती है, उनकी हालत और भी चिंताजनक बनी हुई है। नतीजतन मैदानी इलाकों में गंगा में बहाए जाने वाले मानव और जानवरों के सड़े-गले शवों और सीवरों से निकलने वाले गंदगी के चलते उसकी जीवनी शक्ति खत्म-सी हो गई है।
तमाम स्थानों पर गंगाजल आचमन तो दूर, नहाने और सिंचाई के लायक तक नहीं रह जाता है। आज गंगा इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि तमाम पर्वों पर गंगा-स्नान करने के लिये सरकार से अतिरिक्त पानी छोड़ने और उसमें मिलने वाली टैनरियों को बंद कराने की मांग करनी पड़ती है।
ऐसे में गंगा के लिये बनाई जाने वाली योजनाओं के साथ उसके प्रवाह को सुनिश्चित करने वाली प्रमुख सहायक नदियों यमुना, रामगंगा, करनाली, घाघरा, ताप्ती, गंडक, कोसी, काक्षी, चंबल, सोन, बेतवा और दक्षिण तोस के दिन बहुरने की बात भी सामने आ रही है। अब तक केंद्र एवं राज्य सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ गंगा एक्शन प्लान पर ही रहता था और ये छोटी सहायक नदियाँ उपेक्षित हो जाया करती थीं। छोटी नदियों को संरक्षित करने की मांग समय-समय पर न सिर्फ तमाम स्वयंसेवी संस्थाएं बल्कि संबंधित अधिकारी भी करते रहे हैं। चूँकि प्रधानमंत्री ने 100 दिन के एजेंडे में गंगा का सफाई अभियान प्रमुखता से शामिल किया गया है इसलिये अब इसे गति प्रदान करने के लिये केंद्र के चार मंत्रालयों के सचिवों का एक समूह बनाया गया है जो गंगा की सफाई का प्रारूप बनाकर एक महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
‘गंगा स्पर्श अभियान’ की ब्रांड एंबेसडर रहीं हेमा मालिनी ने गंगा सफाई अभियान के साथ यमुना को भी जोड़े जाने की मांग की है। मथुरा से सांसद बनीं हेमा मालिनी ने लोकसभा चुनाव के दौरान मथुरावासियों से यमुना की सफाई के नाम पर वोट मांगे थे, लिहाजा अब उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर गंगा शुद्धि अभियान में यमुना को भी शामिल करने की अपील की है।
हेमा मालिनी के मुताबिक प्रधानमंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि उनकी योजना न सिर्फ यमुना बल्कि दूसरी सभी नदियों को भी प्रदूषणमुक्त बनाने की है। गौरतलब है कि जिस समय हेमा मालिनी को उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने ‘गंगा स्पर्श अभियान’ के लिये ब्रांड एंबेसडर बनाया था, उसी दौरान उमा ने भी गंगा की अविरलता के लिये अपनी छह सूत्री मांग के साथ दिव्य प्रेम सेवा मिशन में अनशन किया था। उन्होंने श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के कारण अपने मूल स्थान से हटाए जा रहे 52 शक्तिपीठों में से एक धारी देवी मंदिर को यथास्थान बरकरार रखने, हिमालय में बन रही जल विद्युत परियोजनाओं की पुनर्समीक्षा करने, गंगा की अविरलता को बनाए रखने, गंगा की स्वच्छता के लिये कानून बनाने, गंगा नदी प्राधिकरण को सक्रिय करने व जल विद्युत परियोजनाओं से उत्तराखंड के लोगों को हो रहे लाभ व हानि की समीक्षा की मांग की थी।
उमा भारती से पहले संत सानंद (पूर्व नाम - प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल) ने भी गंगा की अविरल धारा को कायम रखने के लिये उत्तरकाशी में कई दिनों तक अनशन किया था। वहीं मातृसदन के स्वामी निगमानंद ने तो गंगा में अवैध खनन को रुकवाने के लिये अपनी जान तक न्यौछावर कर दी थी। गौरतलब है कि मातृ सदन पिछले डेढ़ दशक से गंगा में खनन रुकवाने के लिये लंबी लड़ाई लड़ता चला आ रहा है। अब जबकि उमा भारती गंगा को बचाने के लिये संतों का सहयोग मांगने निकल पड़ी हैं, तो साधु समाज भी इस मुद्दे पर सक्रिय होता नजर आ रहा है।
गंगा को निर्मल-अविरल बनाने के लिये दिल्ली कालकापीठाधीश्वर और गंगा रक्षा अभियान के राष्ट्रीय संयोजक महंत सुरेंद्रनाथ अवधूत 15 जून को दिल्ली में संत सम्मेलन आयोजित करवाने जा रहे हैं। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाए जाने के लिये किए जा रहे इस सम्मेलन में न सिर्फ देश से बल्कि नेपाल, फिजी आदि देशों से भी संत शामिल होंगे। नरेंद्र मोदी की तरह महंत सुरेंद्रनाथ को भरोसा है कि जल संसाधन मंत्री उमा भारती के नेतृत्व में गंगा का सफाई अभियान पूरी तरह से सफल साबित होगा।
मोदी के गंगा प्रेम को देखते हुए जहाँ तमाम धार्मिक-सामाजिक संगठन भी अब उसे निर्मल-पावन बनाने के लिये सक्रिय हो गए हैं, वहीं केंद्र सरकार की समयबद्ध नीति से गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा-भूमि का जम कर दोहन करने वाले माफियाओं में हड़कंप मच गया है। गौरलतब है कि उत्तर प्रदेश, बिहार व पश्चिम बंगाल की हजारों एकड़ जमीन इन्हीं माफियाओं के कब्जे में है। खास बात यह कि राज्य सरकारों में इन माफियाओं की अच्छी खासी पैठ है। वैसे तो उमा भारती ने समग्र गंगा यात्रा के दौरान गंगा की छाती पर हुए इन कब्जों को खुद देखा था लेकिन गंगा एक्शन प्लान को अंतिम रूप देने से पहले मंत्रालय ने एक सैटेलाइट सर्वे कराने का फैसला किया है।
अब चूँकि राजग सरकार के पायलट प्रोजेक्ट गंगा के कायाकल्प का काम शुरू हो चुका है तो प्रधानमंत्री के गंगा प्रेम को देखते हुए निजी कंपनियों ने भी वाराणसी के दशाश्वमेध घाट समेत दस प्रमुख घाटों का कायाकल्प करने के लिये मदद की पेशकश की है। इनमें ताज और ललित समूह सहित पर्यटन क्षेत्र की कई बड़ी कंपनियाँ शामिल हैं।
गौरतलब है कि गंगा को पर्यटन और परिवहन के माध्यम से विकसित करने की बात की जा रही है। केंद्र सरकार का गंगा के घाटों के सौंदर्यीकरण के साथ-साथ वाराणसी से हुगली तक यात्री और मालवाहक नौकाएं चलाने का भी इरादा है। इस जल मार्ग पर 11 टर्मिनल बनाए जाएंगे, जिसमें से एक पटना में होगा। इसी के साथ गंगा पर हर 100 किमी पर एक बाँध बनाए जाने का भी प्रस्ताव है। नावों के परिचालन के लिये 45 मीटर चौड़े और तीन से पाँच मीटर गहरे कॉरीडोर बनाये जाएँगे। इस पूरी योजना पर लगभग 6000 करोड़ रु. खर्च होने का अनुमान है।
हालाँकि गंगा, यमुना, गोदावरी समेत देश की तमाम नदियों के संरक्षण के लिये बीते दस वर्षों में 2600 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि खर्च करने के बावजूद उनमें अब तक कोई बदलाव नहीं आया है।
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