22 अप्रैल कैसे बना पृथ्वी दिवस

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22 अप्रैल 2016, पृथ्वी दिवस पर विशेष


भारतीय कालगणना दुनिया में सबसे पुरानी है। इसके अनुसार, भारतीय नववर्ष का पहला दिन, सृष्टि रचना की शुरुआत का दिन है। आईआईटी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. बिशन किशोर कहते हैं कि “यह एक तरह से पृथ्वी की जन्मदिन की तिथि है। तद्नुसार इस भारतीय नववर्ष पर अपनी पृथ्वी एक अरब, 97 करोड़, 29 लाख, 49 हजार, 104 वर्ष की हो गई।

वैदिक मानव सृष्टि सम्वत् के अनुसार, मानव उत्पत्ति इसके कुछ काल बाद यानी अब से एक अरब, 96 करोड़, आठ लाख, 53 हजार, 115 वर्ष पूर्व हुई। जाहिर है कि 22 अप्रैल, पृथ्वी का जन्म दिवस नहीं है। चार युग जब हजार बार बीत जाते हैं, तब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है। इस एक दिन के शुरू में सृष्टि की रचना प्रारम्भ होती है और संध्या होते-होते प्रलय।

ब्रह्मा जी की आयु सौ साल होने पर महाप्रलय होने की बात कही गई है। रचना और प्रलय... यह सब हमारे अंग्रेजी कैलेण्डर के एक दिन में सम्भव नहीं है। स्पष्ट है कि 22 अप्रैल, पृथ्वी का प्रलय या महाप्रलय दिवस भी नहीं है। फिर भी दुनिया इसे ‘इंटरनेशनल मदर अर्थ डे’ यानी ‘अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी का दिन’ के रूप में मनाती है। हम भी मनाएँ, मगर यह तो जानना ही चाहिए कि क्या है इसके सन्दर्भ और मन्तव्य? मैंने यह जानने की कोशिश की है; आप भी करें।

 

एक विचार


सच है कि 22 अप्रैल का पृथ्वी से सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं है। जब पृथ्वी दिवस का विचार सामने आया, तो भी पृष्ठभूमि में विद्यार्थियों का एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन था। वियतनामी यु़द्ध विरोध में उठ खड़े हुए विद्यार्थियों का संघर्ष! 1969 में सान्ता बारबरा (कैलिफ़ोर्निया) में बड़े पैमाने पर बिखरे तेल से आक्रोशित विद्यार्थियों को देखकर गेलॉर्ड नेलसन के दिमाग में ख्याल आया कि यदि इस आक्रोश को पर्यावरणीय सरोकारों की तरफ मोड़ दिया जाए, तो कैसा हो।

नेलसन, विसकोंसिन से अमेरिकी सीनेटर थे। उन्होंने इसे देश को पर्यावरण हेतु शिक्षित करने के मौके के रूप में लिया। उन्होंने इस विचार को मीडिया के सामने रखा। अमेरिकी कांग्रेस के पीटर मेकेडलस्की ने उनके साथ कार्यक्रम की सह अध्यक्षता की। डेनिस हैयस को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया।

 

आवश्यकता बनी विचार की जननी


खंगाला तो पता चला कि साठ का दशक, हिप्पी संस्कृति का ऐसा दशक था, जब अमेरिका में औद्योगीकरण के दुष्प्रभाव दिखने शुरू हो गए थे। आज के भारतीय उद्योगपतियों की तरह उस वक्त अमेरिकी उद्योगपतियों को भी कानून का डर, बस! मामूली ही था।

यह एक ऐसा दौर भी था कि जब अमेरिकी लोगों ने औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से उठते गन्दे धुएँ को समृद्धियों के निशान के तौर पर मंजूर कर लिया था। इसी समय इस निशान और इसके कारण सेहत व पर्यावरण पर पड़ रहे असर के खिलाफ जन जागरुकता की दृष्टि से रचित मिस रचेल कार्सन की लिखी एक पुस्तक की सबसे अधिक बिक्री ने साबित कर दिया था कि पर्यावरण को लेकर जिज्ञासा भी जोर मारने लगी है।

 

विचार को मिला दो करोड़ अमेरिकियों का साथ


गेलॉर्ड नेलसन की युक्ति का नतीजा यह हुआ कि 22 अप्रैल,1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका की सड़कों, पार्कों, चौराहों, कॉलेजों, दफ्तरों पर स्वस्थ-सतत पर्यावरण को लेकर रैली, प्रदर्शन, प्रदर्शनी, यात्रा आदि आयोजित किए।

.विश्वविद्यालयों में पर्यावरण में गिरावट को लेकर बहस चली। ताप विद्युत संयन्त्र, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयाँ, जहरीला कचरा, कीटनाशकों के अति प्रयोग तथा वन्यजीव व जैवविविधता सुनिश्चित करने वाली अनेकानेक प्रजातियों के खात्मे के खिलाफ एकमत हुए दो करोड़ अमेरिकियों की आवाज़ ने इस तारीख को पृथ्वी के अस्तित्व के लिये अहम बना दिया। तब से लेकर आज तक यह दिन दुनिया के तमाम देशों के लिये खास ही बना हुआ है।

 

आगे बढ़ता सफर


पृथ्वी दिवस का विचार देने वाले गेलॉर्ड नेलसन ने एक बयान में कहा - “यह एक जुआ था; जो काम कर गया।’’ सचमुच ऐसा ही है। आज दुनिया के करीब 184 देशों के हजारों अन्तरराष्ट्रीय समूह इस दिवस के सन्देश को आगे ले जाने का काम कर रहे हैं। वर्ष 1970 के प्रथम पृथ्वी दिवस आयोजन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के दिल में भी ख्याल आया कि पर्यावरण सुरक्षा हेतु एक एजेंसी बनाई जाए।

वर्ष 1990 में इस दिवस को लेकर एक बार उपयोग में लाई जा चुकी वस्तु के पुर्नोपयोग का ख्याल व्यवहार में उतारने का काम विश्वव्यापी सन्देश का हिस्सा बना। 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन ने पूरी दुनिया की सरकारों और स्वयंसेवी जगत में नई चेतना व कार्यक्रमों को जन्म दिया। एक विचार के इस विस्तार को देखते हुए गेलॉर्ड नेलसन को वर्ष 1995 में अमेरिका के सर्वोच्च सम्मान ‘प्रेसिडेन्सियल मेडल ऑफ फ्रीडम’ से नवाजा गया। नगरों पर गहराते संकट को देखते हुए अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी का यह दिन ‘क्लीन-ग्रीन सिटी’ के नारे तक जा पहुँचा है।

 

मन्तव्य


अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी के एक दिन - 22 अप्रैल के इस सफरनामें को जानने के बाद शायद यह बताने की जरूरत नहीं कि पृथ्वी दिवस कैसे अस्तित्व में आया और इसका मूल मन्तव्य क्या है। आज, जब वर्ष 1970 की तुलना में पृथ्वी हितैषी सरोकारों पर संकट ज्यादा गहरा गए हैं कहना न होगा कि इस दिन का महत्व कम होने की बजाय, बढ़ा ही है।

इस दिवस के नामकरण में जुड़े सम्बोधन ‘अन्तरराष्ट्रीय माँ’ ने इस दिन को पर्यावरण की वैज्ञानिक चिन्ताओं से आगे बढ़कर वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय संस्कृति से आलोकित और प्रेरित होने का विषय बना दिया है। इसका उत्तर इस प्रश्न में छिपा है कि भारतीय होते भी हम क्यों और कैसे मनाएँ अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस? इस पर चर्चा हिन्दी वाटर पोर्टल की पृथ्वी दिवस शृंखला के अगले किन्ही लेखों में। फिलहाल सिर्फ इतना ही कि 22 अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय माँ के बहाने खुद के अस्तित्व के लिये चेतने और चेताने का दिन है। आइए, चेतें और दूसरों को भी चेताएँ।

 

 

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Post By: RuralWater
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