पहाड़ी राज्य उत्तराखंड अप्रैल 2020 और मई के पहले सप्ताह से मौसम की गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है। बारिश, बर्फबारी और ओलावृष्टि की लगातार घटनाओं ने पहाड़ के किसानों को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
नकदी फसल और खाद्य फसलों को नष्ट कर देती है ओलावृष्टि, हिमपात, बारिश
14 अप्रैल 2020 को यमुना और गंगा घाटी में भारत ओलावृष्टि हुई थी। जिससे उत्तरकाशी का नौगांव, बड़कोट, चिन्यालीसौंड, भिलंगना क्षेत्र, घनसाली, प्रताप नगर, टिहरी का जाखनिधर क्षेत्र और पौड़ी के धुमाकोट क्षेत्र में सेब, खुमानी, आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती और टमाटर, आलू, मटर और खाद्य अनाज की फसलों में गेहूं, दालें और मक्का की फसल को काफी नुकसान पहुंचा।
यमुना घाटी में 15 अप्रैल 2020 को हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद खाद्य फसलों और नकदी फसलें बर्बाद हो गई थीं। यमुना नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया था। जिस कारण गंगानी में पुल के अभाव के कारण लोग वाहनों से ही यमुना नदी पार करते हैं।
दैनिक जयंत, 16 अप्रैल 2020
19 अप्रैल 2020 की दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार ‘लाॅकडाउन में प्रतिबंधों के कारण किसान मैदानी क्षेत्रों में खाद्य फसलों की कटाई नहीं कर पा रहे थे और मौसम में लगातार बदलाव ने भी उपज को प्रभावित किया है।
उत्तरकाशी और टिहरी जिले के मोरी और प्रताप नगर क्षेत्र को 21 अप्रैल 2020 को फिर से भारी बारिश और ओलावृष्टि की घटना का सामना करना पड़ा, जिससे सेब के फूल झड़ गए। अन्य कृषि उपज और किसानों की आजीविका भी प्रभावित हुई।
24 अप्रैल 2020 को फिर से यमुना घाटी में नौगाँव, बड़कोट, पुरोला में भारी बारिश हुई, जिससे फसलों को नुकसान पहुँचा। ग्रामीणों के अनुसार हर दिन रुक-रुक कर बारिश हो रही थी। नौगाँव क्षेत्र में भारी वर्षा के कारण सिंचाई और जल आपूर्ति संरचनाओं को नुकसान पहुंचा।
अप्रैल 2020 के अंतिम सप्ताह में राज्य भर में बार-बार होने वाली बारिश, बर्फबारी और ओलावृष्टि ने किसानों की स्थिति काफी प्रभावित किया।
SANDRP के साथ बातचीत में नौगांव में सुनारा गांव के तिलक रमोला ने कहा कि ‘नौगांव क्षेत्र के भाटिया, स्योरी, धारी कलोगी कुफलॉन फल बेल्ट में पिछले आधे महीने में ओलावृष्टि से तीन बार फल की कलियों को नष्ट किया है। उसके बाद पानल पट्टी में खांसी मोल्दा, पाॅन्टी क्षेत्र में सब्जी की फसलों को नुकसान हुआ है। इसी तरह मोरी, पुरोला, बंगाण के फलों की बेल्ट को भारी क्षति हुई है।’’ उनका यह भी कहना है कि पिछले कई वर्षों में इस प्रकार की ओलावृष्टि नहीं देखी है और ओलों का आकार भी सामान्य से बड़ा था। परिणामतः नकदी और खाद्य फसलें नष्ट हो गईं। इसके अतिरिक्त स्थानीय धाराओं में भारी बाढ़ आ रही थी, जिससे सुनारा गांव में सिंचाई चैनल, जल आपूर्ति पाइप और खेत की जमीन को भी नुकसान पहुंचा है। रमोला ने कहा कि अभी तक सरकार ने इस साल किसानों को मुआवजा देने के लिए कदम नहीं उठाए हैं। यहां तक कि आपदा राहत के तहत राशि (कुछ लोगों को पिछले वर्षों में मिली) कम है और शायद ही फसलों पर आने वाली मूल लागते इससे पूरी होती है। उन्होंने मुआवजा राशि बढ़ाए जाने की मांग की।
कृषि विभाग के सर्वेक्षण के अनुसार 29 अप्रैल 2020 तक लगभग 1679.41 हेक्टेयर भूमि पर किसानों को 4.10 करोड़ रुपये की फसल का नुकसान हुआ, जो कि ऋषिकेश में कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 50 प्रतिशत है।
29 अप्रैल 2020 को यमुना घाटी में नौगाँव क्षेत्र में अतिवृष्टि के कारण कृषि भूमि बह गई और पैदल रास्तों के साथ ही गौशालाओं को भी नुकसान पहुंचा।
इसके बाद 1 मई 2020 को राज्य के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में कई हिस्सों में भारी बर्फबारी हुई और बारिश से खाद्य और नकदी फसलों को काफी नुकसान पहुंचा। रुद्रप्रयाग में ग्रामीणों ने कहा कि मई के महीने में इस तरह की ओलावृष्टि कई सालों बाद देखने को मिली। बारिश और ओलों ने उत्तरकाशी के बडकोट में सड़कों और घरों को भी नुकसान पहुंचाया है।
1 मई 2020 को हिंदुस्तान हिंदी ने राज्य के 12 जिलों की जमीनी रिपोर्ट दिखाते हुए गैर-मौसमी वर्षा और बर्फबारी का नकदी फसलों और किसानों पर पड़े प्रभाव की विस्तृत जानकारी दी।
02 मई 2020 को यमुना घाटी में फिर से गंभीर मौसम की स्थिति देखी गई। ओलावृष्टि और तेज हवाओं ने न केवल बागवानी और सब्जियों की फसलों को नुकसान पहुंचाया, बल्कि क्षेत्र के घरों को भी नुकसान पहुंचाया।
2 मई 2020 को भी उत्तरकाशी और चमोली के कई ब्लाॅकों में बागवानी, नकदी फसल और खाद्य फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। जंगली जानवरों के आक्रमण से कृषि क्षेत्र की स्थिति काफी खराब हुई है।
2 मई को दो अलग-अलग रिपोर्टों ने ऋषिकेश में चंद्रभागा नदी के भिन्न भिन्न चित्रों को दिखाया, जबकि अमर उजाला की रिपोर्ट में बताया गया कि स्थानीय लोग न केवल चंद्रभागा नदी में एकत्रित हो रहे हैं, बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं कर रहे हैं।
दैनिक हिंदुस्तान (हिंदी) की रिपोर्ट में बताया गया कि उसी दिन शाम तक नदी में बाढ़ आ गई थी। नदी में बाढ़ को देखकर स्थानीय लोग चिंता में पड़ गए। लोगों का कहना है कि प्री-मानसून के महीनों में ये असामान्य था।
फिर दैनिक जागरण ने 3 मई की रिपोर्ट में भारी बारिश और ओलावृष्टि के बाद जैथा गदेरे और घुड़साल गदेरे में उफान की खबरों को प्रकाशित किया।
3 मई 2020 को भी मौसम में हो रहे अनियमित बदलाव नहीं रुके। राज्य भर में फलों, सब्जियों और पारंपरिक फसलों की खेती करने वालों किसानों को भारी बारिश और ओलावृष्टि से काफी नुकसान हुआ।
Hindustan, Dainik Jagran, Amar Ujala reports on massive damages to farm produces on account of severe weather conditions. (04 May 2020)
04 मई 2020 को भी यही स्थिति थी। यमुना घाटी में हवा के झोंके ने पेड़ों को उखाड़ फेंका, जिससे घरों को नुकसान पहुंचा। गंगा और यमुना में पानी बढ़ने से उत्तरकाशी में एप्रोच रोड बह गई, जबकि अस्थायी पुलिया खतरे में है। गोपेश्वर क्षेत्र में ओलावृष्टि से सब्जी और खाद्य फसलों को नुकसान पहुंचा। ऊंचे इलाके में रहने वाले लोगों को भारी बर्फबारी का सामना करना पड़ता है।
Hindustan reports 04 May 2020
कृषि और बागवानी विभाग के सर्वेक्षण के अनुसार (अमर उजाला, 05 मई 2020) अप्रैल से बारिश और ओलावृष्टि की घटनाओं के कारण 15908 हेक्टेयर में फूलों, मसालों, सब्जियों की फसल तबाह हो गई थी, जबकि 15878 हेक्टेयर भूमि पर फूलों, मसालों, सब्जियों और फलों सहित बागवानी फसलें तबाह हो गई थी। किसानों को लगभग 28 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा रिपोर्ट दर्ज किए जाने के बाद किसानों को मंडी समितियों के माध्यम से मुआवजा दिया जाएगा।
इस बीच, राज्य के विभिन्न हिस्सों में 6 मई 2020 को बारिश जारी रही। इससे उत्तरकाशी जिला और यमुना घाटी गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं।
पुरोला, नौगांव, बड़कोट में किसानों को फिर से बड़ा नुकसान हुआ। नौगांव में तेज बारिश हो रही थी, जिससे पहाड़ से मलबा आने से मार्ग बंद हो गया।
Dainik Jagram 07 May 2020
टिहरी, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, चमोली सहित गढ़वाल क्षेत्र के अन्य हिस्सों में भी बारिश और ओलावृष्टि हुई। टिहरी में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि ढलान से नीचे उडामांडा-रौता मोटर माग्र पर मलबा बहने से नालडूंगा गांव को खतरा पैदा हो गया है। बद्रीनाथ क्षेत्र में बर्फबारी हुई है।
Amar Ujala 08 May 2020
Dainik Jagram 07 May 2020
रुद्रप्रयाग में जखोली ब्लाॅक के ग्रामीणों ने कहा कि कि मौसमी जलधारा में आई बाढ़ से खेती की जमीन बह गई और मलबे ने फसल को बर्बाद कर दिया। ओलावृष्टि के कारण खेत बर्फ की सफेद चादर में बदल गए।
देहरादून के चकराता क्षेत्र की स्थिति भी उतनी ही खराब है, यहां ओलावृष्टि ने बड़े क्षेत्र में खेती की गतिविधियों को प्रभावित किया है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मई 2020 के पहले सप्ताह में राज्य के हर जिले में अधिक या अधिक से ज्यादा बारिश हुई है। मई 2020 के पहले 6 दिनों में राज्य में 34.4 मिमी बारिश हुई है, जो 10.2 मिमी के औसत से 237 प्रतिशत अधिक है। मई 2019 में 12.5 मिमी और 2018 में 17.3 मिमी बारिश हुई थी, जबकि 2017 2017 में राज्य में मई के महीने में 116.2 मिमी बारिश हुई। 2 साल बाद राज्य में मई महीने में इतनी बारिश हुई है।
Amar Ujala, 07 May 2020
मौसम विभाग देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह के अनुसार ‘मई माह में सर्वाधिक वर्षा का आंकड़ा 1933 193 मिमी है।’’ मौसम विभाग ने भी पाया कि अप्रैल और मई के महीने में राज्य में ओलावृष्टि और बारिश की घटनाएं सामान्य हैं।
IMD data on Rainfall distributation and departure in the state from March 01 to May 06, 2020.
इस बीच, 7 मई 2020 को भी भी बारिश और ओलावृष्टि की घटनाएं कम होनी नहीं दिखीं। रिपोर्ट के अनुसार, आम और लीची के 70 प्रतिशत उत्पादन को नुकसान पहुंचा है। बागेश्वर और चंपावत क्षेत्र के किसानों को भी मौसम की मार झेलनी पड़ी है।
चमोली के गैरसैंण और थराली में नकदी फसलें नष्ट हो गई। प्रभावित किसानों ने मुआवजे की मांग शुरू कर दी है। विपक्षी दल ने किसानों को 100 करोड़ रुपये के वित्तीय नुकसान का दावा किया है, जबकि सरकार 28 करोड़ का नुकसान होने का दावा कर रही है। कसानों को मुआवजा देने के लिए वर्तमान घटना को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग की गई है। इस बीच, मौसम विभाग ने 10-11 मई 2020 को फिर से ओलावृष्टि और बारिश की चेतावनी दी है।
पहाड़ी राज्य में ज्यादातर किसान अपनी आजीविका के लिए खेती कर रहे हैं, लेकिन बदलते मौसम के अनियमित पैटर्न ने उनकी आजीविका पर प्रभाव डाला है। प्री-मानसून में अतिवृष्टि और बारिश के कारण इस साल उनके लिए परिस्थितियां ज्यादा खराब होती जा रही हैं। हालांकि, राज्य और केंद्र सरकारें काफी हद तक किसानों की दुर्दशा और बदलती जलवायु परिस्थितियों के प्रति मौन हैं।
USDMA की वेबसाइट (http://www.usdma.uk.gov.in/) कहती है कि उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा संचालित किया जा रहा है, लेकिन उत्तराखंड के किसान जिस त्रासदी को झेल रहे हैं, उस बारे में वेबसाइट पर कोई रिपोर्ट या कार्य योजना नहीं है।
उत्तराखंड सरकार के पास आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र भी है, लेकिन इसकी वेबसाइट (http://dmmc.uk.gov.in/) पर भी कुछ नहीं है। इसी प्रकार उत्तराखंड सरकार के कृषि विभाग की वेबसाइट (http://agriculture.uk.gov.in/) पर भी इस बारे में कोई जानकारी या कार्य योजना नहीं है।
यहां पढ़ें मूल लेख - 2020 pre-monsoon rains, hails hit Uttarakhand farmers hard
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