16 साल की ग्रेटा थनबर्ग पर्यावरण को लेकर हमसे ज्यादा समझदार है

ग्रेटा थनबर्ग।
ग्रेटा थनबर्ग।

16 साल की उम्र में बच्चे क्या करते हैं? वो खेलते हैं, पढ़ाई करते हैं और अपने करियर में सोचते हैं। इस उम्र के बच्चों को पता नहीं होता है कि दुनिया में क्या चल रहा है? वो तो बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं और माता-पिता को भी लगता है कि बच्चों को अपना बचपन जीना चाहिए। जो सही भी है क्योंकि एक बार बचपन गया तो फिर वापस लौटकर नहीं आता। लेकिन वही बच्चे अपने बचपन को छोड़कर बड़ों से भी ज्यादा समझदारी भरी बातें करने लगे तो ये चिंताजनक है और सोचने लायक भी है कि क्या सच में हालात इतने बदतर हो चुके हैं?

ग्रेटा कहती है कि बिजली, बल्ब बंद करने से लेकर पानी की बर्बादी को रोकने और खाने का न फेंकने जैसी बातें मैं हमेशा से सुनती आई थी। जब मैंने इसी वजह पूछी तो मुझे बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऐसा किया जा रहा है। अगर हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोक सकते हैं, तो हमें इसके बारे में बात करनी चाहिए। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि लोग इसके बारे में कम ही बात करते हैं। 

16 साल की ग्रेटा थनबर्ग पूरे दुनिया के नेताओं से अपील कर रही है कि हमें अपनी धरती को बचाना होगा और ये तभी होगा जब अपनी जरूरतें कम करेंगे। ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जो हमारी पृथ्वी को, हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता हो। हाल ही में ब्रिटेन क्लाइमेट इमरजेंसी लगाने वाला पहला देश बना। ब्रिटेन की संसद को ये फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि लाखों लोग ब्रिटेन की सड़कों पर इसकी मांग कर रहे थे। उन्हीं अच्छे लोगों के बीच खड़ी थी 16 साल की ये लड़की।

जागरूकता फैला रही है ग्रेटा 

ब्रिटेन में ग्रेटा थनबर्ग ने खुले मंच पर विश्व के कई बड़े नेताओं को आमंत्रित किया था और वहां ग्रेटा ने पर्यावरण के लिए चेताया। ग्रेटा कहती है कि मैं भी स्कूल जाना चाहती हूं लेकिन जब मैं देखती हूं कि हम ही अपने दुश्मन बन रहे हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है। 5 जून को पूरे विश्व ने पर्यावरण दिवस मनाया। सभी ने पर्यावरण को सुधारने की बात कही लेकिन क्या बात करने से सब कुछ सही हो जाएगा? इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम थी- बीट एयर पाॅल्यूशन। यूएन ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि दुनिया भर के 10 लोगों में से 9 लोग जहरीली हवा लेने को मजबूर हैं। हर साल 70 लाख मौतें वायु प्रदूषण की वजह से होती है। इन 70 लाख लोगों में 40 लाख का आंकड़ा एशिया से आता है।

जहरीली हवा को पूरी तरह से साफ नहीं किया जा सकता लेकिन उसे सांस लेने लायक तो बनाया ही जा सकता है। पृथ्वी दिनों दिन गर्म हो रही है इसके लिए हमें ग्रेटा थनबर्ग की बातों पर ध्यान देना होगा। ग्रेटा थनबर्ग ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वीडियो संदेश भेजकर जलवायु परिवर्तन पर गंभीर कदम उठाने की मांग की। इस समय पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से जूझ रही है। पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर सही समय पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास नहीं किए गए तो पृथ्वी के सभी जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। धरती को बचाने के लिए दुनिया भर में कई तरह के आंदोलन चल रहे हैं। उसी कड़ी में महज 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग का भी नाम है।

स्वीडिश पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा को हाल ही में नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। आज 16 साल की ग्रेटा थनबर्ग को हर कोई जानता है और उनकी बात को गंभीरता से सुनता है लेकिन ग्रेटा पहले स्कूल जाती थी और वही सब करती जो बाकी सब बच्चे करते थे। ग्रेटा थनबर्ग का जन्म 2003 में स्वीडन की राजधानी स्टाॅकहोम में हुआ। ग्रेटा के पिता अभिनेता और लेखक है जबकि मां आपेरा गायिका हैं। ग्रेटा ने एक बार देखा कि फ्लोरिडा के मर्जरी स्टोनमैन डगलस हाईस्कूल के कुछ बच्चे हथियारों पर नियंत्रण के लिए मार्च कर रहे थे। ग्रेटा को वहां से प्रेरणा मिली और पर्यावरण को बचाने के लिए वे भी ऐसा ही कुछ करना चाहती थीं।

स्कूल छोड़ा, संसद के सामने दिया धरना

9 सितंबर 2018 को ग्रेटा थनबर्ग ने आम चुनाव होने तक स्कूल न जाने का फैसला किया और अकेले ही जलवायु परिवर्तन के लिए संसद के सामने हड़ताल शुरू कर  दी। ग्रेटा ने स्वीडन सरकार से मांग की थी कि वो पेरिस समझौते के अनुसार कार्बन उत्सर्जन कम करे। ग्रेटा ने अपने दोस्तों और स्कूल वालों से भी इस हड़ताल में शामिल होने की अपील की, लेकिन सभी ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया। यहां तक कि ग्रेटा के माता-पिता ने ऐसा कुछ करने से रोकने की भी कोशिश की, लेकिन ग्रेटा नहीं रूकी। ग्रेटा ने स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट मूवमेंट की स्थापना की। ग्रेटा ने खुद अपने हाथ से बैनर पैंट किया और स्वीडन की सड़कों पर घूमने लगीं। कुछ लोगों ने ग्रेटा को देखा और पर्यावरण के प्रति सचेत हुए।

ग्रेटा थनबर्ग।

बाद में हालात बदलने लगे और कई देशों के बच्चे ग्रेटा थनबर्ग के साथ आ गए। दिसंबर 2018 तक दुनिया भर के 270 शहरों से 20,000 बच्चों ने इस हड़ताल का समर्थन किया। ग्रेटा पर्यावरण की वजह से हवाई यात्रा नहीं करती है, वो सफर के लिए ट्रेन का इस्तेमाल करती हैं। ग्रेटा ने अपने माता-पिता को यकीन दिलाया कि वे सही रास्ते पर हैं। इसके बाद माता-पिता और दोस्त सहयोग कर रहे हैं। ग्रेटा की मां तो इस अभियान बहुत प्रेरति हुईं और विमान सफर करना छोड़ दिया है, ताकि वायु प्रदूषण करने में उनकी भूमिका न हो। ग्रेटा के माता-पिता ने मासांहार को त्याग दिया है। जिन लोगों ने पहले इस अभियान में जुड़ने से इंकार किया था, वे सभी अब इसके हिस्सा हैं। विभिन्न देशों के लाखों बच्चे इसका हिस्स बन रहे हैं।  

ग्रेटा कहती है कि बिजली, बल्ब बंद करने से लेकर पानी की बर्बादी को रोकने और खाने का न फेंकने जैसी बातें मैं हमेशा से सुनती आई थी। जब मैंने इसी वजह पूछी तो मुझे बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऐसा किया जा रहा है। अगर हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोक सकते हैं, तो हमें इसके बारे में बात करनी चाहिए। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि लोग इसके बारे में कम ही बात करते हैं। 16 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग ने एमनेस्टी इंटरनेशनल का “एम्बेसडर ऑफ कॉनसाइंस” अवार्ड 2019 जीता। उन्हें यह सम्मान ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए दिया जा रहा है।

नोबेल पुरस्कार के लिए नामित

ग्रेटा जगह-जगह जाकर मंच पर भाषण देती हैं और लोगों को जागरूक करती हैं। आज का समय सोशल मीडिया का जमाना है। ग्रेटा सोशल मीडिया से भी लोगों तक अपनी बात पहुंचाती हैं, इसके लिए उन्होंने ट्विटर को चुना। ग्रेटा अपने भाषण में चेताते हुए कहती हैं, हम दुनिया के नेताओं से भीख नहीं माग रहे हैं। आपने हमें पहले भी नजरअंदाज किया है और आगे भी करेंगे। लेकिन अब हमारे पास वक्त नहीं है। हम आपको बताने आए हैं कि पर्यावरण खतरे में है। सही समय पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास नहीं किए गए तो पृथ्वी के सभी जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा।

स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को नोबले शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। अगर उनको नोबेल पुरस्कार मिलता है तो वे सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली शख्सियत बन जाएंगी। ग्रेटा थनबर्ग को नोबेल पुरस्कार मिले या न मिले लेकिन 16 साल की ये लड़की बहुत साहसिक और प्रेरणादायी काम कर रही है। जबकि लाखों लोग पर्यावरण के बारे में सोच ही नहीं रहे हैं, वे बस सरकार को कोसने का काम कर रहे हैं। हमें ग्रेटा थनबर्ग जैसे और भी लोगों की जरूरत है जो अपनी जिद पर अड़ जाएं और पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आएं। 

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