नई दिल्ली. यमुना एक्शन प्लान के तहत नदी की सफाई के नाम पर पहले ही 1500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और 4000 करोड़ रुपये मूल्य की एक अन्य परियोजना तैयार है. हालांकि इससे नदी की स्थिति में बहुत कम फर्क पडा है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने हाल ही यह कहा है कि नदी एक नाली से बेहतर स्थिति में नहीं है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवीनतम रिपोर्ट भी इस विडंबना को ही रेखांकित करती है। इस बार कॉलीफार्म स्तर निर्धारित सीमा से सैकड़ों गुणा अधिक है जबकि नदी में ऑक्सीजन अधिकांश बिंदुओं पर शून्य है। एक गैर सरकारी संस्था तपस के निदेशक विनोद जैन कहते हैं ''इस धनराशि का एक बड़ा हिस्सा कम लागत वाली सेनिटेशन परियोजनाओं, मल उपचार संयंत्रों और औद्योगिक अपशिष्ट जल संयंत्र के निर्माण और रखरखाव में निवेश किया गया था। मलिन बस्तियों और जे जे कालोनियों को नदी तट से हटाया गया। लेकिन जब तक दिल्ली की तेजी से बढती शहरी आबादी के अनुरूप मलजल सुविधाएं प्रदान करने के लिए बेहतर उपाय नहीं ढूंढे जाएंगे नदी को बचाने के लिए कोई उपाय सार्थक साबित नहीं होगा।
इंटरसेप्टर मलजल प्रणाली अब दिल्ली सरकार के लिए रामबाण है। इस परियोजना के जरिये शहर के 18 प्रमुख नालों को जोडकर नजफगढ़ नाला, शाहदरा निकास और एक अनुपूरक निकास बनाया जाएगा। दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक कार्य 2012 तक पूरा हो जाना है लेकिन यह अभी तक शुरू भी नहीं हो पाया है।
सुनीता नारायण के नेतृत्व वाली संस्था सीएसई परियोजना का इस आधार पर विरोध कर रही है कि सरकार सिर्फ संरचनाओं की वृद्धि कर रही है जबकि पहले से मौजूद संरचनाओं का ठीक से प्रबंधन तक नहीं कर पा रही है।
अक्षरधाम मंदिर के निर्माण और बाद में मेट्रो डिपो और राष्ट्रमंडल खेल गांव की स्थापना और अब नदी घाटी विकास भी पर्यावरणविदों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गया है यमुना जिये अभियान पिछले दो वर्षों से एक आंदोलन चलाकर इन निर्माणों को अवैध ठहरा रहा है।
2005 और 1999 में नीरी द्वारा किए गए दो अध्ययनों के मुताबिक नदी के जलागम क्षेत्र पर किसी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। खेल गांव के लिए शुरू में कई अध्ययन कराए गए और किसी ने भी सरकारी मंजूरी नहीं दी। दिल्ली विकास प्राधिकरण अंततः पर्यावरण और वन मंत्रालय से हरी झंडी पाने में कामयाब रहा। यमुना जिये अभियान का दावा है कि केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण और यमुना स्थायी समिति से उन्हें कभी अनुमति हासिल नहीं हुई।
2000 में उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिवर बेड पर किसी को अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इनटेक के संयोजक एजीके मेनन कहते हैं कि ''भूमि उपयोग को परिवर्तित किया जाना चाहिए, नदी और नदी के बेड को एक पारिस्थितिकी नाजुक क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।“ वहीं यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्र कहते हैं: कई रिपोर्टों में यह कहे जाने के बावजूद कि बाढ़ के मैदानों पर निर्माण खतरनाक है डीडीए ने निर्माण करवा लिया। इस नदी को पारिस्थितिकी नाजुक क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किए जाने की जरूरत है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवीनतम रिपोर्ट भी इस विडंबना को ही रेखांकित करती है। इस बार कॉलीफार्म स्तर निर्धारित सीमा से सैकड़ों गुणा अधिक है जबकि नदी में ऑक्सीजन अधिकांश बिंदुओं पर शून्य है। एक गैर सरकारी संस्था तपस के निदेशक विनोद जैन कहते हैं ''इस धनराशि का एक बड़ा हिस्सा कम लागत वाली सेनिटेशन परियोजनाओं, मल उपचार संयंत्रों और औद्योगिक अपशिष्ट जल संयंत्र के निर्माण और रखरखाव में निवेश किया गया था। मलिन बस्तियों और जे जे कालोनियों को नदी तट से हटाया गया। लेकिन जब तक दिल्ली की तेजी से बढती शहरी आबादी के अनुरूप मलजल सुविधाएं प्रदान करने के लिए बेहतर उपाय नहीं ढूंढे जाएंगे नदी को बचाने के लिए कोई उपाय सार्थक साबित नहीं होगा।
इंटरसेप्टर मलजल प्रणाली अब दिल्ली सरकार के लिए रामबाण है। इस परियोजना के जरिये शहर के 18 प्रमुख नालों को जोडकर नजफगढ़ नाला, शाहदरा निकास और एक अनुपूरक निकास बनाया जाएगा। दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक कार्य 2012 तक पूरा हो जाना है लेकिन यह अभी तक शुरू भी नहीं हो पाया है।
सुनीता नारायण के नेतृत्व वाली संस्था सीएसई परियोजना का इस आधार पर विरोध कर रही है कि सरकार सिर्फ संरचनाओं की वृद्धि कर रही है जबकि पहले से मौजूद संरचनाओं का ठीक से प्रबंधन तक नहीं कर पा रही है।
अक्षरधाम मंदिर के निर्माण और बाद में मेट्रो डिपो और राष्ट्रमंडल खेल गांव की स्थापना और अब नदी घाटी विकास भी पर्यावरणविदों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गया है यमुना जिये अभियान पिछले दो वर्षों से एक आंदोलन चलाकर इन निर्माणों को अवैध ठहरा रहा है।
2005 और 1999 में नीरी द्वारा किए गए दो अध्ययनों के मुताबिक नदी के जलागम क्षेत्र पर किसी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। खेल गांव के लिए शुरू में कई अध्ययन कराए गए और किसी ने भी सरकारी मंजूरी नहीं दी। दिल्ली विकास प्राधिकरण अंततः पर्यावरण और वन मंत्रालय से हरी झंडी पाने में कामयाब रहा। यमुना जिये अभियान का दावा है कि केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण और यमुना स्थायी समिति से उन्हें कभी अनुमति हासिल नहीं हुई।
2000 में उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिवर बेड पर किसी को अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इनटेक के संयोजक एजीके मेनन कहते हैं कि ''भूमि उपयोग को परिवर्तित किया जाना चाहिए, नदी और नदी के बेड को एक पारिस्थितिकी नाजुक क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।“ वहीं यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्र कहते हैं: कई रिपोर्टों में यह कहे जाने के बावजूद कि बाढ़ के मैदानों पर निर्माण खतरनाक है डीडीए ने निर्माण करवा लिया। इस नदी को पारिस्थितिकी नाजुक क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किए जाने की जरूरत है।
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