128 दिन के लम्बे उपवास पर सरकार गम्भीर नहीं

सन्त आत्मबोधानंद
सन्त आत्मबोधानंद

15 दिन की जाँच समिति अस्वीकार
28 फरवरी, 2019। मातृ सदन हरिद्वार में 26 वर्षीय उपवासरत आत्मबोधानंद जी का आज 128वां दिन है। देशभर में प्रदर्शनों, समर्थन में भेजे जा रहे पत्रों के बावजूद भी सरकार गम्भीर नहीं नजर आती। हमारी जानकारी में आया है की सरकार ने सात निर्माणाधीन बाँधो की ताजा स्थिति जानने के लिये एक समिति भेजी है। समिति में ऊर्जा मंत्रालय, जल संसाधन एवं गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय और वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञ गए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार इसमें कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ के नहीं है।

1-मध्यमेश्वर व 2-कालीमठ यह दोनों ही 10 मेगावाट से कम की परियोजनाएं हैं जो की मन्दाकिनी की सहायक नदी पर हैं। 3-फाटा बयोंग (76 मेगावाट) और 4-सिंगोली भटवारी (99 मेगावाट) मन्दाकिनी नदी पर है 5-तपोवन-विष्णुगाड परियोजना (520 मेगावाट) का बैराज धौलीगंगा और पावर हाउस अलकनन्दा पर निर्माणाधीन है। इससे विष्णुप्रयाग समाप्त हो रहा है। विश्व बैंक के पैसे से बन रही 6-विष्णुगाड- पीपलकोटी परियोजना (444 मेगावाट) अलकनन्दा पर स्थित है। 7-टिहरी पम्प स्टोरेज (1000 मेगा वाट) टिहरी और कोटेश्वर बाँध के बीच पानी का पुनः इस्तेमाल करने के लिये।

यदि सरकार गंगा के गंगत्व को पुनः स्थापित करना चाहती है तो वह खास करके क्रमशः 4, 5 और 6 नम्बर की परियोजनाओं को तुरन्त रोके। फिलहाल यही तीनों परियोजना अभी निर्माणाधीन हैं। पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह जी की सरकार ने भागीरथी गंगा पर 4 निर्माणाधीन परियोजनाएं रोकी थी। तब गंगा के लिये अपने आप को समर्पित कहने वाली सरकार इन परियोजनाओं को क्यों नहीं रोक रही? जबकि केन्द्र राज्य को प्रतिवर्ष होने वाली 12% मुफ्त बिजली के नुकसान को ग्रीन बोनस के रूप में दे सकती है जोकि 200 करोड़ से भी कम होगा।

हम गंगा पर राजनीति और उसके आर्थिक दोहन को स्वीकार नहीं करते बल्कि उत्तराखण्ड के समुचित और सच्चे विकास और गंगा के गंगत्व के हिमायती हैं।

हजारों करोड़ों रुपया गंगा की सफाई, अविरलता व निर्मलता के लिये खर्च किया गया है। खुद प्रधानमंत्री अर्धकुम्भ नहा कर लौटे हैं। सरकार इस बात से खुश नजर आती है कि उसने गंगा में कुम्भ के समय स्वच्छ पानी दिया है जो कि पिछली सरकारों ने नहीं दिया। हम इस बात का साधुवाद देते हैं। किन्तु गंगा जी में पानी लगातार और साफ बहता रहे। मगर प्रश्न यह है कि क्या गंगोत्री और बद्रीनाथ के पास से भागीरथी गंगा और विष्णुपदी अलकनन्दा गंगा अपनी सहायक नदियों के साथ जब देवप्रयाग में मिलकर गंगा का वृहत रूप लेकर आगे बढ़ती है तो क्या वह जल गंगासागर तक पहुँच पाता है? गंगा की अविरलता क्या बाँधों के चलते सम्भव है? पर्यावरण आन्दोलनों ने सुंदरलाल बहुगुणा जी से लेकर स्वामी सानंद जी के लम्बे उपवासों के बाद उसी संकल्प के साथ बैठे आत्मबोधानंद जी के 128 दिन से अनशन के बाद भी सरकार गंगत्व की गम्भीरता क्यो नही समझ रही?

सन्त आत्मबोधानंद जी किसी जिद पर नहीं बैठे हैं। सत्य अकेला भी खड़ा होता है तो वहाँ सत्य ही रहता है। सरकार को यह बात माननी ही होगी।

हमारी प्रधानमंत्री से अपील है कि वे अपने कार्यकाल के अन्तिम समय में गंगा गंगत्व के लिये इन बाँधों को निरस्त करें। भविष्य में बाँध न बने इसके लिये तुरन्त सक्षम कदम उठाएँ और कम-से-कम गंगा की कुम्भ क्षेत्र के खनन और स्टोन क्रशर पर तुरन्त रोक लगाई जाए।

यह प्रेस विज्ञप्ति मधु झुनझुनवाला, विमल भाई, वर्षा वर्मा, देबादित्यो सिन्हा के द्वारा जारी की गई।

सम्पर्क: 9718479517, 9540857338
 

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