देश के सबसे प्रदूषित नदियों में गाजियाबाद की हिंडन नदी पहले पायदान पर है। हिंडन नदी अब जीवनदायिनी भी नहीं रह गई है। प्रदूषण ने इस का गला घोंट रखा है। जल पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। सहारनपुर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद नोएडा में तो प्रदूषण ई-लेवल का है। यह इतना खतरनाक है कि इसमें कोई जलीय जीव जीवित नहीं रह सकता।(1)
हिंडन के आस-पास का समाज हिंडन की स्थिति को लेकर तिंतित रहता है। एक जनहित याचिका हिंडन के मुद्दे पर अभीष्ट कुसुम गुप्ता ने डाली है। जिसमें ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल -एनजीटी’ के आदेशानुसार 859/2022 के जनहित याचिका ‘अभीष्ट कुसुम गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य’ में ‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्य बल’ का गठन किया जाना था। ये ढिठाई की हद है। नीचे उल्लिखित इन महानुभावों को निर्देशित किया गया था, यूपीपीसीबी, यूपी जल निगम, एमओईएफएंडसीसी, एनएमसीजी, सिंचाई मंत्रालय के प्रधान सचिव का प्रतिनिधि। हिंडन नदी पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए समिति के लिए अपने सदस्यों को नामांकित करने को कहा गया था। जिसका जवाब यह दिया गया है कि
“मूल आवेदन क्रमांक 859/2022 अभीष्ट कुसुम गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में माननीय राष्ट्रीय हरित अधिकरण, नई दिल्ली द्वारा पारित आदेश दिनांक-25-11-2022 के अनुपालन में बताना है कि यूपीपीसीबी ने अपने पत्र 09-12-2022 के माध्यम से एमओईएफ एंड सीसी, सिंचाई विभाग, यूपी सरकार, यूपी जल निगम और एनएमसीजी को एक पत्र (प्रतिलिपि संलग्न) भेजा है ताकि मामले में तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए निरीक्षण करने के लिए अपने संबंधित प्रतिनिधि को नामित किया जा सके। तथापि, आपको सूचित किया जाता है कि सभी संबंधित विभागों ने अभी तक अपने प्रतिनिधियों को मनोनीत नहीं किया है, जिसके कारण निरीक्षण नहीं किया जा सका है।”
हिंडन के संदर्भ में न्यायपालिका द्वारा जारी निर्देशों का भी अब पालन नहीं किया जा रहा है। यह भारत के संवैधानिक कर्तव्यों की घोर अवहेलना है।
नदी के संरक्षण का ज्यादातर अभियान नालों के एसटीपी बनाने पर केंद्रित हो चुके हैं। जबकि जरूरत यह है कि एक समग्र नीति बने। हिंडन के कैचमेंट में वनीकरण का काम करना होगा। इसकी सहायक नदियों के भी वनीकरण का काम इसके साथ जोड़ना पड़ेगा। नदी के ऊपर से लेकर नीचे तक के सारे हिस्से के 10-15 किलोमीटर अगल-बगल के सारे गांव में जल संरक्षण के काम करने होंगे। गहरे तालाब खोदने होंगे। ताकि धीरे-धीरे रिस कर भूजल को भूगर्भ से होता हुआ हमें मई जून के महीने में नदी में मिल सके। नदी के सभी हिस्सों से अतिक्रमण हटाने होंगे तब शायद हिंडन के जीवन की उम्मीद की जा सकती हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यह जानकर निराश हुआ है कि सालों से यह मुद्दा लटका हुआ था और लगातार इस पर निर्देश जारी किए जाते रहे हैं, लेकिन राज्य-अथॉरिटी हिंडन नदी में प्रदूषण को रोकने में नाकामयाब रही हैं। एनजीटी के आदेश पर सात जिलों में ‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्यबल’ गठित की जानी है। हिंडन नदी के उदगम से लेकर संगम तक हिंडन नदी विरोधी गतिविधियों पर ‘विशेष जांच अभियान’ चलाकर रिपोर्ट मांगा गया है। ‘विशेष पर्यावरण निगरानी कार्यबल’ इस बात की पुष्टि करेगी कि कोई भी गैर कानूनी माइनिंग न हो रही हो। अगर पाई जाती है तो ‘पोल्यूटर पेज सिद्धांत’ के आधार पर नदी के पुनर्जीवन के लिए उनसे कॉस्ट वसूला जाए, जो हिंडन नदी में पोलूशन के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही और यह भी निर्देश दिया गया है अगर किसी भी किसी भी एक्शन प्लान में कोई भी गड़बड़ी पाई जाती है तो उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। इतनी सख्ती के बावजूद परिणाम ‘ढाक के तीन पात’।
हिंडन कोई ग्लेशियर आधारित नहीं है। यह नदी भूजल और बरसात पर आधारित है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के रिजर्व फॉरेस्ट के मोहन्ड रेंज से शिवालिक से निकलती है। इसकी करीब 40 से ज्यादा सहायक नदियां हैं। ज्यादातर खूब प्रदूषित हैं। कहीं-कहीं तो वही इतनी ज्यादा प्रदूषित हैं कि ज्यादातर लोग इनको नदी के वजह नाला ही समझते हैं। हिंडन से जुड़े कुछ आंकड़ों की बात करें तो इस नदी का अनुमानित जल ग्रहण क्षेत्र 7083 वर्ग किलोमीटर है और यह यमुना के प्रमुख सहायक नदी है। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) में पहुंचकर यमुना नदी में मिल जाती है।
संदर्भ - (1) राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निरीक्षण कार्यक्रम (National Water Quality Monitoring Programme) के तहत देशभर की नदियों का निरीक्षण किया गया
/articles-1