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भूजल
सिर से ऊपर बह रहा पानी
Posted on 30 Jul, 2010 07:51 AMधरती से पानी खत्म होता जा रहा है। नदियां, नाले और झीलें सूख रही हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जमीनी पानी दिनोंदिन नीचे खिसकता जा रहा है। पीने के पानी की विकराल होती समस्या के कारण मारपीट, धरना-प्रदर्शन, तोड़फोड़ की नौबत आने लगी है। दूसरी ओर हर वर्ष काफी बरसाती पानी यों ही बेकार चला जाता है, उसके प्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं है। पानी के कुप्रबंधन के कारण प्रकृति की पूरी संरचना ही बिगड़ती लग रही हैबनारस का रस खत्म हो रहा
Posted on 22 Feb, 2010 12:27 PMसूखा और बड़े पैमाने पर जल दोहन से जिले में स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। भूगर्भ जल विभाग के आंकड़े दर्शाते हैं कि कई इलाकों में एक साल में जलस्नोत 4 से 6 मीटर खिसक गया है। सर्वेक्षकों के मुताबिक वाटर रीचार्जिंग के लिए अभियान नहीं चलाया गया तो स्थिति बेहद गंभीर हो जाएगी। ग्रामीण इलाकों में स्थिति थोड़ी ठीक है, लेकिन शहरी इलाकों में चिंताजनक हो गई है।
भूजल की लूट पर अंकुश ज़रूरी
Posted on 07 Feb, 2010 09:01 AMइन दिनों भोपाल सहित प्रदेश के कई बड़े-छोटे पेयजल संकट से जूझ रहे हैं राजधानी में एक दिन बीच जलप्रदाय हो रहा है तो कई स्थानों पर दो से लेकर छ: दिन बीच यह प्रदाय संभव हो पा रहा है। दरअसल यह स्थिति अल्पवर्षा या अवर्षा से निर्मित हुई है जिसके पीछे वहीं ग्लोबल वार्मिंग है जो देश सहित पूरे विश्व में अपना रौद्ररूप नित्यप्रति दिखा रहा है। जलसंकट की कोई भी परिस्थिति हमें भूजल पर आश्रित होने को मज़बूर कर
भूमिगत जल/जल स्रोतों का सदुपयोग
Posted on 10 Oct, 2008 02:16 PMबरसात की माप(गांव तितवी, तालुका परोला, जिला- जलगांव, महाराष्ट्र)
उद्देश्य:
गांववालों को बारिश की वास्तविक मात्रा और एक जल वर्ष में पानी कुल उपलब्धता के बारे में जागरुक बनाना। अडगांव (यावल तालुका), तितवी (परोला तालुका) और मालशेवगा (चालीसगांव तालुका) में रेनगॉग बनाए गए और बारिश की मात्रा जानने की प्रक्रिया शुरू की गई।
भूमिगत जल/जल स्रोतों का सदुपयोग
Posted on 10 Oct, 2008 12:02 PM वर्तमान स्रोतों की रक्षा-
( गांव- पटूरदा, तालुका संग्रामपुर, जिला-बुलढ़ाना, महाराष्ट्र)
पूर्व स्थितियां:
जल के मुख्य स्रोत कुएं सूखे और उपेक्षित थे और उनमें से कुछ कूड़ेदान में तब्दील हो गए थे।
सारांश-