सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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कल्दा पठार की पहाड़ियों में थमने लगा पानी
Posted on 26 Oct, 2016 12:10 PM

पानी की समस्या दूर करने के लिये दुर्गम पठारी क्षेत्र में पहाड़ों के बीच पानी को रोक पाना

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पालमपुर : नौले धारे बचाने की अनूठी मुहिम
Posted on 20 Oct, 2016 12:14 PM

स्थानीय निकाय, प्रशासन और स्थानीय लोगों के इस साझा प्रयास ने पालमपुर में कामयाबी की नई कहानी लिखी है। जलवायु परिवर्तन, खेती की पद्धति में आये बदलाव, पानी के अकूत दोहन व अन्य कारणों से देश में पानी के स्रोत सूख रहे हैं लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ पानी की माँग में इजाफा हो रहा है। ऐसे संगीन हालात से निपटने के लिये पालमपुर की इस कहानी को जमीन पर उतारना किफायती और फायदेमन्द सौदा हो सकता है।

लगभग 55, 673 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमाचल प्रदेश अपनी खुबसूरती के लिये विश्व भर में मशहूर है। यह राज्य हिमालय की गोद में बसा हुआ है। इसके उत्तर में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला जम्मू-कश्मीर, पश्चिम में पंजाब, दक्षिण पश्चिम में हरियाणा, दक्षिण पूर्व में उत्तराखण्ड और पूर्व में तिब्बत है। हिमाचल प्रदेश की आबादी लगभग 68,64,602 है। इसी राज्य में है पालमपुर। यह राज्य की कांगड़ा घाटी में स्थित है।

पालमपुर का नाम स्थानीय शब्द ‘पालुम’ से आया है जिसका मतलब होता है-पर्याप्त पानी। पालमपुर को पूर्वोत्तर भारत की चाय राजधानी भी कहा जाता है। पालमपुर का अस्तित्व वर्ष 1849 में आया था।

कुछ दशक पहले तक पालमपुर अपने नाम को चरितार्थ करता रहा था लेकिन बाद में जलवायु परिवर्तन के चलते धीरे-धीरे इस क्षेत्र का चरित्र बदलने लगा।
एक मरती नदी के अमर होने की कहानी
Posted on 07 Oct, 2016 11:11 AM

मरणासन्न स्थिति में पहुँच चुकी इस नदी को नया जीवन देना आसान नहीं था लेकिन कनालसी गाँव के लोगों ने इस नदी को बचाने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी और उनका प्रयास रंग लाया। आज इस नदी में इतना प्रवाह है और इसका पानी इतना कंचन है कि अपने आगोश में समेट लेने वाली यमुना मैया भी इसे देखकर लजा जाये। नदी को नवजीवन मिलने से गाँव में भी सुख-समृद्धि आ गई है। गाँव में पक्की सड़कें, पक्के मकान हैं। मुख्य सड़क से कटी उप-सड़क गाँव में जाती है।

हरियाणा के यमुनानगर से लगभग 17 किलोमीटर दूर कनालसी गाँव से होकर एक नदी बहती है-थपाना। कनालसी से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक नौले-धारे से यह नदी निकली है। इस गाँव में आकर थपाना नदी में सोम्ब नदी (बैराज से पानी छोड़े जाने पर सोम्ब नदी में पानी आता है) मिल जाती है। आगे जाकर यह यमुना में समा जाती है। थपाना को देखकर कोई यकीन नहीं कर सकेगा कि 6-7 साल पहले यह नदी लगभग मर चुकी थी।

फिलवक्त थपाना की धारा अविरल बह रही है और पानी इतना साफ है कि अंजुरी में भरकर उससे गला तर किया जा सकता है। प्रवासी पक्षी नदियों की धारा से अटखेलियाँ करते हैं। देसी परिन्दे नदी के कछार में अन्ताक्षरी खेला करते हैं। शाम का सूरज जब पश्चिम में ढलने लगता है तो इस नदी का किनारा गाँव के लोगों की सैरगाह बन जाता है।
250 साल बाद बावड़ी का पुनरुद्धार
Posted on 18 Sep, 2016 04:33 PM

आज भी जहाँ का समाज पानी के लिये उठ खड़ा होता है, वहाँ कभी किसी को पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती। पानी की चिन्ता करने वाले समाज को हमेशा ही पानीदार होने का वरदान मिलता है। ऐसा हम हजारों उदाहरण में देख-समझ चुके हैं। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं। बीते पाँच सालों में ऐसे प्रयासों में बढ़ोत्तरी हुई है। गर्मियों के दिनों में बूँद-बूँद पानी को मोहताज समाज के सामने अब पानी की चिन्ता करने और उसके लिये सामुदायिक प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

हमारे समाज में सैकड़ों सालों से पानी बचाने और उसे सहेजने के लिये जल संरचनाएँ बनाने का चलन है। जगह-जगह उल्लेख मिलता है कि तत्कालीन राजा-रानियों और बादशाहों ने अपनी प्रजा (जनता) की भलाई के साथ पानी को सहेजने और उसके व्यवस्थित पर्यावरण हितैषी तौर-तरीकों से, जिनमें कुएँ-बावड़ियाँ खुदवाने से लेकर तालाब बनवाने, नदियों के घाट बनवाने, प्यासों के लिये प्याऊ और भूखों के लिये अन्नक्षेत्र खोलने जैसे कदमों के साथ ही कहीं-कहीं छोटे बाँध बनाकर सिंचाई या लोगों के पीने के पानी मुहैया कराने के प्रमाण भी मिलते हैं।

पर यह भी सच है कि आज भी जहाँ का समाज पानी के लिये उठ खड़ा होता है, वहाँ कभी किसी को पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती। पानी की चिन्ता करने वाले समाज को हमेशा ही पानीदार होने का वरदान मिलता है। ऐसा हम हजारों उदाहरण में देख-समझ चुके हैं। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं।
नाले को पहनाए दो-दो नवलखा हार
Posted on 10 Aug, 2016 03:20 PM

मध्य प्रदेश का एक गाँव है, जो पानी पर किये गए अभूतपूर्व कामों के लिये प्रदेश का ही रोल मॉ

देवास के किसानों की मौन क्रांति
Posted on 26 Jul, 2016 11:47 AM
मध्य प्रदेश के देवास शहर में लगभग एक दशक पूर्व पीने का पानी ट्रेन से लाया गया था, उस समय के दौर में यह घटना अकल्पनीय थी। इसी के चलते चारों ओर शोर हुआ। चहुँ ओर लोगों ने यह पीड़ा और वेदना सुनी थी। लेकिन अब देश में किसी स्थान में इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होना अकल्पनीय नहीं रहा। शायद अब यह एक सामान्य घटना होगी। देवास के किसानों के चेहरे पर अब मुस्कुराहट है। उनकी स्थिति बयाँ करने के लिये शा
हलमा से पानी और हरियाली बचाने की अनूठी मुहिम
Posted on 19 Jul, 2016 04:03 PM

अपढ़ माने जाने वाले आदिवासी समाज ने बिना पैसों के 15 हजार जल संरचनाएँ सुबह 7 से 12 बजे तक

नदी की धारा सा अविरल समाज (River connects society)
Posted on 14 Jun, 2016 04:59 PM
सूख चुकी नान्दूवाली नदी का फिर से बहना अकाल ग्रस्त भारत के लिये एक सुखद सन्देश है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि यह नदी और जंगल कभी सूख चले थे। पेड़ों के साथ-साथ समाज और परम्पराओं का भी कटाव होने लगा था। कुओं में कटीली झाड़ियाँ उग आईं और बरसात से जो थोड़ी सी फसल होती उसमें गुजारा करना मुश्किल था। गाय-भैंस बेचकर कई परिवार बकरियाँ रखने लगे क्योंकि चारे को खरीदने और गाँव तक लाने में ही काफी पैसे खर्च हो जाते। जवान लोगों का रोजी-रोटी के लिये पलायन जरूरी हो गया। निम्न जाति के परिवारों की हालत बदतर थी।

ढाक के पेड़ों पर नई लाल पत्तियाँ आ रही हैं पर कदम, ढोंक और खेजड़ी की शाखाएँ लदी हुई हैं। एक दूसरे में मिलकर यह हमें कठोर धूप से बचा रहे हैं। जिस कच्चे रास्ते पर हम बढ़ रहे हैं वह धीरे-धीरे सख्त पत्थरों को पीछे छोड़ मुलायम हो चला है और कुछ ही दूरी पर नान्दूवाली नदी में विलीन हो जाता है।

राजस्थान में अलवर जिले के राजगढ़ इलाके की यह मुख्य धारा कई गाँव के कुओं और खलिहानों को जीवन देती चलती है। इनमें न सिर्फ कई मन अनाज, बल्कि सब्जियों की बाड़ी और दुग्ध उत्पादन भी शामिल है।

यह कल्पना करना मुश्किल है कि यह नदी और जंगल कभी सूख चले थे। पेड़ों के साथ-साथ समाज और परम्पराओं का भी कटाव होने लगा था। कुओं में कटीली झाड़ियाँ उग आईं और बरसात से जो थोड़ी सी फसल होती उसमें गुजारा करना मुश्किल था।
कम पानी से नहीं कम अकली से पड़ता है अकाल
Posted on 22 Apr, 2016 11:04 AM
राजस्थान के जैसलमेर जिले के रामगढ़ क्षेत्र में पिछले वर्ष कुल 48 मिलीमीटर यानी 4.8 सेंटीमीटर या मात्र 2 इंच के करीब पानी बरसा और वहाँ अकाल नहीं पड़ा। भारत में इतनी कम बारिश कहीं और नहीं होती। अधिक बारिश वाले तमाम क्षेत्र सूखाग्रस्त क्यों हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। हमारी कमअकली और अदूरदर्शिता ने विकास का जो मॉडल खड़ा किया है वह विनाश की ओर ले जा रहा है। क्या हम अब भी आँख खोलकर नहीं देखेंगे?

पिछले साल के कुल गिरे पानी के आँकड़े तो आपने ऊपर देखे ही हैं। अब उनको सामने रखकर इस विशाल देश के किसी भी कृषि विशेषज्ञ से पूछ लें कि दो-चार सेंटीमीटर की बरसात में क्या गेहूँ, सरसों, तारामीरा, चना जैसी फसलें पैदा हो सकती हैं। उन सभी विशेषज्ञों का पक्का उत्तर ‘ना’ में होगा। पर अभी आप रामगढ़ आएँ तो हमारे यहाँ के खड़ीनों में ये सब फसलें इतने कम पानी में खूब अच्छे से पैदा हुई हैं और अब यह फसल सब सदस्यों के खलियानों में रखी जा रही है। तो धुत्त रेगिस्तान में, सबसे कम वर्षा के क्षेत्र में आज भी भरपूर पानी है, अनाज है और पशुओं के लिये खूब मात्रा में चारा है।

टेलिविजन कहाँ नहीं है? हमारे यहाँ भी है। हमारे यहाँ यानी जैसलमेर से कोई सौ किलोमीटर पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा पर भी। यह भी बता दें कि हमारे यहाँ देश का सबसे कम पानी गिरता है। कभी-कभी तो गिरता ही नहीं। आबादी कम जरूर है, पर पानी तो कम लोगों को भी जरूरत के मुताबिक चाहिए। फिर यहाँ खेती कम, पशुपालन ज्यादा है। लाखों भेड़, बकरी, गाय और ऊँटों के लिये भी पानी चाहिए। इस टेलिविजन के कारण हम पिछले न जाने कितने दिनों से देश के कुछ राज्यों में फैल रहे अकाल की भयानक खबरें देख रहे हैं। अब इसमें क्रिकेट का भी नया विवाद जुड़ गया है।
अभावों की जमीन पर कामयाबी की इबारत
Posted on 10 Apr, 2016 11:19 AM


कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती... कवि सोहन लाल द्विवेदी

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