पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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नदियों के किनारे तटबन्धों की शुरुआत
Posted on 14 Apr, 2012 11:15 AM

तटबन्धों के कारण बारिश का वह पानी जो कि अपने आप नदी में चला जाता वह तटबन्धों के बाहर अटक जाता

बाढ़ रोकने की कहानी
Posted on 13 Apr, 2012 03:37 PM

पृष्ठभूमि

कोसी की बाढ़
Posted on 12 Apr, 2012 11:49 AM

वह इलाके जिनसे होकर कोसी गुजर चुकी होती थी, उनकी हालत कोई बहुत अच्छी रहती हो ऐसा नहीं था मगर इ

कोसी की छाड़न धाराएं
Posted on 10 Apr, 2012 05:56 PM कोसी की छाड़न धाराओं के बारे में चर्चा दूसरी जगहों पर मिलती है अतः हम यहाँ उसके विस्तार में नहीं जाना चाहेगें और केवल इन धाराओं के बहाव के रास्तों के बारे में थोड़ी सी जानकारी लेंगे (चित्र 1.3)।

परमान या पनार धार-

कोसी की बदलती धाराएं
Posted on 07 Apr, 2012 12:01 PM

कोसी क्षेत्र का अंग्रेजों द्वारा पहला नक्शा मेजर जेम्स रेनेल नाम के एक सर्वेयर ने सन् 1779 में

कोसी नदी
Posted on 07 Apr, 2012 10:30 AM कोसी नदी हिमालय पर्वतमाला में प्रायः 7000 मीटर की ऊँचाई से अपनी यात्रा शुरू करती है जिसका ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र नेपाल तथा तिब्बत में पड़ता है। दुनिया का सबसे ऊँचा शिखर माउन्ट एवरेस्ट तथा कंचनजंघा जैसी पर्वतमालाएं कोसी के जलग्रहण क्षेत्र में आती हैं। नेपाल में इसे सप्तकोसी के नाम से जानते हैं जो कि सात नदियों इन्द्रावती, सुनकोसी या भोट कोसी, तांबा कोसी, लिक्षु
जहाँ मृत्यु ने साधना की
Posted on 07 Apr, 2012 09:43 AM महाभारत में एक अन्य कहानी आई है। सृष्टि में पहले मृत्यु नहीं थी, सभी प्राणी सिर्फ जिन्दा रहते थे। कुछ समय तक तो सब ठीक चला मगर बाद में ब्रह्मा को लगा कि जब कोई मरेगा ही नहीं तब तो भारी अव्यवस्था फैल जायेगी। तब पृथ्वी के भार को हल्का करने के लिए ब्रह्मा के तेज से मत्यु की उत्पत्ति होती है जिसे ब्रह्मा सारे प्राणियों के संहार के लिए नियुक्त करते हैं। लाल और पीले रंग की यह नारी जो कि तपाये हुये सोने
शक्ति रूपा कौशिकी
Posted on 06 Apr, 2012 02:02 PM कौशिकी की उत्पत्ति की एक दूसरी कथा मार्कण्डेय पुराण में मिलती है। शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो असुर भाई थे जिन्होंने घोर तपस्या करके देवताओं का राज्य हथिया लिया और उनको प्रताड़ित करना शुरू किया और उनका सब कुछ छीनकर उन्हें राज्य से निकाल दिया। यह सब देवता राज्य विहीन होकर हिमालय जाते हैं और माँ भगवती की स्तुति करते हैं। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर पार्वती देवताओं से उनके आने का कारण पूछती हैं। उसी सम
कोसी-परिचय
Posted on 06 Apr, 2012 01:12 PM

कोसी कथा

‘आज भी खरे हैं तालाब’ का दीवाना फरहाद
Posted on 27 Mar, 2012 04:44 PM ‘आज भी खरे हैं तालाब’ का पहला संस्करण कोई अट्ठारह बरस पहले आया था। तब से अब तक गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली ने इसके पांच संस्करण छापे हैं। पुस्तक पर किसी तरह का कॉपीराइट नहीं रखा था। गांधी शांति प्रतिष्ठान के पांच संस्करणों के अलावा देश भर के अनेक अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, संस्थाओं, आंदोलनों, प्रकाशकों और सरकारों ने इसे अपने-अपने ढंग से आगे बढ़ाया है, इन अट्ठारह बरसों में। कुछ ने बताकर तो कुछ ने बिना बताए भी।

‘आज भी खरे हैं तालाब’ के कोई बत्तीस संस्करण और कुल प्रतियों की संख्या 2 लाख के आसपास छपी और बंटी।
आज भी खरे हैं तालाब
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