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स्वच्छता
हम और हमारा स्वास्थ्य (कक्षा -2)
Posted on 14 Sep, 2011 12:53 PMकक्षा 2 के छात्रों के लिए शिक्षक उनको अपने स्वच्छता और स्वास्थ्य के बारे में बताएं। मानव मल का समुचित निपटान हो इसका ध्यान रखें। घर, स्कूल, आस-पास को साफ–सुथरा रखना। जहां-तहां कूड़ा कचरा नहीं फेंकना। कूड़े को कूड़ेदान में डालना। पीने के बर्तन को ढँक कर रखना। सदैव स्वच्छ पानी पीना। ढका हुआ भोजन करना। गंदगी से होने वाली बीमारियों को जानना आदि सब चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है तभी हम स्वच्छ और स्
हम और हमारा स्वास्थ्य
Posted on 14 Sep, 2011 12:08 PMस्वास्थ्य एवं स्वच्छता-संबंधी पूरक पाठ्य सामग्री के रूप में “हम और हमारा स्वास्थ्य” पुस्तिका तैयार की गई है। इस पुस्तक में दिए गए पाठों का कक्षा में केवल पढ़ाया जाना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु बच्चों में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता-संबंधी अच्छी आदतों का विकास किया जाना भी आवश्यक है। पुस्तक में दिए गए बिन्दुओं को विस्तार से समझाने हेतु बच्चों से चर्चा करें। आवश्यक हो तो पाठ में दिए गए उदाहरणों के अति
कक्षीय विषय-पाठ से स्वच्छता का जुड़ाव
Posted on 14 Sep, 2011 11:20 AMशिक्षक बच्चों को बतायेंगे कि जुते चप्पल पहनकर चलना चाहिए, बिना चप्पल जूतों के चलेंगे तो पैरों में गंदगी लग जायेगी जिससे बीमारी हो सकती है। अपने घर के आसपास गंदगी फैलने से कैसे रोका जाए। पानी का स्थल हर पल साफ हो, कीचड़ न फैले जिससे चप्पल फिसल न पाये जो पानी तुम पी रहे हो वो कीटाणु रहित हो। आदि स्वच्छता अपनाना जरूरी है।
पाठशाला जल, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम
Posted on 14 Sep, 2011 10:27 AMपाठशाला जल, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत विद्यालय के सेवाभावी छात्र/छात्राओं का चयन कर उनके माध्यम से अन्य बच्चों, परिवारों व समुदाय में स्वच्छता व स्वास्थ्यप्रद आदतों का प्रचार-प्रसार करना व व्यवहारगत परिवर्तन लाना लक्षित है।
विद्यालय स्वच्छता एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम
Posted on 13 Sep, 2011 04:49 PMकहते हैं, कि नींव जितनी मजबूत होगी, मकान उतना ही सुदृढ़ होगा, जड़े जितनी सशक्त होंगी, वृक्ष उतना ही बढ़िया होगा। वैसे ही हमारे विद्यालयों के बच्चों को हम जितना व्यावहारिक ज्ञान देंगे, जितना ही कर के सीखने का मौका देंगे उतना ही उनकी जानकारी और अनुभव में ठोस और पक्की बातें शामिल होती जाएंगी, जिसे वे संस्कार के रूप में आगे अपनी अगली पीढ़ी को दे सकेंगे।
जल, थल और मल
Posted on 08 Sep, 2011 03:35 PMआज तो केवल एक तिहाई आबादी के पास ही शौचालय की सुविधा है। इनमें से जितना मैला पानी गटर में जाता है, उसे साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। परिणाम आप किसी भी नदी में देख सकते हैं। जितना बड़ा शहर, उतने ही ज्यादा शौचालय और उतनी ही ज्यादा दूषित नदियां।
अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे? लाखों लोग शहर और कस्बों में शौच की जगह तलाशते हैं और मल के साथ उन्हें अपनी गरिमा भी त्यागनी पड़ती है। महिलाएं जो कठिनाई झेलती हैं उसे बतलाना बहुत ही कठिन है। शर्मसार वो भी होते हैं, जिन्हें दूसरों को खुले में शौच जाते हुए देखना पड़ता है, तो कितना अच्छा हो कि हर किसी को एक संडास मिल जाए और ऐसा करने के लिए कई लोगों ने भरसक कोशिश की भी है। जैसे गुजरात में ईश्वरभाई पटेल का बनाया सफाई विद्यालय और बिंदेश्वरी पाठक के सुलभ शौचालय।जापानियों में होता है सफाई का जुनून
Posted on 07 Sep, 2011 12:11 PMइस पृष्ठभूमि में यह आशा करना गलत न होगा कि सफाई हमारे देश में भी शिक्षा का हिस्सा बन जाए और हम
कचरे की ऊर्जा से बढ़ेगी समस्याएं
Posted on 23 Aug, 2011 10:52 AMकचरे से बिजली बनाने के लिए दिल्ली में बनाई जा रही परियोजना समाधान की बजाए समस्याएं अधिक खड़ी क
कूड़े के ढेर में बदलता लद्दाख
Posted on 03 Aug, 2011 10:01 AMलेकिन अब धीरे-धीरे हालात में परिवर्तन आ रहा है। कभी स्वच्छता का प्रतीक लद्दाख में अब गंदगी का
खुले में शौच जाता है आधा भारत
Posted on 20 Jul, 2011 01:29 PMसंयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के ज़फ़र अदील ने कहा, ‘ये एक विडंबना ही है कि भारत में, जहाँ लोग