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पारिस्थितिकी और पर्यावरण
पर्यावरण एवं भारतीय संस्कृति
Posted on 15 Mar, 2024 02:22 PMआज सारे संसार में पर्यावरण रक्षण की चेतना जागृत जाग चुकी है। पर्यावरण के प्रदूषण ने संसार के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। यह सही है कि धरती का यह संकट विशेषकर विकसित देशों की देन है। उनकी आर्थिक लिप्सा ने प्रकृति का इस तरह विध्वंस करना शुरु किया कि आज जो विभीषिका सामने आई है, जो त्रासदी दिखाई देने लगी है, उसके निवारण के लिए पूरा संसार चिंतित हो रहा है।
![पर्यावरण एवं भारतीय संस्कृति](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/BHARTIY%20SASNKRITI.jpeg?itok=714LXUzU)
पेड़-पौधे और मनुष्य
Posted on 14 Mar, 2024 03:19 PMपेड़ -पौधे एवं मनुष्य एक दूसरे पर आधारित है। एक के अभाव में दूसरे के सद्भाव की कल्पना कभी स्वप्न में भी नहीं की जा सकती। पेड़ - पौधे मनुष्य के भीतर और बाहर एक सांस्कृतिक पर्यावरण की रचना करते हैं। दोनों का सृजन एक प्रकार का पर्यावरण है।
![पेड़-पौधे और मनुष्य](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/ped%20aur%20masuhey.jpeg?itok=MHNhLwim)
मुख्य सचिव 48 घंटे में हल करें सीवर व दूषित पेयजल की समस्या : आतिशी
Posted on 13 Mar, 2024 04:53 PMसीवर ओवरफ्लो, दूषित जलापूर्ति और पाइपलाइन रिसाव को समस्या दूर नहीं हो रही है। परेशान लोग जल बोर्ड की हेल्पलाइन पर शिकायत कर रहे हैं, परंतु समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। जल मंत्री आतिशी ने इसे लेकर नाराजगी जताई है। उन्होंने मुख्य सचिव को जनता की शिकायतों का संज्ञान लेकर उसे 48 घंटे में दूर करने का निर्देश दिया है। मंत्री ने कहा, जल बोर्ड के हेल्पलाइन नंबर 1916 पर 10 हजार अधिक शिकायतों का कोई
![सीवर ओवरफ्लो, दूषित जलापूर्ति और पाइपलाइन से रिसाव](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/cever.jpeg?itok=Af3skZ_e)
पहले धरती को बचाएं
Posted on 13 Mar, 2024 04:03 PMविचित्र विडंबना है कि जिस प्रकृति, धरती और पर्यावरण की वजह से आज हम जीवित हैं, वे ही हमारे सरोकारों की सूची से लगभग गायब हैं। कभी कभार पूजा-अर्चना में इन्हें याद भले ही कर लें, लेकिन अपनी तरफ से हम इनके लिए कभी कुछ नहीं करते।
![पहले धरती को बचाएं](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/Earth-1.jpeg?itok=7d-LJ8G7)
यूरोप तोड़ रहा बांध, नदियों में लौटीं विलुप्त मछलियां, पनपे पौधे
Posted on 13 Mar, 2024 12:17 PMयूरोप में नदियों की अविरल धारा के लिए मुहिम चल रही है। साल 2016 से ही बांध तोड़े जा रहे हैं। 2022 में ही यूरोपीय नदियों पर बने 325 बांध तोड़ दिए गए, जो 2021 से 36% ज्यादा है। खास बात यह है कि जिन नदियों पर बांध तोड़े गए वहां का जलीय जीवन बदलने लगा है। फिनलैंड हितोलांजोकी नदी में सोलोमन जैसी मछलियां नजर आने लगीं, जो साला पहले यहां खत्म हो चुकी थीं। फिनलैंड की नैचुरल रिसोर्स इंस्टीट्यूट की इकोलॉज
![यूरोप तोड़ रहा बांध, नदियों में लौटीं विलुप्त मछलियां, पनपे पौधे](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/europe%20dam.jpeg?itok=UyrcfUj-)
वन-विकास या विनाश
Posted on 11 Mar, 2024 05:21 PMआजादी आने के साथ ही वृक्ष मित्र नेहरू और श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव प्रारम्भ किया था, परन्तु वन-संरक्षक की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। उसका मुख्य कारण वृक्षारोपण के पीछे सामान्य लोगों के जीवन की समस्याओं को हल करने वाली एक निश्चित उद्देश्य वाली नीति का अभाव रहा है। वन विभाग के अधिकारियों का सारा शिक्षण और उससे भी अधिक चिन्तन व प्रत्यक्ष कार्य व्यापारिक वानिकी का रहा है
![वन-विकास या विनाश](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/Vikas%20aur%20vinash%20%28100%29.jpeg?itok=mzQVmT-0)
कब रुकेगा हरे-भरे जंगलों का विनाश !
Posted on 11 Mar, 2024 05:07 PMपिछले कुछ वर्षों से हिमालय क्षेत्र में होने वाली परिस्थितिकीय गड़बड़ियां जो बेलाकूची, तवाघाट, डबराणी और टौसघाटी की तबाही के रूप में प्रकट हुई है और इस वर्ष कौथा, रिवाड़ी और शिशना के भयंकर भू-स्खलन के पश्चात् यह आशा की जाती थी कि उत्तर प्रदेश सरकार इनके कारणों की तह तक जाएगी। इस वर्ष का अप्रत्याशित सूखा प्रकृति की ओर से एक नई चेतावनी है। परन्तु बाढ़, भू-स्खलन और सूखे से सर्वाधिक प्रभावित राज्य उ
![कब रुकेगा हरे-भरे जंगलों का विनाश !](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/forest%20.jpeg?itok=hKE-JnjS)
जिंदा रहने के लिए पेड़
Posted on 11 Mar, 2024 02:33 PMमैं यहां पर एक तीर्थयात्री के रूप में आया हूँ। आप पूछेंगे, "यहां कौन-सा तीर्थ है ?
![जिंदा रहने के लिए पेड़](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/Trees.jpeg?itok=afgNvUy9)
वैज्ञानिक वन-प्रबंध की विडम्बना
Posted on 09 Mar, 2024 04:21 PMभारत में प्राकृतिक वनों के विनाश के लिए पिछले सवा सौ वर्षों का वैज्ञानिक वन-प्रबन्ध उत्तरदायी है, जो अंग्रेजों की देन है। अपनी व्यापारिक दृष्टि के साथ जब भारत का राज ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों में आया, तो उन्होंने खोज-खोजकर व्यापारिक प्रयोजन में आने वाली वृक्ष प्रजातियों पर प्रहार किया। सबसे पहला प्रहार मालाबार के सागीन वनों पर सन् 1800 के आस-पास जहाज बनाने के लिए हुआ। उसके बाद रेलवे स्लीपरों
![व्यापारिक प्रयोजन के लिए जैव विविधता की क्षति](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2024-03/OIG4%20%283%29.jpeg?itok=npgG1oB2)