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आज हम दोष चाहें किसी को दें, शिवनन्दी का प्रतिरूप बने हरनन्दी का पितृस्वरूप तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन इसका नाम हिंडन पड़ा। सिर्फ पितृस्वरूप मरा हो, इतना नहीं... हिंडन ने अब खुद विषधर का रूप धारण कर लिया है। जैसा कभी यमुना ने कालियादेह का रूप धरा था। हिंडन का यह रूप हमें जीवन देने वाला न होकर जीवन लेने वाला हो गया। हमारी बेवकूफी देखिए!
हर बड़ी नदी की तरह हिंडन की देह भी अकेली नहीं है। हिंडन के उद्गम स्रोतों में बारिश के बाद कदाचित ही पानी रहता है, बावजूद इसके हिंडन बरसाती नदी कभी नहीं रही। हिंडन बारहमासी है। जाहिर है कि कई संगी-साथी मिलकर हिंडन की संपूर्ण देह को बनाते हैं: 41 किमी.