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झीलें, तालाब और आर्द्रभूमि
श्री सुब्रह्मण्य मंदिर की बावड़ी
Posted on 25 May, 2012 10:16 AMश्री सुब्रह्मण्य मंदिर की बावड़ी। यह मंदिर मंडलूर से 15 किमी. दूर केरल के कन्नूर जिले में स्थित है।भूमाफिया की वजह से खत्म होते तालाब
Posted on 26 Apr, 2012 11:42 AMअभी एक सदी पहले तक बुंदेलखंड के इन तालाबों की देखभाल का काम पारंपरिक रूप से ढीमर समाज के लोग करते थे। वे तालाब को साफ रखते, उसकी नहर, बांध, जल आवक को सहेजते - ऐवज में तालाब की मछली, सिंघाड़े और समाज से मिलने वाली दक्षिणा पर उनका हक होता। इसी तरह प्रत्येक इलाके में तालाबों को सहेजने का जिम्मा समाज के एक वर्ग ने उठा रखा था और उसकी रोजी-रोटी की व्यवस्था वही समाज करता था, जो तालाब के जल का इस्तेमाल करता था।
अब तो देश के 32 फीसदी हिस्से को पानी की किल्लत के लिए गर्मी के मौसम का इंतजार भी नहीं करना पड़ता है- बारहों महीने, तीसों दिन यहां जेठ ही रहता है। सरकार संसद में बता चुकी है कि देश की 11 फीसदी आबादी साफ पीने के पानी से महरूम है। दूसरी तरफ यदि कुछ दशक पहले पलट कर देखें तो आज पानी के लिए हाय-हाय कर रहे इलाके अपने स्थानीय स्रोतों की मदद से ही खेत और गले दोनों के लिए भरपूर पानी जुटाते थे। एक दौर आया कि अंधाधुंध नलकूप रोपे जाने लगे, जब तक संभलते तब तक भूगर्भ का कोटा साफ हो चुका था। समाज को एक बार फिर बीती बात बन चुके जल-स्रोतों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है - तालाब, कुंए, बावड़ी। लेकिन एक बार फिर पीढ़ियों का अंतर सामने खड़ा है, पारंपरिक तालाबों की देखभाल करने वाले लोग किसी और काम में लग गए और अब तालाब सहेजने की तकनीक नदारद हो गई है।राजस्व तालाबों की कब्जा मुक्ति उत्तर प्रदेश का एक प्रेरक शासनादेश
Posted on 03 Mar, 2012 01:14 PMइस आदेश का उपयोग कर प्रतापगढ़ जिले के एक जिलाधिकारी ने तालाबों की कब्जा मुक्ति की बड़ी मुहिम छेड़ी थी। जिलाधिकार
दलदली जमीन का संरक्षण कीजिए
Posted on 02 Feb, 2012 10:21 AMनमभूमियां अर्थात दलदल भूमि प्रकृति का एक ऐसा अनोखा और अनुपम स्वरूप है जो हमारे पर्यावरण संरक्षण में विशेष योगदान देते हैं। असल में नमभूमि अपनी अनोखी पारिस्थितिकी संरचना के कारण महत्वूपर्ण है। नमभूमियों के अंतर्गत झीलें, तालाब, दलदली क्षेत्र, हौज, कुण्ड, पोखर एवं तटीय क्षेत्रों पर स्थित मुहाने, लगून, खाड़ी, ज्वारीय क्षेत्र, प्रवाल क्षेत्र, मैंग्रोव वन आदि शामिल हैं। गुजरात को नलसरोहर, उड़ीसा की चिल्का झील और भितरकनिका मैंग्रोवन क्षेत्र, राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान तथा दिल्ली का ओखला पक्षी अभयारण्य नमभूमि क्षेत्र के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। अभी तक विश्व भर के 1,994 नमभूमियों के रूप में चिन्हित किया गया है जो करीब उन्नीस करोड़ अठारह लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैली हुई है। इन क्षेत्रों में से 35 प्रतिशत क्षेत्र पर्यटन संभावित क्षेत्र हैं। इसलिए इन क्षेत्रों में इको-पर्यटन को बढ़ावा देने और वहां धारणीय विकास (सस्टेनेबल डेवलेपमेंट) के लिए इस बार के विश्व नमभूमि दिवस का थीम ‘नमभूमि और पर्यटन’ रखा गया है। नमभूमियां भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 4.63 प्रतिशत क्षेत्रफल पर फैली हुई है यानी कुल 15,26,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर। इनसे अलावा 2.25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल से कम आकार वाली करीब 5,55,557 छोटी-छोटी नमभूमियां चिन्हित की गई हैं।दक्षिण भारत के अर्द्धशुष्क क्षेत्र में पारम्परिक तालाबों पर जल ग्रहण विकास कार्यक्रम का प्रभाव-एक समीक्षा
Posted on 23 Dec, 2011 11:42 AMभारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 75% से अधिक जनसंख्या गाँव में रहती है। उसकी जरुरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जल संसाधनों का सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिये। जल संसाधनों के विकास में उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, मौसम तंत्र, मृदा, वनस्पति व अन्य जरुरतों को ध्यान में रखा गया था। यह विकास इस तरह से किया गया था, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में रह
साहेब बांध के बड़ा तालाब बनने की कहानी
Posted on 16 Nov, 2011 08:30 AMकुछ साल पहले यहां बोटिंग भी शुरू हुई थी। तालाब के बीच में एक कैफेटेरिया भी खुला था, लेकिन कालांतर में सब बंद हो गया। बड़ा तालाब से रांची पहाड़ी मंदिर तक रोप वे बनाकर पर्यटकों को आकर्षित करने की एक अच्छी योजना बनी थी। लेकिन यह योजना सरजमीं पर उतर नहीं पायी। बड़ा तालाब आज भी एक अदद उद्धारकर्ता की बाट जो रहा है।
किसी जमाने में रांची का बड़ा तालाब अपने सौंदर्य के लिए विख्यात था। इसका गुणगान अंग्रेज शासक तक करते थे। शुरुआती दिनों में तालाब के चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे इटैलियन पेड़ों की छाया लैंप पोस्टों की रोशनी में तालाब के सतह पर आकर्षक छटा बिखेरते थे। तालाब के चारों ओर रोशनी के लिए लैंप पोस्ट लगे हुए थे। इसे साहेब बांध भी कहा जाता है। रांची के प्रथम डिप्टी कमिश्नर राबर्ट ओस्ले ने जेल से आदिवासी कैदियों को जेल से लाकर तालाब को 1842 में खुदवाया था। इस तालाब से आदिवासियों की भावना जुड़ी हुई है। तालाब खुदायी में आदिवासी मजदूरों को मेहनताना भी नहीं दिया था। पालकोट के राजा से राबर्ट ओस्ले ने तालाब के लिए जबरन जमीन कब्जा किया था।
अनपढ़, असभ्य और अप्रशिक्षित
Posted on 04 Nov, 2011 11:06 AMकेवल पाईप बिछाने और नल की टोंटी लगा देने से पानी नहीं आता। उस समय तो शायद नहीं लेकिन आजादी के बाद यह बात समझ में आने लगी। तब तक कई शहरों के तालाब उपेक्षा की गाद से पट चुके थे और वहां नये मोहल्ले, बाजार, स्टेडियम खड़े हो गये थे। पर पानी अपना रास्ता नहीं भूलता। तालाब हथिया कर बनाए गये मोहल्लों में वर्षा के दिनों में पानी भर जाता है और वर्षा बीती नहीं कि शहरों में जल संकट छाने लगता है। शहरों को पानी चाहिए पर पानी दे सकने वाले तालाब नहीं चाहिए।
गांव में तकनीकी भी बसती है यह बात सुनकर समझ पाना उन लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल होता है जो तकनीकी को महज मशीन तक सीमित मानते हैं लेकिन तकनीकी क्या वास्तव में सिर्फ मशीन तक सीमित है? यह बड़ा सवाल है जिसके फेर में हमारी बुद्धि फेर दी गई है। मशीन, कल पुर्जे, औजार से भी आगे अच्छी सोच सच्ची तकनीकी होती है। अच्छी सोच से सृष्टिहित का जो लिखित और अलिखित शास्त्र विकसित किया जाता है उसके विस्तार के लिए जो कुछ इस्तेमाल होता है वह तकनीकी होती है। इस तकनीकी को समझने के लिए कलपुर्जे के शहरों से आगे गांवों की ओर जाना होता है। भारत के गांवों में वह शास्त्र और तकनीकी दोनों ही लंबे समय से विद्यमान थे, लेकिन कलपुर्जों की कालिख ने उस सोच को दकियानूसी घोषित कर दिया और ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले लोग अनपढ़, असभ्य और अप्रशिक्षित घोषित कर दिये गये।
रेत के समंदर में पानी से भरा सागर
Posted on 05 Oct, 2011 12:09 PMऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब को बड़े हादसे से भले ही बचा लिया गया लेकिन इसे एक बदनामी के सबब से कोई नह
निर्बाध हो कोलांस तो भरे बड़ी झील
Posted on 07 Sep, 2011 01:33 PMभोपाल। मानसून की शानदार दस्तक और लगातार हो रही अच्छी बारिश से राजधानीवासियों को ये आस बंधी है कि इस बार बड़ी झील लबालब हो जाएगी। ये उम्मीद इसलिए भी लाजमी है क्योंकि पिछले दस सालों में महज दो बार ही बड़ी झील का जलस्तर अपने फुल टैंक लेवल (एफटीएल) 1666.80 फीट तक पहुंचा है। यही नहीं पिछले तीन सालों से झील हर बार डेड स्टोरेज लेवल तक पहुंच रही है। यदि विशेषज्ञों की मानें तो भले ही औसत बारिश हो जाए, ल
भोजताल का अशंमात्र है भोपाल की झील
Posted on 02 Sep, 2011 12:03 PMभोपाल। भोजताल के अस्तित्व उपयोगिता और भविष्य की संभावनाओं पर मध्यप्रदेश जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान ओम घाटी बेतवा बेसिन में दबे हुए भोजताल एवं उसकी सहायक नदियों की उत्पत्ति पर भूजल पर्यावरण खोज तथा अध्ययन किया जा रहा है। इस संबंध में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग नई दिल्ली से तीन वर्ष की अवधि के लिए यह परियोजना स्वीकृत की गई है। दसवीं शताब्दी में निर्मित झील आज के भोपाल ताल से 40 गुना अधिक बड़ी