There is a need for a multi-faceted approach to disaster management, combining advanced monitoring, early warning systems, community preparedness, and sustainable land use practices to mitigate future risks.
एक अध्ययन से पता चलता है कि समुद्री लू या हीटवेव (असामान्य रूप से उच्च समुद्री तापमान की अवधि) जो पहले हर साल लगभग 20 दिनों तक होती थी (1970-2000 के बीच), वह बढ़कर 220 से 250 दिन प्रति वर्ष हो सकती है। जानिए क्या होंगे इसके परिणाम?
Posted on 10 Dec, 2010 09:59 AMमौसम परिवर्तन का नकारात्मक असर सिर्फ धरती पर रहने वाले जीवों पर नहीं पड़ रहा है, बल्कि समुद्र के अंदर यहां तक नीचे रहने वाले कोरल रीफ पर भी पड़ रहा है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि मौसम परिवर्तन के कारण कोरल रीफ धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक समुद्र के नीचे भी प्रदूषण पहुंच रहा है। साथ ही वहां भी पानी धीरे-धीरे गर्म हो रहा है। इन कारणों से समुद्री रीफ के अस्तित्व को खतरा उत्
Posted on 07 Dec, 2010 11:24 AMइन दिनों मैक्सिको के शहर कानकुन में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन चल रहा है। इसमें दुनिया भर के 194 देश हिस्सा ले रहे हैं। 29 नवंबर को शुरू हुआ यह सम्मेलन 10 दिसंबर तक चलेगा। इसमें 15,000 से अधिक आधिकारिक प्रतिनिधि, पर्यावरण कार्यकर्ता और पत्रकार भाग ले रहे हैं। यह सम्मेलन क्योटो पर्यावरण संधि के बाद के समय के लिए कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए हो रहा है। क्योटो संधि 2011 में समाप्त हो रही है।वर्ष 1992 में ब्राजील में हुए रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन समझौते को लेकर यूएन कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज तैयार की गई थी। क्योटो में 1997 में हुई संधि में कहा गया था कि औद्योगीकृत देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 1990 के स्तर से पांच फीसदी कम करेंगे।
इस संधि पर अमेरिका ने हस्ताक्षर नहीं किया था। पिछले वर्ष कोपेनहेगन में भी जलवायु परिवर्तन को लेकर
Posted on 11 Nov, 2010 10:32 AM देहरादून सूबे की सरकार सचिवालय तक ही कैद होकर रह गयी है,इस बात के जन सवाल हिमालयी गांवों के चौपालों से उठने लगे है।जिसका जबाब देने के लिए सरकार, प्रतिनिधीयों को हिमालयी गाँवों तक जाना होगा। भूस्खलन की पुरी तरह जद में आ चुके द्रोणागिरी गांव पहुंचे भारतीय वैज्ञानिकों के दल ने दैवी आफत के बाद पुराने ग्लेशियर के मलबे पर बसे द्रोणगिरी गांव पहुंच कर इस गांव में रह रहे 150 जनजातिय परिवारों की बदहाल
Posted on 10 Nov, 2010 08:59 AM प्रदूषण ने प्रकृति के मनमोहक स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस कड़ी में अब यह बात सामने आयी है कि ऑर्गेनोहेलोजेन कंपाउंड्स (ओएचसी) नामक प्रदूषक तत्व धुव्रीय भालूओं (नर-मादा) के ऑर्गन साइज को कम कर रही है। यह रिसर्च इनवायरनमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुई है। ओएचसी में डाइऑक्सिन, पोलीक्लोरिनेटेड बाइफेनल्स और अन्य कीटनाशक दवाईयां शामिल है।