इन दिनों मैक्सिको के शहर कानकुन में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन चल रहा है। इसमें दुनिया भर के 194 देश हिस्सा ले रहे हैं। 29 नवंबर को शुरू हुआ यह सम्मेलन 10 दिसंबर तक चलेगा। इसमें 15,000 से अधिक आधिकारिक प्रतिनिधि, पर्यावरण कार्यकर्ता और पत्रकार भाग ले रहे हैं। यह सम्मेलन क्योटो पर्यावरण संधि के बाद के समय के लिए कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए हो रहा है। क्योटो संधि 2011 में समाप्त हो रही है।वर्ष 1992 में ब्राजील में हुए रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन समझौते को लेकर यूएन कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज तैयार की गई थी। क्योटो में 1997 में हुई संधि में कहा गया था कि औद्योगीकृत देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 1990 के स्तर से पांच फीसदी कम करेंगे।
इस संधि पर अमेरिका ने हस्ताक्षर नहीं किया था। पिछले वर्ष कोपेनहेगन में भी जलवायु परिवर्तन को लेकर सम्मेलन हुआ था, पर वहां बात नहीं बनी। वैश्विक स्तर पर वायुमंडल का तापमान बढ़ने के मामले पर एक व्यापक संधि को लेकर दुनिया के विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सहमति न बन पाने के कारण वह सम्मेलन विफल रहा था। विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने की किफायती प्रौद्योगिकी और पर्यावरण हितैषी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए धन की मांग कर रहे हैं, जबकि दुनिया के विकसित मुल्क चाहते हैं कि पर्यावरण से जुड़ी सभी परियोजनाओं की निगरानी उनके ही हाथों में रहे। इसके अलावा, विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की कटौती के लिए भी तैयार नहीं हैं, लेकिन भारत एवं चीन जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था से कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की अपेक्षा रखते हैं। एक आकलन के अनुसार, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण हर वर्ष करीब 17 करोड़ बच्चे प्राकृतिक आपदा का शिकार होंगे। इसका सबसे घातक असर गरीब देशों पर ही पड़ेगा।
इस संधि पर अमेरिका ने हस्ताक्षर नहीं किया था। पिछले वर्ष कोपेनहेगन में भी जलवायु परिवर्तन को लेकर सम्मेलन हुआ था, पर वहां बात नहीं बनी। वैश्विक स्तर पर वायुमंडल का तापमान बढ़ने के मामले पर एक व्यापक संधि को लेकर दुनिया के विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सहमति न बन पाने के कारण वह सम्मेलन विफल रहा था। विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने की किफायती प्रौद्योगिकी और पर्यावरण हितैषी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए धन की मांग कर रहे हैं, जबकि दुनिया के विकसित मुल्क चाहते हैं कि पर्यावरण से जुड़ी सभी परियोजनाओं की निगरानी उनके ही हाथों में रहे। इसके अलावा, विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की कटौती के लिए भी तैयार नहीं हैं, लेकिन भारत एवं चीन जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था से कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने की अपेक्षा रखते हैं। एक आकलन के अनुसार, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण हर वर्ष करीब 17 करोड़ बच्चे प्राकृतिक आपदा का शिकार होंगे। इसका सबसे घातक असर गरीब देशों पर ही पड़ेगा।
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