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सफलता की कहानियां और केस स्टडी
प्रदेश सरकार की योजनाओं पर मारा करारा तमाचा
Posted on 05 Aug, 2011 11:03 AMमदर इंडिया ने अपने परिश्रम से बनाया तालाब
जहां एक ओर राज्य सरकार बलराम सरोवर के नाम पर करोड़ो रूपैया पानी में बहा चुकी है वहीं दुसरी ओर एक मां ने सरकारी योजनाओं को ठेंगा दिखा कर अपने परिश्रम के बल पर नरगीस और सुनीलदत्त की मदर इंडिया की याद ताजा कर दी।
उज्जैन/ उन्हेल(मध्यप्रदेश) यूएफटी न्यूज: मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव उन्हेल की एक मां ने मदर इंडिया की मिसाल कायम की है। मां ने अपने सगे बेटे के साथ मिलकर बिना सरकारी आश लगाए लगातार तीन साल सूखे की मार झेलने के बाद खुद का तालाब बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने यह संकल्प 12 बीघा जमीन बेचकर और पांच लाख रुपए कर्ज लेकर पूरा कर दिखाया। दुर्गाबाई और उनके बेटे 29 वर्षीय भेरुलाल गाजी ने सरवना उन्हेल स्थित अपनी कृषि भूमि पर नौ बीघा में दो तालाब बनाए हैं।रेत में एक हरी और लंबी दीवार
Posted on 26 Jul, 2011 03:53 PMसहारा के रेतीले विस्तार को रोकने के लिए ग्यारह अ़फ्रीकी देशों द्वारा साढ़े सात हज़ार किलोमीटर लंबी हरी दीवार बनाने की परियोजना पर्यावरण को बचाने की एक बड़ी कोशिश है। उत्तर अफ्रीका के देशों को संयुक्त राष्ट्र की वर्षों पहले दी हुई नसीहत अब याद आने लगी है। कई साल पहले जब संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मरुस्थल सहारा के विस्तार की बाबत अफ्रीकी देशों को चेताया था तो उसकी यह चेतावनी नक्
देश के बाद अब प्रकृति की कमान
Posted on 25 Jul, 2011 08:38 AMसेना में रहकर देश की सेवा करने वाले जवानों को रिटायरमेंट के बाद जब पर्यावरण संरक्षण जैसी जिम्मेदारी दी गई तो सरहदों की रक्षा करने वाले हाथ मिट्टी में पूरी तरह रच बस गए। इन हाथों ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का ऐसा काम किया कि आज उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण के मामले में अव्वल हो गया है। मसूरी की खूबसूरत वादियां और सोरघाटी पिथौरागढ़ की हरियाली बरकरार रखने में ईको टास्क फोर्स जी जान से जुटी है। 31 मबस्तर के ग्रीन कमांडो
Posted on 19 Jul, 2011 11:22 AMछत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम आते ही एक ऐसे क्षेत्र की छवि उभरकर सामने आती है जो पिछले कई वर्षों से हिंसा, संघर्ष और रक्तपात से जूझता आ रहा है। विकास की वास्तविक परिभाषा और राजनीतिक परिपेक्ष्य की सीमा में बंधा मीडिया भी इन सवालों के घेरे में उलझ कर रह गया है। इस गहन वैचारिक संघर्ष और उससे जुड़ी बहस में जो बात कहीं खो गई है, वह है बस्तर की अपनी पहचान। यह क्षेत्र कैसा है, यहां के लोग कैसे रहते हैं और वहजिसने विज्ञान को जनता का ककहरा बनाया है
Posted on 14 Jul, 2011 09:33 AMवह किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नहीं है। वह किसी वैज्ञानिक संस्थान में वैज्ञानिक भी नहीं है। उसे आपके-हमारे काम आ सकने वाला जनविज्ञानी कहा जा सकता है।
जंगल बचाने का संघर्ष
Posted on 14 Jul, 2011 08:07 AMसोनभद्र, जुलाई। जनपद में सावन की दस्तक शुरू होते ही आदिवासी महिलाओं ने शासन प्रशासन को चुनौती दे डाली हैं। आदिवासी महिलाओं ने वनों के अंदर वनाधिकार कानून में निहित सामुदायिक अधिकारों के तहत 10000 से भी अधिक पौधों को लगाने का ऐलान किया है। इस कार्यक्रम की शुरुआत जिला मुख्यालय सोनभद्र से की गई। जिला मुख्यालय सैकड़ों की संख्या में पहुंची आदिवासी महिलाओं ने लाल व हरी साड़ी पहन रखी थीं।
चेकडैमों ने बदल दी वन क्षेत्रों की तस्वीर
Posted on 30 Jun, 2011 11:37 AMझांसी। बबीना के गणेशपुरा में दो साल पहले तक सिंचाई के कोई साधन नहीं थे। बरसात का पानी बहकर बेकार चला जाता था। अब वहां हरियाली छा गई है। खेतों में फसलें लहलहाने लगी हैं। यह संभव हुआ है वन विभाग द्वारा चेकडैम बनाकर। जल संचयन से लाभ पाने वाला गणेशपुरा अकेला गांव नहीं है। इस तरह के बुंदेलखंड में एक सैकड़ा वन क्षेत्रीय गांव हैं, जो जल प्रबंधन प्रयासों से हरे-भरे हो गए हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में तापक्रम अधिक होने से भू-गर्भ जल स्तर नीचे चला जाता है। अधिकतर क्षेत्र पठारी होने के कारण बरसात का पानी बहकर बेकार चला जाता है।
सामूहिक निर्णय लेने की ताकत पर मुस्कराता गांव बख्तावरपुरा
Posted on 31 May, 2011 12:43 PMदिल्ली झुंझनू मार्ग पर, झुंझनू से करीब 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाला एक गांव, यहां की साफ सफाई, चमचमाती हुई सड़क, बरबस ही यहां से गुजरने वालों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। रास्ते में एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है `मुस्कराईए कि आप राजस्थान के गौरव बख्तावरपुरा गांव से गुजर रहे हैं। रुककर गांववालों से बात करते हैं तो पता चलता है कि इस गांव में आज पानी की एक बूंद भी सड़क पर या नाली में व्यर्थ नहीं बह
रेगिस्तान में स्वराज कहानी गोपालपुरा गांव की
Posted on 31 May, 2011 09:45 AMराजस्थान के चुरू ज़िले की सुजानगढ़ के रेगिस्तान में गोपालपुरा गांव विकास की नई कहानी लिख रहा है। 2005 में हुए पंचायत चुनाव में गोपालपुरा पंचायत के तहत आने वाले तीन मजरों- गोपालपुरा, सुरवास और डूंगरघाटी के लोगों ने सविता राठी को सरपंच चुना। वकालत की पढ़ाई कर चुकीं सविता राठी ने (लोगों के साथ मिलकर) गांव के विकास का नारा दिया था। लेकिन सरपंच बनने के बाद सविता राठी ने सबसे पहला काम ग्राम सभा की नि
हर्षवंती की देन हैं गोमुख में लहलहाते भोजवृक्ष के जंगल
Posted on 03 May, 2011 08:58 AMबर्फीली हवाओं और बर्फबारी वाले यहां के बेहद प्रतिकूल वातावरण में भोजवृक्षों की नर्सरी तैयार करना और खुद को बचाए रखना एक दुष्कर और चुनौतिपूर्ण काम था।
उत्तरकाशी, 2 मई। समुद्र तल से 3792 मीटर की ऊंचाई पर बसे भोजावासा में एक बार फिर भोजवृक्ष के जंगल लहलहा रहे हैं। एक से 14 साल तक के करीब 10 भोजवृक्षों को वहां लगाया है पर्वतारोही और पर्यावरणविद् डॉक्टर हर्षवंती विष्ट ने। भोजवासा में पांच-छह दशक पहले तक भोजवृक्षों का प्राकृतिक और सघन जंगल हुआ करता था। उसका नाम भी इसी वजह से पड़ा। 1970 के दशक तक भागीरथी (गंगा) के उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने ‘गोमुख’ तक या उससे आगे केवल इक्का-दुक्का लोग ही पहुंच पाते थे। लेकिन इसके बाद वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं, पर्यटकों और पर्वतारोहियों की संख्या बढ़ती चली गई।