पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

Term Path Alias

/sub-categories/books-and-book-reviews

किसान सम्बन्धी कहावतें
Posted on 22 Mar, 2010 12:41 PM
असाढ़ मास जो गँवही कीन।
ताकी खेती होवै हीन।।


शब्दार्थ- गँवही-गमन, मेहमानी।

भावार्थ- यदि किसान आषाढ़ मास में मेहमानी करता फिरता है तो उसकी खेती कमजोर या नष्ट हो जाती है क्योंकि यह समय खेती के काम के लिए उपयुक्त होता है।

हथिया में हाथ गोड़ चित्रा में फूल
Posted on 22 Mar, 2010 12:31 PM
हथिया में हाथ गोड़ चित्रा में फूल।
चढ़त सेवाती झम्पा झूल।


भावार्थ- हस्त नक्षत्र में जड़हन (धान) की फसल में डण्ठल निकलना शुरू होता है। चित्रा में फूल निकलने लगता है और स्वाति नक्षत्र के प्रारम्भ में बालें लटक आती है।

सब कार हर तर
Posted on 22 Mar, 2010 12:29 PM
सब कार हर तर।
जो खसम सीर पर।।


शब्दार्थ- सीर-जमीन। कार- काम।

भावार्थ- यदि जमीन का मालिक स्वयं खेती के सारे काम करें तो खेती कुल पेशों से उत्तम है।

सर्व तपै जो रोहिणी
Posted on 22 Mar, 2010 12:26 PM
सर्व तपै जो रोहिणी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।


भावार्थ- यदि रोहिणी पूरी तरह से तपे और मूल में भी उसी तरह गर्मी रहे और जेठ की परिवा भी उसी प्रकार तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे, ऐसा घाघ का मानना है।

बिधि का लिखा न होवै आन
Posted on 22 Mar, 2010 12:24 PM
बिधि का लिखा न होवै आन। बिना तुला ना फूटै धान।।
सुख सुखराती देवउठान। तेकरे बरहे करौ नेमान।।
तेकरे बरहे खेत खरिहान। तेकरे बरहे कोठिलै धान।।

रूँध बाँध के फाग दिखाये
Posted on 22 Mar, 2010 12:21 PM
रूँध बाँध के फाग दिखाये।
सो किसान मोरे मन भाये।।


भावार्थ- ईख कहती है कि किसान होली तक मुझे अच्छी तरह रूँध देता है वह मुझे बहुत पसंद है।

रड़है गेहूँ कुसहै धान
Posted on 22 Mar, 2010 12:19 PM
रड़है गेहूँ कुसहै धान। गड़रा की जड़ जड़हन जान।।
फुली घास रो देयँ किसान। वहिमें होय आन का तान।।


शब्दार्थ- रड़हैं- राँढ़ी नामक घास।
यकसर खेती यकसर मार
Posted on 22 Mar, 2010 11:50 AM
यकसर खेती यकसर मार।
घाघ कहैं ये सदहूँ हार।।


भावार्थ- जो किसान अकेले खेती करता है और अकेले ही मारपीट करता है, घाघ कहते हैं वह सदैव हारता है।

बेस्या बिटिया नील है
Posted on 22 Mar, 2010 11:48 AM
बेस्या बिटिया नील है, बन साँवा पुत जान।
वो आई सब घर भरै, दरब लुटावन आन।।


शब्दार्थ- दरब-द्रव्य, धन।
बहुत करे सो और को
Posted on 22 Mar, 2010 11:45 AM
बहुत करे सो और को ।
थोड़ी करे सो आप को ।।


भावार्थ- खेती ज्यादा करने से दूसरों को लाभ पहुँचता है और थोड़ी करने से अपना काम चलता है।

×