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तृप्ति वो ही प्याऊ वाली
Posted on 26 May, 2010 09:45 PM
समाज में कई परंपराएँ जन्म लेती हैं और कई टूट जाती हैं। परंपराओं का प्रारंभ होना और टूटना विकासशील समाज का आवश्यक तत्त्व है। कुछ परंपराएँ टूटने के लिए ही होती हैं पर कुछ परंपराएँ ऐसी होती हैं, जिनका टूटना मन को दु:खी कर जाता है और परंपराएँ हमारे देखते ही देखते समाप्त हो जाती हैं, उसे परंपरा की मौत कहा जा सकता है।
साफ पानी पर बोतलबंद डाका
Posted on 20 May, 2010 10:37 PM शेयर बाजार हमें सिखाता है कि आपको कल्पनाशील होना चाहिए. यह कल्पनाशीलता किसी भी ऊंचाई तक जा सकती है.

इसलिए साफ पानी के बारे में आपको भी कुछ कल्पनाएं करनी चाहिए. एक ऐसी दुनिया की कल्पना करिए जहां सारा साफ पानी बोतलों में बंद है. बहुत से लोग भले ही इस बात से इत्तेफाक न रखें लेकिन कुछ लोगों को पता है कि यह संभव हो सकता है. शीर्ष शीतलपेय कंपनियां इस तरह की कल्पना कर रही हैं और संभावना भी टटोल रही हैं कि भविष्य में साफ पानी और बोतल एक दूसरे के पर्याय कैसे बन जाएं. वैसे भी साफ पानी करोड़ों लोगों के लिए सपना हो गया है ऐसे में राजनीतिक दल कुछ बेहतर काम कर सकते हैं. उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ पेयजल योजना पर काम करना चाहिए. आजकल जैसे राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जा रही है उसी तरह चौबीसों घण्टे साफ पानी उपलब्ध कराने की योजना पर काम किया जाना चाहिए
पानी, जहर और जीडीपी
Posted on 17 May, 2010 10:13 PM

भारत में नदियों को प्रदूषित करने की अनुमति दी जाती है. आप जितना प्रदूषित पानी पिएंगे, बीमार पड़ने की उतनी ही अधिक संभावना होगी. फिर आप डाक्टर के पास जाएंगे, जो आपसे फीस वसूलेगा. जिसका मतलब हुआ कि पैसा हाथों से गुजरेगा. इससे जीडीपी बढ़ेगी. यहां तक कि सफाई अभियान भी, जैसे यमुना की सफाई के लिए एक हजार करोड़ रुपए, जीडीपी की गणना को ही बढ़ाती है.

इस चिलचिलाती गरमी में पानी का मुद्दा गरमाया हुआ है. जैसे-जैसे तापमान चढ़ रहा है और प्रमुख जलस्त्रोत सूखते जा रहे हैं, दिन-ब-दिन पीने के पानी को लेकर खून बहने लगा है. अपनी रोजमर्रा की जरूरत भी पूरी न होने से गुस्साएं प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल रहे हैं. आने वाले महीनों में, पानी की अनुपलब्धता सुर्खियों में रहने वाली है.

पिछले 15 सालों से खतरे की घंटी बज रही है, किंतु किसी ने भी परवाह नहीं की. 1990 के दशक के मुकाबले पिछले दशक में 70 प्रतिशत अधिक भूजल का दोहन हुआ है और देश भर में जलस्त्रोत प्रदूषित हो गए हैं. जिससे कैंसर और फ्लूरोसिस जैसी बीमारियां फैल रही हैं.

पानी तय करेगा हमारा मानवीय होना
Posted on 16 May, 2010 05:23 PM

अब कोई अपने पानी को बांटना नहीं चाहता। वे भी नहीं जिनके पास अच्छा-खासा पानी है। मसलन, मुंबई की हाउसिंग सोसाइटी ये नियम बना रही हैं कि कोई बाहरी शख्स पानी को बाहर न ले जाए। असल में ये बाहरी भी अंदर के ही लोग हैं। ये हमारे घरों में काम करने वाले हैं। उनके बिना हमारी जिंदगी नहीं चल सकती। ये वे लोग हैं जो घरों में साफ-सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, बर्तन मांजते हैं। ये उन घरों में काम करते हैं, जहां पानी पाइप के जरिए आता है। यहां काम करने के बाद वे अपने घरों को जाते हैं।

चार बाल्टी पानी से क्या आप पांच लोगों के परिवार का काम चला सकते हैं? यह ज्यादा से ज्यादा 80 लीटर दिन भर में हुआ। यानी 20 लीटर प्रति व्यक्ति हर रोज। यही नहीं कभी-कभी तो दिन भर में एक बूंद भी पानी नहीं। ये लाखों लोग इस चुनौती को किसी रेगिस्तान में नहीं झेल रहे हैं। ये मुंबई के लोग हैं, जहां हिंदुस्तान के किसी भी शहर से बेहतर पानी की व्यवस्था है। अगली पानी की लड़ाई देशों के बीच नहीं होगी। वह तो शहरों में दो वर्गो के बीच होगी। अगर लोग ऐसा कहते हैं, तो क्या गलत है।

असल में अगली लड़ाई गरीब और अमीर के बीच होनी है। यों अमीरों को भी पानी कटौती का सामना करना पड़ेगा।
जल अनुशासन ही समाधान
Posted on 16 May, 2010 08:57 AM

सरकार ने जीवन के हर क्षेत्र में समाज को अपने ऊपर निर्भर बनाने की कोशिश की है। सस्ता विकल्प था समाज की पहल से तालाब, कुएं, बेरियां खुदवा कर समाज के सुपुर्द कर देना। आज भी बिप्रासर का तालाब इसलिए सिर उठाए खड़ा है, क्योंकि वहां के समाज ने उसके आगोर में कोई अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया।

राजस्थान के 33 में से 26 जिले अकालग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं। जैसलमेर और बाड़मेर तो अनंतकाल से ही 'सूखाग्रस्त' रहे हैं, लेकिन वहां पानी के लिए कभी दंगा नहीं हुआ, जैसा इंदिरा गांधी नहर का लाभ पा रहे श्रीगंगानगर, बीकानेर या हनुमानगढ़ में हुआ। यहां के समाज ने कमतर पानी की उपलब्धता के साथ जीना सीखा है। पानी के परिवहन के बजाय पानी के अनुशासन के साथ जीना सीखा है। ऎसा नहीं कि बीकानेर, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के लोगों में ये गुण नहीं थे। वे भी उतने ही गुणवान रहे हैं और अनुशासित भी। लेकिन नहर के झुंझुने ने उनका अनुशासन बहुत पहले तोड़ दिया।
वर्षा जल संचयन और इसके लाभ | Rainwater Harvesting Essay in Hindi
जानिए कैसे वर्षा जल संचयन आपके जीवन और पर्यावरण को कैसे बेहतर बना सकता है और इसके लाभों को समझें | Get information about rain harvesting in hindi. Posted on 13 Feb, 2010 10:52 AM
वर्षा जलसंग्रहण क्‍या है ?

वर्षा के पानी का बाद में उत्‍पादक कामों में इस्‍तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है। आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्‍य तरीके से इकट्ठा कर

वर्षा जल संचयन और इसके लाभ
बाईबिल में जल का महत्व
Posted on 08 Feb, 2010 01:02 PM जल स्वयं में देवता, देवताओं का अर्पण और पितरों का तर्पण। जिन्दा को जल, जलने पर जल, मरने पर जल, कितना महत्वपूर्ण है जल। तभी तो आज भी प्रथम अनिवार्य आवश्यकता जल ही जीवन है। इस तथ्य को दुनिया की सभी सरकारें एवं सामाजिक संस्थाएँ आत्मसात् किये हुए हैं। आज के उपभोक्तावादी युग में जल का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में स्वीकृत हो रहा है। पुरातन युग में विशेष जल का प्रबंध धार्मिक अनुष्ठानों को सफल और
वैदिक वाङ्मय में नदी-भौतिक रूप या प्रतीकात्मक
Posted on 08 Feb, 2010 12:38 PM ऋग्वेद और अथर्ववेद में अनेक नदियों का उल्लेख है। दोनों में ‘सप्त सिंधवः’ अर्थात साथ नदियों का अनेक बार उल्लेख है। अथर्ववेद में तो कहा गया है कि सात नदियाँ हिमालय से निकलती हैं और सिंधु में मिलती है। इन्हें सिंधु की पत्नी और सिंधु की रानी भी कहा गया है। इन सात नदियों में पाँच तो पंजाब की ही है- शुतुद्री, विपाशा, इरावती, चन्द्रभागा तथा बितस्ता, जिन्हें आज क्रमशः सतलज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम कहा
पानी के मंदिर
Posted on 09 Jan, 2010 07:06 PM

बीस साल पहले 23 साल का एक नौजवान इन्दौर से अपनी जेब में सेंधवा के सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर का नियुक्ति पत्र लेकर रवाना होता है।

नाम है – श्री तपन भट्टाचार्य।

pond
बुंदेलखंड : पैकेज नहीं, नई सोच चाहिए
Posted on 18 Oct, 2009 06:10 PM यही विडंबना है कि राजनेता प्रकृति की इस नियति को नजरअंदाज करते हैं कि बुंदेलख
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