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विकास ढांचा बदलने से नदियों की मुक्ति
Posted on 29 Aug, 2010 08:16 AM
गंगा की मुक्ति के लिए काम करने वाले एक बार पुन: उत्साहित हैं। आखिर केन्द्र सरकार के मंत्रिमण्डलीय समूह ने लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना पर काम रोक दिया है।
प्रोफेसर अग्रवाल ने अनशन खत्म किया
Posted on 25 Aug, 2010 09:36 AM
कहा- दिए गए आश्वासन भी पूरे हों

हरिद्वार, 24 अगस्त, उत्तराखंड में भागीरथी नदी पर बन रही लोहारी नागपाला जलविद्युत परयोजना को बंद करने की मांग को लेकर 36 दिन से आमरण अनशन पर बैठे आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को जूस पिलाकर व फल खिलाकर केंद्रीय पर्यावरण व वन राज्यमंत्री जयराम रमेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा.

इस साल के सूखे में दक्षिण बिहार के लोगों की मदद करें
Posted on 06 Aug, 2010 12:26 PM पानी की समस्या पर काम करने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, संस्थाएँ एवं सरकार के विभाग इस विषम परिस्थिति में राहत कार्य के रूप में जलाशयों के जीर्णोद्धार के काम को ऊच्च प्राथमिकता दे कर तत्परतापूर्वक अभी से लग जाएँ। इससे सूखे के दौरान लोगों को काम भी मिल जायेगा और आगे कम वर्षा के समय इन जलाशयों से सिंचाई तो होगी ही साथ ही भूमिगत जल के संभरण एवं पेयजल की समस्या का भी दीर्घकालिक समाधान होगा। ऐतिहासिक रूप से विख्यात मगध प्रमण्डल (पूर्व में गया जिला) बिहार का दक्षिणी भाग है। मगध प्रमण्डल में चार जिले गया, औरंगाबाद, जहानाबाद तथा नवादा हैं। मगध क्षेत्र की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक गौरव और इसके अविछिन्न इतिहास का आधार इस इलाके की अद्भुत सिंचाई व्यवस्था रही है। फल्गु , दरधा, सकरी, किउल, पुनपुन और सोन मगध क्षेत्र की मुख्य नदियाँ हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहमान ये नदियाँ गंगा में मिलती हैं। ‘बराबर पहाड़’ के बाद फल्गु कई शाखाओं में बँट कर बाढ़ - मोकामा के टाल में समा जाती है। बौद्धकाल से ही मगध वासियों ने सामुदायिक श्रम से फल्गु, पुनपुन आदि इन नदियों से सैंकडों छोटी-छोटी शाखायें निकालीं, जिससे बरसात में पानी कोसों दूर खेतों तक पंहुचाया जा सके।

सामुदायिक श्रम से वाटर हार्वेस्टिंग की एक अद्भुत विधा और तकनीक का विकास सह्स्राब्दियों से इस इलाके में होता रहा, जो ब्रिटिश शासन तक चालू रहा।
प्रो. अग्रवाल के साथ खड़े हुए गोविंदाचार्य, अनशन का आज दसवां दिन
Posted on 29 Jul, 2010 11:03 AM
मातृ सदन, हरिद्वार। 29 जुलाई 2010। प्रख्यात पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक प्रोफेसर जीडी अग्रवाल जी का आमरण अनशन आज दसवें दिन भी जारी है। हरिद्वार के मातृसदन में लोहारीनागा पाला जल विद्युत परियोजना के खिलाफ प्रो. अग्रवाल के अनशन को 27 जुलाई मंगलवार देर सायं प्रो.
सब कुछ खत्म हो जाएगा उसके साथ
Posted on 24 Jul, 2010 01:54 PM ग्रीन आजकल फैशन में है। इस साल इन्वायरनमेंट डे पर मीडिया में जितनी कवरेज दिखी, वह बेमिसाल थी। हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग पर दुनिया के देश किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाए और न ही ऐसी उम्मीद है कि धरती को इस सबसे बड़े खतरे से उबारने का तरीका जल्द ही खोजा जा सकेगा, लेकिन इन्वायरनमेंट को लेकर इस दौरान मचे शोर ने जागरूकता कई गुना बढ़ा दी है। लोग अपने लेवल पर धरती को बचाने की जुगत करने लगे हैं, सरकारी
विदेशी धन पर 'जंगलराज'
Posted on 05 Jul, 2010 09:18 AM
जंगलों की सुरक्षा और विकास के लिए जापान सरकार की ओर से दी गई सहायता राशि पर वन विभाग के अफसर जमकर मनमानी कर रहे हैं। विभाग के लगभग सभी डिवीजन में इस बजट से पौधरोपण, एनीकट आदि के काम किए जा रहे हैं। कई जगहों पर एनीकट बनाने का यह काम कागजों में ही पूरा करके बिल फाइनल हो रहे हैं और चेक भी काट दिए गए हैं।
जलीय जीव-मछली का विकास नदी बचाकर करना होगा
Posted on 03 Jul, 2010 10:15 AM उत्तराखण्ड राज्य नदी, पर्वत एवं उसमें विराजमान वन एवं जैव-विविधता से परिपूरित लगता है। वह चाहे मनुष्य हो या अन्य जीवधारी, यहां के निवासियों का जीवन एवं जीविका जल, जंगल एवं जमीन पर निर्भर है। हिमानी एवं जंगलों के बीच से निकलने वाले गाड़-गदेरों व नदियों के पानी से असंख्य जीव-जन्तु एवं वनस्पतियों के विकास की कहानी जुड़ी हुई है। अतः पानी में रहने वाले जीव-जन्तुओं की एक विशेषता यह है कि ये जल प्रदूषण क
इतिहास बनता जा रहा है भूगोल
Posted on 02 Jul, 2010 10:23 AM दिल्ली में 1857 के गदर का हाल बताते हुए मिर्जा गालिब अपनी एक चिट्ठी में दरियागंज का जिक्र 'दरिया किनारे बसा नया मुहल्ला' के रूप में करते हैं। पढ़ कर आश्चर्य होता है कि दरियागंज क्या सचमुच कभी यमुना नदी के किनारे रहा होगा? अभी तो इससे यमुना की दूरी दो-ढाई किलोमीटर से कम नहीं होगी। नदियों की धारा पलटना भूगोल में एक स्वाभाविक घटना मानी जाती है, लिहाजा डेढ़ सौ सालों में घटित इस आश्चर्य को हम अनदेखा भी कर सकते हैं। लेकिन राजधानी के तेजी से बदलते भूगोल के साथ इस तरह के कई आश्चर्य जुड़े हैं, जिनकी वजह कोई प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि मानवीय गतिविधियां हैं। जैसे रायसीना हिल्स का किसी पहाड़ी से नाता अब बिल्कुल समझ में नहीं आता। लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य ने खुद को सल्तनत-ए-मुगलिया का कहीं बेहतर वारिस साबित करने की कोशिश में रायसीना नाम की पहाड़ी को समतल करके वहां वाइसराय हाउस की स्थापना की, जिसे हम आज
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