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वनों पर प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन का प्रकोप
क्लोरोफ्लोरोकार्बन के विमोचन से ओजोन परत की अल्पता होने के कारण सूर्य की पैराबैंगनी किरणें धरातल तक पहुंच कर उसका तापमान बढ़ा देती हैं जिसके फलस्वरूप पादप एवं जंतु जीवन को भारी क्षति होती रही है तथा मनुष्य में चर्म कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो रही है। मनुष्य के द्वारा पर्यावरण का ह्रास इस कदर हो जाना कि वह होमियोस्टैटिक क्रिया से भी पर्यावरण को सही नहीं किया जा सकता है। Posted on 02 Sep, 2023 12:06 PM

वन किसी भी राष्ट्र की मूल्यवान संपत्ति हैं क्योंकि वनों से कच्चे पदार्थ लकड़ियाँ सूक्ष्म जीवों के लिए आवास, मिट्टी के अपरदन से बचाव, भूमिगत जल में वृद्धि होती है। वन, कार्बन डाईऑक्साइड का अधिक से अधिक मात्रा में अवशोषण करते हैं एवं कारखानों से निकलने वाली मानव जनित कार्बन डाईऑक्साइड को सोख कर वायुमंडल के हरित ग्रह प्रभाव को कम करते हैं। कारखानों से निकलने वाली गैसों के पर्यावरण पर कई प्रकार के

वनों पर प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन का प्रकोप
अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में विकासशील विश्व का नेतृत्व करता भारत
भारत ने जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन में समान और साझा किंतु भिन्न-भिन्न उत्तरदायित्व, जो इसकाआधारभूत सिद्धांत है, को अंतः स्थापित करने में महत्वपूर्ण नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया। Posted on 01 Sep, 2023 02:44 PM

सीओपी 21 के दौरान भारत के मंडप में भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी
जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी आकलन रिपोर्ट (एआर 5) के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तापमान में उपरोक्त वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि, वन, जल-संसाधन, तटीय क्षेत्रों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों पर विपरीत प्रभाव डालेगी। Posted on 01 Sep, 2023 02:19 PM

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी आकलन रिपोर्ट (एआर 5) के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तापमान में उपरोक्त वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि, वन, जल-संसाधन, तटीय क्षेत्रों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों पर विपरीत प्रभाव डालेगी। आईपीसीसी के अनुसार, यद

जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव : एक आकलन
वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में
आज तक सम्पूर्ण विश्व इस ओर कुछ करने में असमर्थ है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव विकसित देशों की औद्योगिक दर एवं विकास दर पर पड़ रहा है जिससे ये देश अपनी इस समस्या का उल्लेख कर इस वैश्विक समस्या ग्लोबल वार्मिंग के प्रति उदासीन दिखाई देते हैं। वैसे अगर देखा जाये तो देश से ज़्यादा देश के लोगों का इस समस्या के प्रति उदासीन रवैया इस समस्या को बढ़ा रहा है क्योंकि देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग में उपस्थित ग्रीन हाउस गैसों के कारक सामान्य व्यक्ति से जुड़े हैं जिनमें कार्बन उत्सर्जन रेट मुख्य कारक है। Posted on 01 Sep, 2023 01:31 PM

ग्लोबल वार्मिंग आज के सन्दर्भ में बड़ा ही सामान्य सा नाम है। इसके अर्थ को आज कल हर सामान्य व्यक्ति जानता हैं परन्तु इसका प्रभाव जो आम जीवन पर पड़ता है वह एक विशेष अवस्था है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। जैसे-जैसे समाज और देश प्रगति करते गए, वैसे-वैसे मानव और प्रकृति के बीच असंतुलन बढ़ता गया। गैसों के उत्सर्जन को लेकर भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व चिंतित है परन्तु विशेष बात यह है कि आज तक सम्पूर्ण व

वैश्विक प्राकृतिक घटनाएं एवं उनका प्रभाव - ग्लोबल वार्मिंग के सन्दर्भ में
विकास से उपजती है बाढ़
हिमालय से दिल्ली तक के हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश राज्यों की नदियों के किनारे 13,900 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर दो करोड़ लोग निवास कर रहे हैं। Posted on 01 Sep, 2023 01:15 PM

यह जानने के लिए अब किसी गहन - गंभीर शोध की जरूरत नहीं बची है। कि आजकल विकास के नाम पर किया जाता धतकरम असल में भीषण त्रासदियों को जन्म देता है। इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली जिस तरह से बाढ़ की चपेट में है उससे विकास की यही विडंबना खुलकर उजागर हो रही है। शहर के बुनियादी ढांचे की विकास परियोजनाओं ने स्थानीय जल निकास यानि सीवेज को बाधित कर दिया है। खराब तरीके से डिजाइन किए गए शहरी विस्तार में सीवे

विकास से उपजती है बाढ़
पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक प्रयास (Global efforts to protect the environment in Hindi)
ग्लोबल वार्मिंग यानी गर्माती धरती की समस्या से निपटने के लिए पहला अन्तर्राष्ट्रीय करार क्योटो प्रोटोकॉल है जो 1997 में किए गए यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) का संशोधित रूप है। जापान के क्योटो शहर में "क्योटो प्रोटोकाल" नामक मसौदा पर्यावरण विध्वंस को रोकने की विश्व इच्छा का प्रतीक बनकर सामने आया था। विश्व के अधिकतर देशों ने जलवायु परिवर्तन की समस्या पर चिंता व्यक्त की । Posted on 29 Aug, 2023 05:05 PM

पृथ्वी के पर्यावरण का संकट आज सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। वर्तमान में पर्यावरण संबंधी विसंगतियों को दर्शाते अध्ययनों और रिपोर्टों की कमीं नही हैं। हर दिन प्रदूषण से जुड़े तमाम भयावह आंकड़े हमारे सामने आते हैं, जो पृथ्वी की बदलती आबोहवा के प्रति हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण के वैश्विक प्रयास
प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होता स्वास्थ्य
प्रदूषण का मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। प्रदूषण जनित जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ एवं सूखे की स्थिति में विस्थापन के कारण कुपोषण, भुखमरी एवं संक्रामक रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 1970 के बाद हुए जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप विकासशील देशों में प्रतिवर्ष 1,50,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है। Posted on 28 Aug, 2023 03:45 PM

हमारे आस-पास के पर्यावरण का स्वास्थ्य से सीधा संबंध होता है। स्वस्थ पर्यावरण अच्छे स्वास्थ्य की निशानी होती है । इसलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण की सुरक्षा भी आवश्यक है। यदि पर्यावरण ही प्रदूषित हो तब फिर अच्छे स्वास्थ्य की उम्मीद नहीं की जा सकती है। निरोगी जीवन के लिए शुद्ध आबोहवा या कहें जलवायु का सर्वाधिक योगदान होता है।

प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होता स्वास्थ्य
वैश्विक तापन के संभावित परिणाम
बढ़ते प्रदूषण के कारण तापमान में बदलाव का विश्व भर में व्यापक प्रभाव दिखाई दे रहा है । आज बदलती जलवायु के प्रभाव कुछ क्षेत्रों विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र, अफ्रीका और छोटे द्वीपों को अधिक प्रभावित कर रहा है। उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) दुनिया की तुलना में दोगुनी दर से गर्म हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार आगामी कुछ वर्षों में ग्रीष्म ऋतु के दौरान उत्तरी ध्रुव की बर्फ पिघल जाएगी । एक अन्य अध्ययन के अनुसार ऐसा छह वर्ष के दौरान भी हो सकता है। पिछले 100 वर्षों में अंटार्कटिका के तापमान में दोगुनी वृद्धि हुई है। Posted on 28 Aug, 2023 02:26 PM

प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं ने धरती के विविध रंगों को बेरंग कर दिया है। प्रदूषण के कारण बदलती आबोहवा जीवन के ताने-बाने को पूरी तरह नष्ट करने को है । प्रदूषण के चलते उत्पन्न अनेक समस्याओं में बदलती जलवायु मुख्य समस्या है। आज बदलती जलवायु से कहीं ग्लेशियर पिघलने लगे हैं तो कहीं नदियां सूखने लगीं हैं जिसके कारण कहीं धरती की प्यास बढ़ रही है तो कहीं फसलें तबाह होने लगीं हैं। इस अध्याय में प्रदूषण औ

वैश्विक तापन के संभावित परिणाम
बदलती जलवायु
किसी स्थान का मौसम ही उस स्थान की जलवायु को निर्धारित करने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक होता है। लंबे समय तक चलने वाला मौसम ही जलवायु का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार किसी क्षेत्र के दीर्घकालीन लगभग 30 वर्षों तक के मौसम को जलवायु कहा जाता है। Posted on 25 Aug, 2023 03:53 PM

पृथ्वी की जलवायु के निर्धारण में अनेक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कारकों में मुख्य कारक सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा, धरती का वायुमंडल और महासागर आदि हैं। धरती की जलवायु सदैव एक जैसी नहीं रही है। धरती की सतह का औसत तापमान विभिन्न युगों में परिवर्तित होता रहा है। बीते एक अरब वर्षों के दौरान पृथ्वी की जलवायु कभी सर्द, कभी गर्म और कभी हिमयुगों वाली रही है। वैज्ञानिकों ने ध्रुवों पर गहराई मे

बदलती जलवायु
गर्माती धरती
बढ़ते प्रदूषण के कारण आज सबसे अधिक चिंता का विषय धरती के औसत तापमान का बढ़ना है। इस परिघटना को ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापन भी कहा जाता है । ग्लोबल वार्मिंग से आशय पृथ्वी की सतह के निकट वायुमंडल तथा क्षोभ मंडल में तापमान के बढ़ने से है Posted on 25 Aug, 2023 03:33 PM

गर्माती धरती
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