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वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा
उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. विगत कई वर्षो से वृक्षों की आक्रामक प्रजातियों की बढ़ती संख्या को अनदेखा करता रहा, परंतु अब यही आज राज्य के लिए चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं. इन प्रजातियों से न केवल राज्य में वनों को वरन् वन्य जीवों को भी नुकसान हो रहा है. राज्य में वनों का अस्तित्व देखा जाए तो 40-50 वर्ष पूर्व राज्य में बाज, उतीस, खड़िग, भीमल, क्वैराल, पदम, काफल, बेडू जैसी प्रजातियों के जंगल हुआ करते थे, Posted on 22 Dec, 2023 02:23 PM

उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. विगत कई वर्षो से वृक्षों की आक्रामक प्रजातियों की बढ़ती संख्या को अनदेखा करता रहा, परंतु अब यही आज राज्य के लिए चिन्ता का विषय बनते जा रहे हैं. इन प्रजातियों से न केवल राज्य में वनों को वरन् वन्य जीवों को भी नुकसान हो रहा है.

वृक्षों के आक्रामक प्रजातियों से मानव और वन को खतरा,Pc-चरखा फीचर
प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
प्रौद्योगिकी उन्नयन और समावेशी विकास ग्रामीण भारत के विकास के केंद्र बिंदु रहे हैं। देश की प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियां आत्मनिर्भर गाँवों के लिए तकनीकी सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आज प्रौद्योगिकी को समाज और गाँव केंद्रित बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी के सामंजस्य और खेतों तक पहुँच से बेहतर कृषि उत्पादकता, सामाजिक-आर्थिक समानता और सतत विकास को सुनिश्चित किया जा रहा है। ग्रामीण आत्मनिर्भरता, तकनीकी समझ और कृषि प्रौद्योगिकी से लेकर कौशल विकास की परिभाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ देश के गाँवों में सृजित हो रही है। भारत में करीब साढ़े छह लाख गाँव है, छह हजार से अधिक ब्लॉक हैं, और सभी पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासित हैं।  Posted on 22 Dec, 2023 01:37 PM

गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का एक बड़ा लक्ष्य किसानों और गाँवों को तकनीकी रूप से सम्पन्न बनाने में निहित है। देश की प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों को गाँवों और खेतों तक पहुँचाया जा रहा है। देश में 'लैब टू लैंड' प्रयासों से किसानों को तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों और संसाधनों को सीधे गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है।

प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
वर्टीकल फार्मिंग के बढ़ते कदम
कम्प्यूटर के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि घूमने वाली रैकों में उगने वाले प्रत्येक पौधे को एकसमान ही प्रकाश की प्राप्ति हो इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि पानी के पम्पों से पोषक तत्वों का वितरण एकसमान रूप से हो किसान अपने स्मार्ट फोन से सम्पूर्ण बहुमंजिला खेत की देखभाल कर सकते हैं. Posted on 22 Dec, 2023 11:16 AM

वर्टिकल फार्मिंग में खेती सपाट जमीन पर न होकर बहुमजली इमारतों पर की जाती है. इसे बहुमंजिला ग्रीनहाउस भी कहा जाता है. वर्टिकल फार्मिंग के अन्तर्गत बहुमंजली इमारतों पर नियंत्रित स्थितियों में फल, सब्जियाँ आदि उगाए जाते हैं. बहुमजली इमारत में रैकों के ऊपर पौधे उगाए जाते हैं. इन रैकों को हाइड्रोपोनिक सिस्टम के द्वारा पोषक तत्व पहुँचाए जाते हैं.

वर्टीकल फार्मिंग के बढ़ते कदम
दुनिया भर में बांधों को हटाने में वृद्धि
बांध को हटाने की योजना बनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि इसकी कुछ लागत तो आएगी ही। साथ ही नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के प्रभावित होने की संभावना भी रहेगी Posted on 22 Dec, 2023 11:05 AM

सभी बड़े बांधों की उम्र सीमित होती है। क्या आपने कभी सोचा है कि एक बार बांध का उपयोगी जीवन समाप्त होने पर उसका क्या होता है? इसे हटाना होता है जिसे डीकमीशनिंग कहते हैं। डीकमीशनिंग का मतलब बांध और उससे जुड़ी संरचनाओं को पूरी तरह हटाने से है।

दुनिया भर में बांधों को हटाने में वृद्धि
भारत में बांध हटाने की नीति व कार्यक्रम की आवश्यकता
जल शक्ति मंत्रालय की संसदीय समिति ने मार्च 2023 की 20वीं रिपोर्ट में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग से भारत में बांधों और सम्बंधित परियोजनाओं के व्यावहारिक जीवनकाल और प्रदर्शन का आकलन करने की व्यवस्था को लेकर सवाल किया था। Posted on 22 Dec, 2023 10:56 AM

जल शक्ति मंत्रालय की संसदीय समिति ने मार्च 2023 की 20वीं रिपोर्ट में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग से भारत में बांधों और सम्बंधित परियोजनाओं के व्यावहारिक जीवनकाल और प्रदर्शन का आकलन करने की व्यवस्था को लेकर सवाल किया था। वास्तव में इस सवाल का बांधों को हटाने के विचार पर सीधा असर पड़ता। लेकिन विभाग ने जवाब दिया था कि “बांधों के व्यावहारिक जीवनकाल और प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कोई

भारत में बांध हटाने की नीति व कार्यक्रम की आवश्यकता
जलवायु परिवर्तन के परिवेश में कृषि का स्वरूप
आधुनिक कृषि विज्ञान, पौधों में संकरण, कीटनाशको, रासायनिक उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है. साथ ही, यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए क्षति का कारण भी बना है।  इससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ-साथ फसल उत्पादकता भी स्थिर है।  Posted on 21 Dec, 2023 04:28 PM

आज दुनिया की आबादी बढ़कर 8 अरब हो गई है. वैश्विक जनसंख्या 2037 तक 9 अरब और 2050 के आस-पास 10 अरब से ज्यादा होने का अनुमान है.

जलवायु परिवर्तन के परिवेश में कृषि का स्वरूप
ऑस्ट्रेलियन केंचुआ जैविक खेती के लिए बन गया वरदान
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक भारतीय केंचुए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की बजाय जमीन में घुसकर मिट्टी भुरभुरी करते हैं। ऑस्ट्रेलिया के आइसीबिया की डीडा व भूडीयन मदिनी प्रजाति की मादा केंचुआ हर दो महीने में 60 अंडे देती है। Posted on 21 Dec, 2023 03:41 PM

जैविक खेती के लिए ऑस्ट्रेलियन केंचुआ वरदान साबित हो रहा है। यही वजह है कि बिलासपुर, मुंगेली, जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बस्तर, कांकेर सहित राज्य के कई जिलों में किसान बड़े पैमाने पर वर्मी खाद को खेती में इस्तेमाल और उत्पादन कर रहे हैं। दरअसल, इसके पहले ज्यादा पैदावार लेनेवाले किसानों ने रासायनिक खाद का सहारा लिया। इसके साइड इफेक्ट से जमीन बंजर और पैदावार कमजोर होती गई। इसके बाद उन्हें जैविक खेती

ऑस्ट्रेलियन केंचुआ जैविक खेती के लिए बन गया वरदान
दूध उत्पादन के लिये कुछ उपयोगी सुझाव
पशुओं के लिये उचित भोजन वह है जो स्थूल, रूचिकर, रोचक, भूखवर्धक और संतुलित हो और इसमें पर्याप्त हरे चारे मिले हो, उसमें रसीलापन मिला हो और वह संतुष्टि प्रदान करने वाला हो। पशुओं को आमतौर पर दिन में थोड़े-थोड़े समय के अंतर पर 3 बार भोजन देना चाहिए Posted on 21 Dec, 2023 11:55 AM

पशुओं को आहार से मुख्यतया प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, विटामिंस आदि पोषक पदार्थ मिलते है जिनका उपयोग ये पशु अपने जीवन निर्वाह, बढ़ोतरी, उत्पादन, प्रजनन तथा कार्यक्षमता आदि के लिये करते हैं। भारत में पशुओं के कम दूध देने वाले पशु, करोड़ों भूमिहीन और सीमांत कृषक, फसलों के बचे अवशेष का उपयोग चारागाहों की कमी आदि है। ऐसे क्षेत्र जहां पर मिश्रित खेती होती है वहां पर दूध उत्पादन प्राय: अधिक पा

दूध उत्पादन के लिये कुछ उपयोगी सुझाव
हर माह 12 लाख रुपये खर्च, फिर भी प्रदूषण से कराह रही सई नदी
वर्तमान में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रतिदिन आठ से नौ मिलियन लीटर गंदा पानी फिल्टर करने के बाद सईनदी में छोड़ता है। दूसरी ओर तीन नालों का करीब पांच से छह मिलियन लीटर गंदा पानी सीधे नदी में गिर रहा है। नतीजा सई नदी अब भी प्रदूषण से कराह रही  है। Posted on 21 Dec, 2023 11:29 AM

प्रशासन हर महीने 12 लाख रुपये खर्च कर रहा है, इसके बाद भी सई नदी प्रदूषण से कराह रही है। कारण सीवेज ट्रीटमेंट से जोड़े गए शहर के चार नालों का पानी फिल्टर करने के बाद सई में छोड़ा जाता है जबकि तीन नालों का गंदा पानी सीधे सई में गिराया जा रहा है। इससे सई में जितना साफ पानी एसटीपी से छोड़ा जाता है उससे अधिक गंदा पानी नदी में गिराया जा रहा है।

हर माह 12 लाख रुपये खर्च, फिर भी प्रदूषण से कराह रही सई नदी,PC-Wikipedia
पर्यावरण संतुलन के लिए तालाब आवश्यक
हर वर्ष एक हजार जलश्रोत अपना वजूद खो रहे हैं। बीते दशकों से सूखे की मार झेलता बुंदेलखंड भी इससे अछूता नहीं है। वहां 9000 से भी अधिक तालाब थे। बीते 30-40 सालों में बचे 3294 तालाबों में से 02 हजार से ज्यादा तालाबों का तो अस्तित्व ही मिटगया है। Posted on 20 Dec, 2023 11:18 AM

पर्यावरण संतुलन के लिए तालाब आवश्यक
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