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जल की मिथकीय अवधारणा
Posted on 25 Jan, 2010 09:40 AM
जब कुछ भी नहीं था, तब क्या था, यह प्रश्न हर किसी के मन में कौंध सकता है। तब शून्य था, कुछ भी नहीं था। अकाल था। न मिट्टी, न पानी, न हवा, न आकाश, न प्रकाश और न अंधकार तब स्थिति कैसी थी?
संस्कृतियों का जन्म नदियों की कोख से
Posted on 07 Jan, 2010 07:31 PM पानी
जब समुद्र से आता है तब बादल
और जाता है तो नदी कहलाता है।
बादल उड़ती नदी है
नदी बहता बादल है!

बादल से वर्षा होती है
वर्षा इस धरती की शालभंजिका है।
उसके पदाघात से धरती लहलहा उठती है।
और जब वर्षा नहीं होती
तब यही काम नदी करती है।

वर्षा और नदी- धरती की दो शालभंजिकाएँ।
विचार और कर्म (कल्पना और यथार्थ)
river
सूखे में डूबती सभ्यता
Posted on 25 Nov, 2009 07:49 AM
जब भारत में पानी की समस्या और भी गंभीर हो जाएगी तब स्वीडन,कनाडा और ब्रिटेन के लोगों को न केवल इसकी जानकारी होगी बल्कि वे इसे गहराई से महसूस भी करेंगे। अगर विश्व के किसी एक हिस्से में फसलें नष्ट होंगी और उत्पादन घटेगा तो समृद्ध विश्व की अर्थव्यवस्थाएं भी डांवाडोल हो जाएगीं। अगर व्यापक जनसमुदाय प्यासा रहेगा तो समाज टूटेगा और हर कोई संकट में आ जाएगा। हम अधिकतम पानी या चरम की स्थिति को पार कर चुके हैं क्योंकि आज सभ्यता प्यासी दिखाई दे रही है।
पर्यावरण आंदोलन अब उस रोचक दौर में पहुंच चुका है और इसके बारे में तकरीबन सभी तक जानकारी पहुंच चुकी है सिवाय राजनीतिक हलके के जहां यह अभी भी एक बाहरी तत्व है। वैसे हरियाली की बात (ग्रीन्स) करने वाले अभी एक अनजान व्यक्ति की तरह आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं और दुनिया इस दुविधा में है कि उन्हें घर में प्रवेश दें या नहीं। जलवायु परिवर्तन के विचार की ओर लम्बे-लम्बे डग भरते हुए हम यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि हमें इस दिशा में त्वरित कार्यवाही करना ही होगी। हालांकि हममें से बहुतों के लिए यह दूसरों की समस्या है या वे सोचते हैं कि इस खतरे को बड़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है। लेकिन यह दौर भी
भाषा और पर्यावरण
Posted on 23 Oct, 2009 08:07 PM

किसी समाज का पर्यावरण पहले बिगड़ना शुरू होता है या उसकी भाषा- हम इसे समझकर संभल सकने के दौ

Language and environment
शोध से ज्यादा श्रद्धा की जरूरत
Posted on 21 Oct, 2009 03:40 PM

बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत ही नहीं एशिया का पहला इंजीनियरिंग कालेज कहां बना था? आप जानते हैं वह कब और क्यों बना?

रुड़की इंजीनियरिंग
बुंदेलखंड को चाहिए एक देशज नजरिया
Posted on 21 Oct, 2009 09:21 AM बुंदेलखंड को विकास के एक ऐसे देशज क्रांतिकारी नजरिए की जरूरत है जो सूखे को हरियाली में बदल दे। ऐतिहासिक रूप से भी बुंदेलखंड प्रकृति के प्रकोपों से जूझता रहा है। पानी का संकट वहां इसलिए गहराता है क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थितियां पानी को टिकने ही नहीं देती हैं। यहां जमीन पथरीली भी है और कुछ इलाकों में उपजाऊ भी।
कच्छ में प्रकृति का सुन्दर संतुलन
Posted on 24 Sep, 2009 07:27 PM
हमेशा की तरह मानसून समूचे देश में समय पर आये, न आये, अच्छी बरसात हो, न हो। इससे क्या फर्क पड़ता है, राजस्थान और गुजरात जैसे हमेशा सूखे की मार झेलने वाले इलाके जहाँ औसत बारिस सलाना 250 मिमी से अधिक नहीं है, हर वर्ष की तरह उन्हें तो इस बार भी पानी की कमी से जूझना ही है।
सबसे पहली और जरूरी चीज पानी
Posted on 31 Aug, 2009 10:16 AM
मुझे नहीं मालूम कि भारत में कैसे नदियों, बावड़ियों, जोहड़ों और तालाबों को फिर से पुनर्जीवित किया जाए और कौन इस भगीरथ-कार्य को करेगा। हमारी सरकारें पानी के बारे में उतनी भी सचेत नहीं हैं, जितनी देश की रक्षा के बारे में। पानी को लेकर देश में कोई अखिल राष्ट्रीय चेतना तक नहीं है। क्या आपको नहीं लगता कि आज सबसे पहली और जरूरी चीज पानी है, जिस पर गौर करने की, जिसे बचाने की जरूरत है। दिल्ली के पॉश इलाके हौज खास में रहनेवाले मेरे एक मित्र का फोन था। बोले : चार- पांच दिनों से नल से एक बूंद भी पानी नहीं टपका। वैसे भी पानी रात को 3-4 बजे आता है और हम दिन भर का काम चलाने के लिए भरकर रख लेते हैं। पहले फोन करने पर जल बोर्ड का टैंकर आ जाता था। अब उसके दफ्तर जाने पर भी कोई नहीं सुनता। ग्राउंड वॉटर बेहद खारा और हार्ड है और उससे बिल्कुल भी काम नहीं चलता। कुछ करो भाई।

भाई बेचारा क्या करे। वह भी साउथ दिल्ली में ही रहता है। उसे भी पानी की कमी से जूझना पड़ता है। वैसे तो साउथ दिल्ली में हमेशा से ही प्रति व्यक्ति पानी की सप्लाई कम है लेकिन इन दिनों तो जीवन दूभर होता जा रहा है। जिन लोगों के पास पैसा है, वे प्राइवेट टैंकर से पानी मंगा लेते हैं। लेकिन गरीब क्या करे?
शेखर गुप्ता जी ऐसे तथ्य क्यों भूल जाते हैं?
Posted on 28 Aug, 2009 02:47 PM (शेखर गुप्ता का मूल लेख देखें)

भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र में शेखर गुप्ता एक बड़ा नाम है। अच्छी पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों में से एक होता है कि तथ्यों से छेड़खानी ना हो। इसलिए शेखर से एक तो उम्मीद थी कि जब वे अपने बहस में बड़े बांधों और नदी जोड़ योजना के पक्ष में तर्क दे रहे हैं तो वे तथ्यों के प्रति दृढ़ रहें

एक और हरित क्रांति
Posted on 28 Aug, 2009 02:20 PM (लेख पर हिमांशु ठक्कर की प्रतिकिया)

यदि सूखे की आशंका आपको खाए जा रही है तो एक काम कीजिए। दिल्ली से उत्तर में आप जितनी दूर जा सकते हैं, ड्राइव करते हुए चले जाइए। शिमला जाइए, चंडीगढ़ जाइए या फिर अमृतसर, लेकिन सड़क मार्ग से जाइए, उड़कर नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक सुखद आश्चर्य आपका इंतजार कर रहा

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