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वन संरक्षण की नीतियों में जनहित को नहीं दी जाती तरजीह
Posted on 14 Jul, 2011 04:37 PM

उत्तराखण्ड का तकरीबन 45 फीसदी भाग वनों से ढँका पड़ा है। अगर उच्च हिमालय की वनस्पतिरहित, सदा हिमाच्छादित चोटियों को छोड़ दिया जाये, तो वन यहाँ के 66 फीसदी क्षेत्रफल को घेरे हैं। भारत में कुल क्षेत्रफल का 33 फीसदी वन क्षेत्र होना पर्याप्त माना गया है। इस दृष्टि से हम एक समृद्ध राज्य हैं। इन वनों के प्रबंधन के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने तमाम नीतियाँ बनाई हैं और बेतहाशा बजट खर्च किया है। लेकिन ये नीति

गंगा-जल अब कर्ज से शुद्ध होगा
Posted on 07 Jul, 2011 11:01 AM

वाराणसी। गंगा-जल अब कर्ज से शुद्ध होगा । वैसे गंगा जल सदियों से शुद्धता के कारण हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र बिन्दु है। इधर औद्योगीकरण और गंगा नदी के तट पर बसे शहरों की अव्यवस्थित जिन्दगी और जल-निकासी ने गंगा में तबाही की नई इबारत लिख दी है। दोआबे की जिन्दगी में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और खुशहाली का सबब बनने वाली गंगा पर राजनीतिक जुमले बाजी जारी है। संत समाज से लेकर सियासती रहनुमाओं के बीच गंगा घि

ऐसे तो लहलहा चुके वन
Posted on 07 Jul, 2011 10:45 AM

बीते दिनों अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के नामुमकिन को मुमकिन करने की कोशिशों पर पानी फेरने के लिये सरकारी गुंडागर्दी और हो-हल्ला के बीच इस साल का विश्व पर्यावरण दिवस हवा हो गया।

वन मंत्रालय को ही नहीं पता, वन हैं क्या
Posted on 30 Jun, 2011 11:55 AM

नई दिल्ली। वन क्या हैं। इस सीधे और छोटे से सवाल का जवाब पर्यावरण एवं वन मंत्रालय केपास भी नहीं है। एक आरटीआई आवेदन पर यह खुलासा हुआ है। वन मंत्रालय ने कहा है कि वनों के लिए परिभाषा पर सक्रिय विचार विमर्श चल रहा है। इसे अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। दिलचस्प यह है कि बिना किसी परिभाषा के ही मंत्रालय देश के वन क्षेत्र में इजाफा होने के दावे करता रहा है। मुंबई में रहने वाले अजय मराठे ने सूचना के

वन
रेन वाटर हार्वेस्टिंग से दूर होगा जल का संकट
Posted on 30 Jun, 2011 11:19 AM

अनिवार्य है स्कूलों में वर्षा जल संचयन

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग
पहाड़ी नदी की ध्वनि
Posted on 25 Jun, 2011 09:46 AM

रात भर बारिश टिन की छत को किसी ढोल या नगाड़े की तरह बजाती रही। नहीं, वह कोई आंधी नहीं थी। न ही वह कोई बवंडर था। वह तो महज मौसम की एक झड़ी थी, एक सुर में बरसती हुई। अगर हम जाग रहे हों तो इस ध्वनि को लेटे-लेटे सुनना मन को भला लगता है, लेकिन यदि हम सोना चाहें तो भी यह ध्वनि व्यवधान नहीं बनेगी। यह एक लय है, कोई कोलाहल नहीं। हम इस बारिश में बड़ी तल्लीनता से पढ़ाई भी कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि बाहर

पानी चोर कहां से आए!
Posted on 23 Jun, 2011 12:08 PM

विकास की इस आंधी ने बहुत कुछ किया। मनुष्य के जीवन को आसान किया लेकिन कितना अनिश्चित कर दिया!

‘लो’ कार्बन के साथ ‘लो’ वॉटर इकॉनमी भी जरूरी
Posted on 23 Jun, 2011 11:17 AM

‘लो’ वॉटर इकॉनमी का अर्थ है, पानी को कम खर्च करना और उसका दोबारा इस्तेमाल करना। इसके पीछे यह सिद्धांत है कि पर्यावरण में प्राकृतिक अवस्था में जितना भी पानी है, उसे जहां तक संभव है बचाया जाए। पानी की हर बूंद का दोबारा इस्तेमाल किया जाए।

पानी के बिना जीवन की कल्पना मुश्किल है। गर्मियों के मौसम में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है और यही वह समय होता है, जब इसकी सबसे ज्यादा किल्लत होती है। भारतीय उपमहाद्वीप की भीषण गर्मी के बीच हर साल मानसून में हम अच्छी बारिश की कामना करते हैं। हमारे जल स्रोत बहुत हद तक बारिश पर निर्भर करते हैं। वैसे पानी की कमी सिर्फ गर्मियों की समस्या नहीं है। अगर पिछले दशक का सारा संघर्ष तेल को लेकर था, तो बेशक यह दशक पानी के नाम रहने वाला है। धरती पर पानी तेजी से खत्म हो रहा है और जो उपलब्ध है, वह भी अच्छी क्वालिटी का नहीं है।

आज भी खरे हैं तालाब (पोस्टर)
Posted on 22 Jun, 2011 05:42 PM अनुपम मिश्र की कालजयी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में हम सीता बावड़ी का एक चित्र देखते हैं।
पानी नहीं बचा तो तय बर्बादी
Posted on 16 Jun, 2011 10:02 AM

यदि हम पानी की बर्बादी को तत्काल नहीं रोकेंगे तो खुद बर्बाद हो जाएंगे क्योंकि देश के अधिसंख्य इलाकों में भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है, लिहाजा ग्राउण्ड वॉटर की समस्या खड़ी हो रही है। तमाम जगहों पर बढ़ते जल प्रदूषण से भी आम लोगों की दुश्वारियां बढ़ रही हैं। इसलिए चिंतन की आवश्यकता है कि पानी को कैसे बचाया जाए और पानी को बर्बाद होने से कैसे रोका जाए?

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