रेन वाटर हार्वेस्टिंग से दूर होगा जल का संकट

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग
रेन वॉटर हार्वेस्टिंग

अनिवार्य है स्कूलों में वर्षा जल संचयन


रेन वॉटर हार्वेस्टिंगजमशेदपुर। जून के पहले सप्ताह में झारखंड में मानसून आने वाला है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार इस साल अच्छी बारिश होगी। वहीं, बरसात के पानी को बचाने की कवायद भी शुरू हो गयी है। सरकार द्वारा भी राज्य के सभी स्कूलों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने को अनिवार्य कर दिया गया है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि इसके जरिये ही जल संकट को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है। शहर के कुल 60 स्कूलों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की गयी है। इसमें 55 स्कूलों में सब कुछ सही तरीके से चल रहा है। वर्षा जल का संचय कर भू-जल स्तर में सुधार लाया जा सकता है। इससे अपने इस्तेमाल लायक जल का भंडारण खुद स्कूल द्वारा किया जा सकता है।

 

 

सुधर जायेगी स्थिति


जल विशेषज्ञों के अनुसार अगर एक कॉलोनी में 100 घर हैं और इनमें से 25 घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था है तो उस इलाके में कभी भी जल संकट नहीं हो सकता है। इससे बारिश का पानी छत से सीधे जमीन पर बालू और पत्थर से बने सुरक्षित स्थान पर चला जयेगा।

 

 

 

 

ट्यूबवेल है जिम्मेदार


जल संकट के लिए ट्यूबवेल को सबसे अधिक जिम्मेवार माना जाता है। ट्यूबवेल से सीधे धरती के नीचे से पानी को खींच कर बाहर निकाला जाता है, जिससे भू-जल स्तर नीचे चला जाता है जबकि तालाब और कुएं से यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती है। जल विशेषज्ञ रॉनी डिकोस्टा के अनुसार यही वजह है कि टिस्को इलाके में भू-जल स्तर ठीक है, लेकिन जिन इलाकों में लोग ट्यूबवेल का इस्तेमाल करते हैं वहां भू-जल स्तर 300 फीट से नीचे चला गया है।

 

 

 

 

मानगो-परसुडीह का सबसे बुरा हाल


जलस्तर के मामले में मानगो और परसूडीह का सबसे बुरा हाल है। इन इलाकों में जलस्तर 300 फीट नीचे चला गया है। पाताल में भी पानी नहीं है। हालांकि इसी इलाके में वर्ष 1960 में पानी 60 फीट पर जबकि वर्ष 2000 में 270 फीट पर पानी मिला करता था। हाल के वर्षो में यह स्थिति उत्पन्न हुई है। इसके बाद बागबेड़ा और आदित्‍यपुर की स्थिति भी भयावह है।

 

 

 

 

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