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समाचार और आलेख
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सिर्फ स्नान नहीं, विज्ञान है मकर सक्रान्ति
Posted on 16 Jan, 2012 05:24 PMजिस क्षण से जीवनवर्धक सूर्य, जीवनसहांरक शनि की राशि में प्रवेश कर उसके नकरात्मक प्रभाव को रोकत
![makar sankranti](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/makar%20sankranti_5.jpg?itok=aIL-PCSI)
गंगा प्रदूषण: मुक्ति आंदोलन की शुरुआत
Posted on 11 Jan, 2012 01:55 PMकानपुर के 75 और इलाहाबाद के दर्जनों नालों का गंदा पानी सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। नरोरा से
बर्फ खात्मे की कगार पर
Posted on 04 Jan, 2012 01:47 PMआर्कटिक सागर पर सफेद बर्फ की मोटी चादर जल्द ही अतीत का हिस्सा बन सकती है। ब्रिटेन के एक शीर्ष महासागर विशेषज्ञ ने दावा किया है कि 2015 के ग्रीष्म तक वहां से बर्फ खत्म हो जाएगी। बर्फ कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रो.![आर्कटिक सागर](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/arktika_5.jpg?itok=W3RkMLoP)
कचरे से बनी बिजली दिल्ली के लिए घातक
Posted on 04 Jan, 2012 09:39 AMचिंता की बात यह है कि यह सभी संयंत्र रिहाइशी इलाकों में या उसके ठीक नजदीक में है। चिंताजनक बात
जल संरक्षण को लेकर 'धार्मिक जलयात्रा'
Posted on 31 Dec, 2011 11:25 AMजल संरक्षण के संदेश के साथ विख्यात संत ज्ञानेश्वर की पालकी लेकर लगभग एक दर्जन नौकाएं धार्मिक स्थल पंढरपुर तक एक अनूठी जल यात्रा पर रवाना हुई हैं। इस यात्रा को इसकी शुरूआत करने वाले विश्वास येओले ने ‘जल डिंडी’ का नाम दिया है। इस पर्यावरण जागरुकता कार्यक्रम के तहत भगवान विट्ठल के भक्त वरकारी पंथ के लोग हर साल पैदल पंढरपुर जाते हैं। येओले ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए खास मौका है क्योंकि 2002 में पर्यावरणविजाके आंगन है नदी
Posted on 30 Dec, 2011 06:27 PMगुजरात का आदिवासी इलाका धर्मपुरा बदहाली और मुफलिसी का बावजूद कुछ समर्पित समाजसेवियों और संस्थाओं की मदद से स्वावलंबन के रास्ते पर बढ़ रहा है। इस काम में कुदरत के साथ तालमेल बिठाकर जीने की कला भी विकसित हो रही है। लेकिन राज्य सरकार बड़ा बांध बनाकर इस क्षेत्र को विकसित करना चाहती है। विकास की विडंबना को कलमबद्ध किया है जाने-माने कथाकार गोविंद मिश्र ने इस यात्रा-वृत्त में।सरकार हमेशा बड़े बांधों, उनसे बिजली बनाकर अमीरों को साधन पहुंचाने का ही क्यों सोचा करती है? कभी ऐसी जगहों पर रह रहे लोगों को वहीं स्थापित करने, नगरों, महानगरों की बजाय ऐसी जगहों को विकसित करने, जिससे कि यहां के लोग शहर की तरफ भागने की बजाय यहीं रहें, उल्टे वहां के लोग यहां आकर बसें- ऐसा कुछ क्यों नहीं सोचती? नहीं, वह अपनी बड़ी योजनाओं के नीचे उन लोगों को ही कुचल कर रख देगी, जो संख्या में भले कम हों, पर जो यहां के हैं, जिनका इस भूमि पर पहला अधिकार है।
इस बार मुबंई प्रवास थोड़ा लंबा था, तो अच्छा लगा जब मित्र आरके पालीवाल ने सुझाव दिया कि वापी के पास सह्याद्रि श्रेणियों के बीच एक आदिवासी इलाका देख आया जाए। वहां आदिवासियों के लिए कुछ अच्छा काम हो रहा है, कठिन परिस्थितियों में रहने वालों की तकलीफें दूर करने जैसे काम सीधे-सीधे समाज को लाभ पहुंचाते हैं, इसलिए पालीवाल को ऐसे काम साहित्य-लेखन से अधिक तुष्टि देने वाले लगते हैं। बस एक दिन जाना, एक रात रुकना, दूसरे दिन लौट आना। मैंने उरई में संजय सिंह के साथ ऐसे कामों को थोड़ा बहुत देखा था। उत्सुकता हुई कि देखें गुजरात में ये किस तरह से हो रहे हैं। आरके के अलावा वहां विकास कार्य से जुड़े दो लोग खंडेलवाल और रश्मिन संघवी भी साथ थे। मुंबई में लगातार बारिश चल रही थी। बरसात के दिनों में मुंबई के आसपास का इलाका, जिसे यहां के लोग बड़े उत्साह से कहते हैं – ‘लश ग्रीन’ हो जाता है...