कचरे से बनी बिजली दिल्ली के लिए घातक

चिंता की बात यह है कि यह सभी संयंत्र रिहाइशी इलाकों में या उसके ठीक नजदीक में है। चिंताजनक बात यह भी है कि डाईआक्सिन जैसी जहरीले रसायन का पता लगाने की कोई प्रयोगशाला ही नहीं है। जबकि क्लोरीनेटेड पदार्थ जलाने से यह रसायन निकलता ही है। दिल्ली के कचरे से बिजली बनाने की योजना सरकार से मिलने वाली सब्सिडी हड़पने के लिहाज से भी बनी है क्योंकि गैरपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय ने गैरपारंपरिक तरीके से बिजली बनाने पर प्रति मेगावाट बिजली पर दो करोड़ रुपए की सब्सिडी देने का एलान किया है।

राजधानी दिल्ली को मौत के मुहाने पर धकेला जा रहा है। यहां कचरे से बिजली बनाने के संयंत्रों को स्थापित कर उन्हें चलाने की तैयारी जोरशोर से चल रही है। जबकि कचरा जलाने से जहरीले रसायन डाईऑक्सिन के हवा में घुलने का खतरा है जो राजधानीवासियों को घातक बीमारियों की चपेट में ला देंगे। तमाम विरोधों के बावजूद कार्य प्रगति पर है। रेजीडेंट्स वेलफेयर एजेंसियों ने इस मामले को अदालत में भी उठाया है। राजधानी में कचरे से बिजली बनाने के तीन संयंत्र (म्युनिसिपल वेस्ट टू एनर्जी इंसीनरेटर प्लांट) खड़े करने की तैयारी है। इसमें एक संयंत्र ओखला के सुखदेव विहार आवासीय इलाके में बनकर तैयार भी हो चुका है। इस संयंत्र से 2050 मीट्रिक टन कचरे से 20.9 मेगावाट बिजली बनाने की योजना है। इलाके के बाशिंदों, समाज सेवकों व पर्यावरणविदों के तमाम विरोध के बावजूद संयंत्र का काम जारी है। इसके खिलाफ स्थानीय लोगों ने कोर्ट में मामला भी उठाया लेकिन विचाराधीन होने के बावजूद जिंदल इकोपालिस की ओर से बनाए इस संयंत्र में काम जारी है।

इतना ही नहीं इसका विरोध 2009 से चल रहा था। तब से पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से इसमें दखल देने की मांग की गई उन्होंने संज्ञान लेते हुए इस मामले को उठाया। इस बारे में जनसुनवाई का जो प्रावधान किया गया वह भी महज कागजी खानापूरी ही की गई। सुखदेव विहार ओखला में संयंत्र है जबकि इसकी जनसुनवाई साकेत में की गई। इस जनसुनवाई की हकीकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें उपस्थिति के रजिस्टर में केवल दो लोगों के दस्तखत हैं एक दिल्ली सरकार के अधिकारी व एक इंजीनियर के इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनी पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण समिति (ईपीसीए) को भी लिखा गया है। टाक्सिक वाच अलायंस ने इस मामले में दखल देने की ईपीसीए से अपील की है। भूरेलाल की अगुआई वाली इस समिति ने संज्ञान लेते हुए इस पर विस्तृत जानकारी मांगी है। इस संयंत्र के पास ही स्थित बायोमेडिकल वेस्ट इंसीनरेटर को भी कोर्ट की समिति ने सील करने को कह दिया है। यह भी इंसीनरेटर ठीक इसके वास व रिहाइशी इलाके में है। लिहाजा स्थानीय लोगों ने इसे भी बंद कराने की मुहिम छेड़ी है।

इसी कंपनी की ओर से तैयार तिमारपुर संयंत्र भी है, जो सात दिन चलकर फिलहाल बंद है। इन तमाम विरोधों के बावजूद एक कचरे से बिजली बनाने का संयंत्र निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के सहयोग से गाजीपुर में और एक नरेला बवाना के सन्नौट गांव में बनाया जा रहा है। गाजीपुर के संयंत्र में 1300 मीट्रिक टन कचरे से 10 मेगावाट व नरेला में दो चरणों में 400 मीट्रिक टन कचरे से 36 मेगावाट बिजली बनाने की योजना है। इन दोनों जगहों में से गाजीपुर में जीएमआर एनर्जी और नरेला में रामकी एन्वायरमेंट इंजीनियर प्राइवेट लिमिटेड काम कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली के रोजाना 8500 मीट्रिक टन कचरा रोज निकलता है। इसमें से 7350 मीट्रिक टन कचरे से बिजली बनाने की योजना है। इसमें औसतन 55 फीसद हिस्सा जैविक कचरे का व 28 से 35 फीसद कचरा बालू सीमेंट जैसी सामग्री का होता है। इसमें बाकी कचरे में पालीथीन व अन्य क्लोरीनेटेड सामग्रियों, कांच व प्लास्टिक का होता है।

इसे जलाने से जहरीली गैस डाईआक्सिन पैदा होता है। जो बेहद खतरनाक होता है। टाक्सिक वाच अलायंस के अगुआ गोपाल कृष्ण के मुताबिक डाईआक्सिन से कोई ऐसा कैंसर नहीं जो नहीं होता। यह इतना जहरीला रसायन है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में वियतनाम पर हमले के दौरान इस गैस का रासायनिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। इसके कुप्रभाव आज तक खत्म नहीं हो पाए हैं। यह ही नहीं मैडमियम लेड, मर्करी व अन्य जहरीले रसायन निकलेंगे जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। चिंता की बात यह है कि यह सभी संयंत्र रिहाइशी इलाकों में या उसके ठीक नजदीक में है। चिंताजनक बात यह भी है कि डाईआक्सिन जैसी जहरीले रसायन का पता लगाने की कोई प्रयोगशाला ही नहीं है। जबकि क्लोरीनेटेड पदार्थ जलाने से यह रसायन निकलता ही है। दिल्ली के कचरे से बिजली बनाने की योजना सरकार से मिलने वाली सब्सिडी हड़पने के लिहाज से भी बनी है क्योंकि गैरपारंपरिक ऊर्जा मंत्रालय ने गैरपारंपरिक तरीके से बिजली बनाने पर प्रति मेगावाट बिजली पर दो करोड़ रुपए की सब्सिडी देने का एलान किया है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि आंध्र प्रदेश के जिस संयंत्र के उदाहरण देकर दिल्ली में प्लांट लगाए जा रहे हैं वह संयंत्र भी सालों से बेकार पड़ा है।

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