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समाचार और आलेख
तालाबों, पोखरों, नालों से अवैध कब्जा हटाए जाने के आदेश
Posted on 02 Oct, 2013 09:49 AM18 जुलाई 2013, अतर्रा-बांदा। नगरपालिका परिषद अतर्रा ने तालाबों, पोखरों तथा नालों से अतिक्रमण हटाए जाने के आदेश दिए हैं। पंद्रह दिन के अंदर लोग अपना अतिक्रमण हटा लें वरना नगरपालिका परिषद चिन्हांकन करा कर वीडियोग्राफी कराते हुए अवैध कब्जे नगर निगम हटाएगा। निगम के हटाए जाने की स्थिति में हटाए जाने का खर्च भी कब्जाधारी से वसूला जाएगा।मरुस्थल में पानी की कहानी
Posted on 23 Sep, 2013 04:41 PMजल संचय की आधुनिक तकनीक अपनाने के बावजूद राजस्थान के थार मरुस्थल में पानी का संकट बरकरार है। जल संरक्षण की परंपरागत प्रणालियों की उपेक्षा की वजह से स्थिति और नाज़ुक होती जा रही है। इस कठिनाई से निजात पाने का सही तरीका क्या हो सकता है? बता रहे हैं शूभू पटवा।थार मरुस्थल में पानी के प्रति समाज का रिश्ता बड़ा ही आस्था भरा रहा है। पानी को श्रद्धा और पवित्रता के भाव से देखा जाता रहा है। इसीलिए पानी का उपयोग विलासिता के रूप में न होकर, जरूरत को पूरा करने के लिए ही होता रहा है। पानी को अमूल्य माना जाता रहा है। इसका कोई ‘मोल’ यहां कभी नहीं रहा। थार में यह परंपरा रही है कि यहां ‘दूध’ बेचना और ‘पूत’ बेचना एक ही बात मानी जाती है। इसी प्रकार पानी को ‘आबरू’ भी माना जाता है। बरसात के पानी को संचित करने के सैकड़ों वर्षों के परंपरागत तरीकों पर फिर से सोचा जाने लगा है। राजस्थान का थार मरुस्थलीय क्षेत्र में सदियों से जीवन रहा है। यहां औसतन 380 मिलीमीटर बारिश होती है। इस क्षेत्र में जैव विविधता भी अपार रही है। जहां राष्ट्रीय औसत बारह सौ मिलीमीटर माना गया है, वहीं राजस्थान में बारिश का यह औसत करीब 531 मिलीमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान समूचे देश में सबसे बड़ा राज्य है और इसका दो-तिहाई हिस्सा थार मरुस्थल का है। इसी थार मरुस्थल में जल संरक्षण की परंपरागत संरचनाएं काफी समृद्धशाली रही हैं। जब तक इनको समाज का संरक्षण मिलता रहा, तब तक इन संरचनाओं का बिगाड़ा न के बराबर हुआ और ज्यों-ज्यों शासन की दखलदारी बढ़ी, त्यों-त्यों समाज ने हाथ खींचना शुरू कर दिया और इस तरह वे संरचनाएं जो एक समय जीवन का आधार थीं, समाज की विमुखता के साथ ये ढांचें भी ध्वस्त होते गए या बेकार मान लिए गए।
गांवों को न सहेजने का ख़ामियाज़ा
Posted on 21 Sep, 2013 03:22 PMजल संसाधन की बड़ी-बड़ी परियोजनाएं बनीं, विशालकाय बांध बनाए गए, पर गांव स्तर पर जल के संरक्षण और संग्रहण को पर्याप
गंगा निवेदन
Posted on 21 Sep, 2013 12:02 PMआदरणीय/आदरणीया,
अभिवादन! आज 21 सितम्बर, 2013 है। स्वामीश्री ज्ञानस्वरूप सानंद (पूर्व नाम प्रो जी डी अग्रवाल) के गंगा अनशन का 101वां दिन।
बीते 100 दिनों में इस अनशन के समर्थन और इसे आत्महत्या का प्रयास बताकर जेल में ठूंसने के विरोध में सर्वश्री भगवानसिंह परमार की पहल पर बुंदेली जनों के बीच एक बैठक, जलपुरूष राजेन्द्र सिंह की पहल पर दिल्ली की दो बैठकों में अपील, वैज्ञानिक विक्रम सोनी की पहल पर रवि चोपड़ा, राजेन्द्र सिंह, लक्ष्मी सहगल और एस के गुप्ता की उपस्थिति में हुई छोटी सी प्रेस वार्ता और गाज़ियाबाद के विक्रांत शर्मा की पहल पर चार युवकों की मातृसदन यात्रा, समर्थन की तैयारियाँ, गांधी युवा बिरादरी के संयोजक रमेश शर्मा द्वारा जारी एक अपील, गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली परिवार के बीच हुई एक प्रार्थना सभा, सजल श्रीवास्तव द्वारा नियमित जानकारी भेजने का लिया गया दायित्व और भारतेन्दु प्रकाश, मधु भादुड़ी, मधु किश्वर, मनोज मिश्र, मानस रंजन, सिराज केसर, अश्विनी मिश्र, नरेन्द्र महरोत्रा,अजीत कुमार, विजय सिंह बघेल, आर्यशेखर, राजेन्द्र पोद्दार, मेजर हिंमाशु, रविशंकर, अनुज अग्रवाल, कृष्णपाल, ब्रजेन्द्र प्रताप, अरविंद कुशवाहा, निवेदिता वार्ष्णेय, जनक दफ्तरी, श्रीनिवास,महेन्द्र गुप्ता, दीवान सिंह, हेमंत ध्यानी, डॉ. विजय वर्मा व मातृसदन द्वारा जताई गई चिंता मुझ तक पहुंची।
पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं
Posted on 17 Sep, 2013 01:18 PMभारतीय लोक जीवन में तो जल की महत्ता और सत्ता अपरंपार है। वह प्राणदायी नहीं अपितु प्राण है। वह प्रकृति के कण-कण में है। वह पानी केअसहमति व अभिव्यक्ति के अहिंसात्मक तरीके पर प्रहार के खिलाफ गंगा अपील
Posted on 10 Sep, 2013 11:02 AMमुद्दा यह है कि यदि हमारी सरकारें असहमति व विरोध जताने के अहिंसात्मक स्वरों को सुनना और मान्यता देना बंद कर देंगी