उत्तराखंड

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प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और संरक्षण पर जन घोषणा पत्र
Posted on 05 Feb, 2017 04:29 PM

विभिन्न आध्यात्मिक संस्थाओं, आन्दोलनकारी समूहों, पंचायत प्रतिनिधियों, स्वयंसेवी संगठनों, ब

Forest
छब्बीस वर्ष का हो चुका है रामणी का जंगल
Posted on 04 Feb, 2017 04:30 PM
यूँ तो उत्तराखण्ड के लोगों की संस्कृति में वन संरक्षण का बीज कूट-कूट कर भरा है। पर जब बात आती है इस राज्य के टिहरी और चमोली जनपद की तो यही से विश्वविख्यात चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। जो आग आज भी लोगों के जेहन में सुलगती हुई नजर आ रही है। चमोली जनपद के घाट विकासखण्ड के अर्न्तगत रामणी एक ऐसा गाँव है जो कई प्रकार के इतिहास को समेटे है, मगर मौजूदा समय में खास प्रचलित है रामणी गाँव का ‘जंगल’।
हरियाली की चादर ओढ़े रामणी गाँव
श्रीदेव सुमन के लिये
Posted on 03 Feb, 2017 02:11 PM
एक थी टिहरीतुम्हें डुबाने वाली टिहरी लो देखो खुद डूब गई।
पितरों की स्मृति में
Posted on 03 Feb, 2017 02:08 PM
‘दादा! मेरा दाँत टूट गया।’
पुस्तक परिचय - एक थी टिहरी
Posted on 03 Feb, 2017 10:26 AM


हमारे देखते-ही-देखते टिहरी नाम का जीता-जागता एक शहर विकास की बलि चढ़ गया। यह शहर शुभ घड़ी लग्न में महाराजा सुदर्शन शाह द्वारा 28 दिसम्बर 1815 को बसाया गया था और 29 अक्टूबर, 2005 को माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय पर डूबा दिया गया।

एक थी टिहरी
आचार्य चिरंजी लाल असवाल
Posted on 02 Feb, 2017 04:14 PM
“सन 1949 में स्थापित इस विद्यालय (राजकीय दीक्षा विद्यालय टिहरी) द्वारा 946 छात्राध्यापक अभी तक प्रशिक्षित हो चुके हैं। इस संस्था के भूतपूर्व प्रधानाचार्य श्री चिरंजीलाल असवाल इस वर्ष राजकीय सेवा से निवृत्त हो चुके हैं और उनकी संरक्षता में कई कठिनाइयों से होते हुए भी इस संस्था ने जो प्रगति की है वह सराहनीय है। मुझे अपने टिहरी भ्रमण काल में श्री असवाल की सर्वत्र प्रशंसा सुनने को मिली है। मे
अपनी धरती की सुगन्ध
Posted on 02 Feb, 2017 04:07 PM
जब कभी गाँव जाता हूँ तो देखता हूँ कि सब लोग सहमे-सहमे से अपने काम पर लगे हुए हैं। लोगों में एक प्रकार का शीत युद्ध छिड़ा हुआ है। हमारी त्यबारी में तम्बाकू पीने के बहाने आकर आधी रात तक इधर-उधर की गप्प मारने वाले लोग कहीं गायब हो गए हैं। वह पीढ़ी ही समाप्त हो गई है। परिवार पर चलने वाले दादा के शासन के दिन अब लद चुके हैं। अब दादा अशक्त, असहाय होकर त्यबारी के एक कोने में दुबके रहते हैं। इन बीस स
एक हठी सर्वोदयी की मौन विदाई
Posted on 02 Feb, 2017 04:00 PM
खादी का भगवा रंग का ऊनी गरम कोट व उसके अन्दर से चटख सफेद कुर्ता पायजामा, सिर में कोट के रंग की टोपी और पैरों में कपड़े के जूते पहने कन्धे पर पिट्ठूनुमा छोटा बैग लटकाये और हाथ में छोटी अटैची पकड़े भट्ट जी अधिकांश बैठकों में मिल जाते थे। बैग में कपड़े और अटैची में पूरा दफ्तर रहता था। बैठक में आते ही पीठ टिकाने के लिये दीवार के सहारे बैठ जाते थे। बैठक शुरू होते ही भट्ट जी सो जाते थे। मैं अक्सर
जब टिहरी में पहला रेडियो आया
Posted on 02 Feb, 2017 03:24 PM
बात 1935 की है, रियासत टिहरी पर महाराजा नरेन्द्रशाह का शासन था। रियासत भर में महाराजा के पास ही एकमात्र रेडियो था। लेकिन इस रेडियो को साधारण नागरिक क्या, राज्य के उच्च अधिकारी भी न देख सकते थे और न सुन सकते थे। रियासत के एक धनाढ्य व्यक्ति गुलजारीलाल असवाल ने महाराजा से अनुमति लेकर एक रेडियो खरीदा। रेडियो खरीदने के लिये चार दिन पैदल चलकर मसूरी पहुँचना पड़ा। ‘इमरसन’ कम्पनी के रेडियो एजेन्ट बनव
बाल-सखा कुँवर प्रसून और मैं
Posted on 02 Feb, 2017 03:13 PM
सन 1961 में प्राथमिक विद्यालय भैंस्यारौ से कुँवर प्रसून ने पाँचवी कक्षा उत्तीर्ण की और मैं पाँचवी कक्षा में दाखिल हुआ। अब तक वह अपने गाँव में नाटक करवा चुका था। नाटक के बहाने गाँव में जुलूस भी निकाल चुका था। नाटक करने के लिये बल्ली, तिरपाल और दरी लोगों के घरों से माँग कर प्राप्त किये गये थे। एक ताऊ जी ने उन्हें बल्ली देने के बजाय डाँट कर भगा दिया था। बस ताऊ जी के खिलाफ जुलूस निकल गया। ढेवर्य
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