प्रताप शिखर

प्रताप शिखर
पितरों की स्मृति में
Posted on 03 Feb, 2017 02:08 PM

‘दादा! मेरा दाँत टूट गया।’
पुस्तक परिचय - एक थी टिहरी
Posted on 03 Feb, 2017 10:26 AM


हमारे देखते-ही-देखते टिहरी नाम का जीता-जागता एक शहर विकास की बलि चढ़ गया। यह शहर शुभ घड़ी लग्न में महाराजा सुदर्शन शाह द्वारा 28 दिसम्बर 1815 को बसाया गया था और 29 अक्टूबर, 2005 को माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय पर डूबा दिया गया।

एक थी टिहरी
आचार्य चिरंजी लाल असवाल
Posted on 02 Feb, 2017 04:14 PM

“सन 1949 में स्थापित इस विद्यालय (राजकीय दीक्षा विद्यालय टिहरी) द्वारा 946 छात्राध्यापक अभी तक प्रशिक्षित हो चुके हैं। इस संस्था के भूतपूर्व प्रधानाचार्य श्री चिरंजीलाल असवाल इस वर्ष राजकीय सेवा से निवृत्त हो चुके हैं और उनकी संरक्षता में कई कठिनाइयों से होते हुए भी इस संस्था ने जो प्रगति की है वह सराहनीय है। मुझे अपने टिहरी भ्रमण काल में श्री असवाल की सर्वत्र प्रशंसा सुनने को मिली है। मे
अपनी धरती की सुगन्ध
Posted on 02 Feb, 2017 04:07 PM

जब कभी गाँव जाता हूँ तो देखता हूँ कि सब लोग सहमे-सहमे से अपने काम पर लगे हुए हैं। लोगों में एक प्रकार का शीत युद्ध छिड़ा हुआ है। हमारी त्यबारी में तम्बाकू पीने के बहाने आकर आधी रात तक इधर-उधर की गप्प मारने वाले लोग कहीं गायब हो गए हैं। वह पीढ़ी ही समाप्त हो गई है। परिवार पर चलने वाले दादा के शासन के दिन अब लद चुके हैं। अब दादा अशक्त, असहाय होकर त्यबारी के एक कोने में दुबके रहते हैं। इन बीस स
जब टिहरी में पहला रेडियो आया
Posted on 02 Feb, 2017 03:24 PM

बात 1935 की है, रियासत टिहरी पर महाराजा नरेन्द्रशाह का शासन था। रियासत भर में महाराजा के पास ही एकमात्र रेडियो था। लेकिन इस रेडियो को साधारण नागरिक क्या, राज्य के उच्च अधिकारी भी न देख सकते थे और न सुन सकते थे। रियासत के एक धनाढ्य व्यक्ति गुलजारीलाल असवाल ने महाराजा से अनुमति लेकर एक रेडियो खरीदा। रेडियो खरीदने के लिये चार दिन पैदल चलकर मसूरी पहुँचना पड़ा। ‘इमरसन’ कम्पनी के रेडियो एजेन्ट बनव
बाल-सखा कुँवर प्रसून और मैं
Posted on 02 Feb, 2017 03:13 PM

सन 1961 में प्राथमिक विद्यालय भैंस्यारौ से कुँवर प्रसून ने पाँचवी कक्षा उत्तीर्ण की और मैं पाँचवी कक्षा में दाखिल हुआ। अब तक वह अपने गाँव में नाटक करवा चुका था। नाटक के बहाने गाँव में जुलूस भी निकाल चुका था। नाटक करने के लिये बल्ली, तिरपाल और दरी लोगों के घरों से माँग कर प्राप्त किये गये थे। एक ताऊ जी ने उन्हें बल्ली देने के बजाय डाँट कर भगा दिया था। बस ताऊ जी के खिलाफ जुलूस निकल गया। ढेवर्य
जीरो प्वाइन्ट पर टिहरी
Posted on 04 Dec, 2015 09:11 AM

टिहरी के आकाश पर कौए इधर-उधर उड़ रहे हैं। उन्हें बैठने के लिये किसी पेड़ की तलाश है। पर उ

टिहरी बाँध के विस्थापित
Posted on 03 Dec, 2015 03:55 PM

सुरगंग-तटी, रसखान मही और धनकोष भरी जनराज सुदर्शनशाह की पुरी टिहरी में जन्में
टिहरी-शूल से व्यथित थे भवानी भाई
Posted on 28 Nov, 2015 03:52 PM

राज्य माँगू नहीं स्वर्ग माँगू नहीं
मुक्ति की नींद में क्या मजा है
दीन के दुःख और भय मिटाया करुँ
दीनबन्धु यही वर मुझे दो।

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