उत्तर प्रदेश

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रेशम वाली दीदी ने दिखाई रोजगार की ईकोफ्रेंडली राह
Posted on 22 Sep, 2018 02:40 PM

शाहजहाँपुर। एक साधारण से पूर्व माध्यमिक विद्यालय की शिक्षिका ने शिक्षण के साथ रोजगार की धारा प्रवाहित कर मिसाल कायम की है। स्कूल में बनाई गई रेशम कीट पालन प्रयोगशाला ने उन्हें उप्र के शाहजहाँपुर जिले ही नहीं, उन्नाव से मेरठ तक रेशम वाली दीदी के रूप में अलग पहचान दे दी। यह पहचान बनाने वाली शिक्षिका हैं पारुल मौर्य।
रेशम कीट पालन
तो बहुरेंगे पांवधोई के दिन
Posted on 10 Jul, 2018 02:49 PM


सहारनपुर शहर के बीच से प्रवाहित नाले के समान दिखने वाली पाँव धोई नदी को पुनर्जीवित करने की पहल ने एक बार फिर तेजी पकड़ ली है। यह प्रयास नदी को नया जीवन देने के लिये जिले के आला सरकारी अफसरों और नागरिक संगठनों से जुड़े प्रबुद्ध लोगों की पहल पर गठित की गई ‘पाँव धोई बचाव समिति’ के माध्यम से किया जा रहा है।

पाँव धोई नदी की सफाई करते लोग
हिण्डन सेवा - सरकार और समाज का अनूठा संगम
Posted on 09 Jun, 2018 02:03 PM


कल नहीं आज और आज नहीं अब.......इसी भाव के साथ डॉ. प्रभात कुमार ने जुलाई 2017 को हिण्डन नदी को बदहाली से उबारने का साहसी निर्णय लिया था। उस निर्णय का प्रतिफल था ‘निर्मल हिण्डन कार्यक्रम’ का जन्म। लगभग एक वर्ष के अपने सफर में निर्मल हिण्डन कार्यक्रम ने हिण्डन सेवा के रूप में समाज और सरकार के समन्वय का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।

हिंडन की सफाई
तालाबों का गाँव
Posted on 06 Apr, 2017 11:45 AM

महोना गाँव में अधिक आबादी होने के कारण यहाँ तालाबों की संख्या भी अन्य गाँवों की अपेक्षा सबसे ज्यादा है। कहावत है कि यहाँ हर बिरादरी के नाम से उनके मोहल्ले में एक तालाब है जिसमें लोग अपना पानी छोड़ते हैं। हर घर से एक-न-एक तालाब आपको जरूर दिखेगा। गाँव के लोगों के लिये ये गर्व की बात है कि उनका इकतौला ऐसा गाँव है जहाँ पर इतने तालाब हैं। गाँव का हर शख्स इस बात की कोशिश में लगा रहता है कि वह अपनी इस विरासत को बचाए रखे।

जब शहरों से लेकर गाँवों तक तालाबों पर कब्जे हो रहे हैं। उनको बन्द कर कहीं प्लाटिंग तो कहीं मकान बनाए जा रहे हैं। ऐसे दौर में लखनऊ से चन्द किलोमीटर की दूरी पर बसा गाँव महोना एक अलग ही नजीर पेश कर रहा है। इस गाँव में आज भी दो दर्जन से ज्यादा तालाब हैं। जो न सिर्फ बारहों महीने पानी से लबालब भरे रहते हैं बल्कि ये सूखने न पाएँ इसके लिये बाकायदा जिम्मेदारी तक तय की गई है।

इस गाँव की खासियत यह है कि यहाँ के हर घर से एक-न-एक तालाब दिखता है। जो इटौंजा से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर कुर्सी रोड पर बसा है। तकरीबन चालीस साल पहले इस गाँव को नगर पंचायत का दर्जा मिला था लेकिन सरकारी बदहाली के चलते प्रदेश के इस खूबसूरत तालाबों वाले गाँवों की ओर सरकार की नजरें इनायत नहीं हुई।
महिलाओं ने बदली गाँव और खेतों की किस्मत
Posted on 22 Dec, 2015 11:43 AM

काम शुरू करने से पहले इन लोगों ने गाँव की महिलाओं का एक संगठन बनाया। इन लोगों को पता था कि इस कठिन चुनौती को अकेले पार नहीं पाया जा सकता है। नहर खोदने वाली महिलाओं के इस संगठन का नेतृत्व राजकली नाम की एक महिला ने किया। सबसे पहले आम बैठक कर सभी सदस्यों को गाँव की समस्या और उसके निदान के बारे में जानकारी देकर उत्साहित किया गया। काम के बारे में सभी महिलाओं को पहले से ही पता था। योजना के मुताबिक मेहनत मजदूरी करने के बाद जो भी वक्त मिलता था महिलाएँ नहर की खुदाई के काम में लग जाती थीं।

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में लालगंज क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं ने जिले के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।

दरअसल यहाँ पर इन महिलाओं ने तीन किलोमीटर लम्बी नहर खोदकर गाँव-घर और खेतों तक पानी पहुँचा दिया है। जंगलों में बेकार बह रहे पानी की धारा का रूख बदलने से यहाँ ना केवल पेयजल की समस्या से निजात मिली है बल्कि इलाके का जलस्तर भी बढ़ चला है।

भूजल स्तर ऊपर आने से बंजर पड़ी जमीनों में जान लौट आई है और इससे खेतों में खड़ी फसलें लहलहाने लगी हैं। महिलाओं की इन नायाब कोशिशों के बदौलत क्षेत्र के किसानों में मुस्कान लौट आई है और वे खुशी के गीत गाने लगे हैं।
अन्नदाता को सबल बनाने की पुरजोर कोशिश
Posted on 19 Sep, 2015 10:25 AM

सर्वेश प्रताप सिंह से अनिल सिंदूर द्वारा की गई बातचीत पर आधारित लेख।

Sarvesh pratap singh
भूकम्प के लिहाज से यूपी के 50 जिले संवेदनशील
Posted on 02 May, 2015 08:00 AM - नेपाल के विनाशकारी भूचाल ने यहाँ बजा दी है खतरे की घण्टी
तराई में खिला विलायती फूल
Posted on 30 Apr, 2015 02:37 PM उत्तर भारत के तराई जनपद लखीमपुर खीरी की एक नदी पिरई और उसके दक्षिण में बसा एक गाँव मैनहन, बस यहीं की यह दास्ताँ है, जो एक फूल से बावस्ता है। दरअसल, कभी यह नदी यहाँ के शाखू, महुआ, पलाश आदि के जंगलों और घास के बड़े-बड़े मैदानों से होकर गुजरती थी। भौगोलिक दृष्टिकोण से नदी की धारा अभी भी अपने हजारों वर्ष वाले रास्ते पर मुस्तकिल है, परन्तु अब यह नदी बहती नहीं रिसती है। वजह जाहिर है कि जंगलों और मैदानों स
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