Posted on 30 Nov, 2013 03:52 PMपूर्वी उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में आगामी दिसम्बर महीने में नया मीडिया एवं ग्रामीण पत्रकारिता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। दिल्ली के इंडियन कॉफी हाउस में 17 नवंबर की शाम हुई बैठक में नया मीडिया से जुड़े समाज के विभिन्न व्यवसायों एवं क्षेत्रों से आने वाले बुद्धिजीवियों की हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। उक्त बैठक में पत्रकारिता, इंजीनियरिंग एवं अन्
Posted on 09 Nov, 2013 04:11 PM बुढ़ाना- कांधला मार्ग पर स्थित एक सरकारी स्कूल पूर्व माध्यमिक विद्यालय राजपुर-छाजपुर जैव विविधता एवं जल प्रबंधन को लेकर बहुत ही सजग है। इस विद्यालय में कक्षा 6 से कक्षा 8 तक 306 बच्चे पढ़ते हैं। यह विद्यालय 22 बीघे ज़मीन पर बना है। जिसमें आम व अमरूद का बाग भी हैं। इस विद्यालय में 12 अध्यापक हैं जो बच्चों को पढ़ाने में बहुत रूचि रखते हैं। यह विद्यालय जनपदीय परिषदीय विद्यालयों के खेलों में भी पुरस्कार जीतकर अपनी धाक जमाता रहा है। शिक्षक इन गतिविधियों के प्रमुख संचालक हैं। वें विद्यार्थियों को ऐसे गुणों को विकसित करने में सहयोग व दिशा निर्देशन देते हैं। जिससे वे पौधों, जीव-जंतुओं के मित्र बन जाएं। विद्यार्थियों को निरीक्षण एवं कार्य से जोड़कर तथा ज्ञान, कौशल एवं मूल्यों के विकास को बढ़ावा देकर पाठ्यक्रम सहगामी गतिविधियों के द्वारा उनके लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। भारत में जल संचय के प्रमाण प्राचीनतम लेखों, शिलालेखों और स्थानीय रस्म-रिवाजों तथा पुरातात्विक अवशेषों में मिलते हैं। पूर्वजों ने तालाब कुएँ, पोखर और बावड़ियों का निर्माण कर पानी से बने समाज की रचना की।
प्रस्ताव बनाकर कहा कि जिलाधिकारी के नीचे किसी से नहीं करेंगे बात
पांच साल बाद मेजा ऊर्जा निगम सलैया कला व सलैया खुर्द पर अब काम कराना चाहता है जिसका किसान विरोध कर रहे हैं। इसी तरह मेजा ऊर्जा निगम को दी गई सात गाँवों की 685 हेक्टेयर ज़मीन के मुआवज़े व नौकरी देने के मामले को लेकर प्रभावित सभी किसान मज़दूर बिजली उत्पादन कम्पनी का बहिष्कार कर रहे हैं। किसानों ने कहा कि उनके साथ धोखा हुआ है इसलिए वह शुरू से ही सरकार, प्रशासन व कम्पनी का विरोध कर रहे हैं। उनकी मांग है कि भूमि अधिग्रहण की कानूनी प्रक्रिया की पारदर्शिता उजागर हो। इलाहाबाद जनपद में मेजा तहसील के कोहड़ार में स्थापित की जाने वाली विद्युत उत्पादन ईकाई मेजा ऊर्जा निगम संयुक्त उपक्रम एनटीपीसी के लिए ली गई ज़मीन के मामले में भूमि अधिग्रहण कानून को ताक पर रखा गया। अधिग्रहण की कानूनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता नहीं बरती गई। किसानों से उनकी ज़मीन जबरन छीनी जा रही है। मुआवजा तय करते समय उनसे राय नहीं ली गई। मुआवजा राशि सर्किल रेट से भी कम दर पर दी गई। नौकरी देने का वायदा तत्कालीन जिलाधिकारी व एनटीपीसी प्रबंधन ने किया था किंतु उसे भी पूरा नहीं किया गया।