खेतों की मिट्टी को इटावा में बेच रहे हैं किसान

इटावा जिले में आगरा बाह मार्ग पर करीब 20 किलोमीटर के दायरे में बड़े स्तर पर ईंट भट्टों की निर्माण है इन भट्टों को अपने अपने भट्टों पर ईंट बनाने के लिए मिट्टी की जरूरत होती है इसी जरूरत को पूरा करने के लिए आसपास के किसानों की खेतहरी उपजाऊ बेसकीमती ज़मीन की मिट्टी को मनचाहे दामों में ईंट भट्टे मालिक खरीदने में जुट गए हैं। उपजाऊ जमीन में जहा पर फसल होने चाहिए वहा पर ईंट बनने लगी है हजारों एकड़ भूमि पर किसानों ने ईंट भट्टों के लिए अपनी भूमि की मिट्टी बेच डाली। कहावत है कि लालच बुरी बला होती है, इसमें कोई दो राय नहीं है। यह हर कोई जानता है इसके बावजूद फिर भी लालच के चलते लोग ऐसे काम करने में लग जाते हैं जो कही से भी उचित और न्याय संगत तो होते ही नहीं हैं बल्कि सवाल भी खड़े करने लायक होते हैं। इसी कहावत का अनुसरण करके उत्तर प्रदेश के इटावा के कई किसान अपने आप को मालामाल करने में जुट अपनी बेसकीमती उपजाऊ खेतहरी ज़मीन की मिट्टी को ईंट भट्टों के लिए बेचने में जुट गए हैं। किसानों की ओर से अपनाई जा रही इस प्रकिया से प्रशासन अभी पूरी तरह से अनजान है फिर भी प्रशासनिक अफ़सर इस पूरे मामले पर कार्यवाही करवाने की बात कह रहा है। सैकड़ों की तादाद में किसान ईंट भट्टे मालिकों के लालच में आकर 50 हजार से लेकर 85 हजार रुपए तक में अपनी उपजाऊ खेतीहरी ज़मीन की मिट्टी को बेचने का सौदा कर चुके हैं इसी कारण इटावा से बीस किलोमीटर के दायरे में देखा जा रहा है कि पथरे मज़दूर मिट्टी को काटने के बाद ईंट बनाने में लगे हुए है।

इटावा जिले में आगरा बाह मार्ग पर करीब 20 किलोमीटर के दायरे में बड़े स्तर पर ईंट भट्टों की निर्माण है इन भट्टों को अपने अपने भट्टों पर ईंट बनाने के लिए मिट्टी की जरूरत होती है इसी जरूरत को पूरा करने के लिए आसपास के किसानों की खेतहरी उपजाऊ बेसकीमती ज़मीन की मिट्टी को मनचाहे दामों में ईंट भट्टे मालिक खरीदने में जुट गए हैं। उपजाऊ जमीन में जहा पर फसल होने चाहिए वहा पर ईंट बनने लगी है हजारों एकड़ भूमि पर किसानों ने ईंट भट्टों के लिए अपनी भूमि की मिट्टी बेच डाली। इस कारण अजीब-गरीब हालात पैदा हो चले हैं। एक अनुमान के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि करीब 10 हजार से अधिक पथरे मजदूर इस समय इटावा जिले के करीब 20 किलोमीटर दायरे की ज़मीन पर ईंट बनाने का काम करने में लगे हुए हैं जो हमीरपुर,महोबा और फतेहपुर से अपने पूरे परिवार के साथ डेरा डाले हुए हैं। इटावा जिले में सांरगपुरा,बुलाकीपुर लुहन्ना,हरचंद्रपुरा,राजा का बाग,नगला नगोली,सकउआ,जनकपुरा,लखैरेकुआ,नगला बुखन,कचौरा आदि गांव की सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि पर किसान खेती करने के बजाए उसकी मिट्टी को ईंट भट्टों को बेचने में लगे हुए हैं।

अपने खेतों की मिट्टी बेचने वाले किसानों में से एक सालिगराम का कहना है कि किसान वैसे भी सबसे कमजोर होता है सरकारी योजनाएं किसानों के हित को ध्यान में रख कर बनाई जाती है लेकिन अफसरों की लापरवाही के चलते अमूमन किसानों का भला होने के बजाए नुकसान ही नुकसान होता रहता है इसी कारण किसानों को अपने आपको आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए कुछ ठोस निर्णय भी लेने पड़ते हैं उन्हीं निर्णयों में से एक है अपनी ज़मीन की मिट्टी को बेचने का। उनका कहना है कि बड़ी और एक मुश्त राशि मिलने से किसान अपने परिवार का जीवनयापन सही ढंग से करने की हालात में आ जाता है लेकिन अगर कोई इस बात का सवाल खड़ा करता है कि किसान अपनी उपजाऊ ज़मीन की मिट्टी को बेच रहे हैं तो इसमें गलत क्या है ज़मीन हमारी है हम जैसे चाहे उसका इस्तेमाल कर सकते हैं यह हमारे अधिकार का हिस्सा है कि हमको कैसे अपने आपको मजबूत करना है।

खेतों की मिट्टी बेचते किसानविचारपुरा गांव के रामनरेश नाम का किसान का कहना है कि ऐसा करने से ज़मीन की उपजाऊ मिट्टी खत्म हो जाती है और इसके अलावा ज़मीन से जो अन्न पैदा होता है किसानों का भरण पोषण होता है उससे भी लोगों को नुकसान होता है उनकी पूर्ति नहीं हो पाती है ऐसा करने से पैदावार प्रभावित होती है,पैदावार के अलावा भी उस ज़मीन में दस साल तक फसल नहीं कर सकते हैं क्योंकि उसकी उपजाऊ मिट्टी खत्म हो जाती है फिर उसको एक सा करिए, धूरा,कंपोजिट खाद डालिए उसके बाद कही फसल कर पाएंगे आप वो भी दो चार साल में,दूसरी बात यह है इसकी पैदावार से जो फसल रहे हैं उससे अन्य लोगों का भी भरण पोषण नहीं हो पा रहा है कमी तो अपने यहां पर है। मिट्टी बेचने वाले किसानों के लिए यही सलाह होगी वो अपने उपजाऊ खेतों की मिट्टी को कतई ना बेचे क्योंकि मिट्टी बेचने से नुकसान ही नुकसान है।

इसी गांव के दूसरे किसान हरीशंकर का कहना है कि खेत को नुकसान ऐसा होता है जैसे नहल जमीन हो जाती है तो उसमें मनपंसद की फसल नहीं पैदा कर पाते है उपजाऊ मिट्टी चली जाती है उँची नीची जमीन हो जाती है और कंकड़ निकलने लगते है हो सकता है उसमें फसल ही पैदा ना हो इस वजह से ये उपजाऊ मिट्टी बेचना तो गलत है ऐसे में नुकसान तो जमीन के हिसाब से होता है जैसे जमीन में हम कीमती फसल पैदा कर ले तो एक बीधा में दस हजार की भी हो जाए या बीस हजार की हो जाए, पांच हजार की हो जाए ऐसे नुकसान तो कमाने के हिसाब से तो बहुत का है जो किसान अपनी जमीन की मिट्टी इस तरह से बेचते हैं वो गलत कर रहे हैं।

फतेहपुर से आए पथेरे मज़दूरों में से एक राजेंद्र बताते हैं कि एक हजार कच्ची ईंट बनाने के एवज में उनको 400 रूपए मिलते हैं जब परिवार के कई सदस्य काम करते है तो बड़ी मुश्किल से दो हजार के आसपास ईंटों का निर्माण करने में कामयाबी मिल पाती है। राजेंद्र बताता है कि उनके जैसे करीब दस हजार के आसपास पथेरे मजूदर हमीरपुर,महोबा और फतेहपुर जैसे जिलों से अपने बीबी बच्चों के साथ आए हुए हैं, जो इटावा जिले के इसी इलाके में ईंट बनाने के काम में लगे हुए हैं लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि उससे काम लेने वाला कौन है कौन नहीं इससे उसको कोई लेना देना नहीं है उसे तो सिर्फ काम के बदले पैसे से मतलब होता है इसके एवज में पथेरा पहले ही बड़ी रकम एंडवास में ले लेता है।

खेतों की मिट्टी बेचते किसानइटावा के जिला कृषि अधिकारी डा.विनोद कुमार यादव का कहना है कि यह तो जमीन के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक है करीब एक फुट के आसपास होती है जिसमें हमारी फसल होती है और फसल के लिए जो भी लाभदायक तत्व होते है वो सिर्फ एक फुट जमीन तक रहते है अगर मिट्टी को ब्रिकी कर देगा तो हमारी फसल के लिए जो उपजाऊ एलीमेंट हैं पोषक तत्व है वो सब खत्म हो जाएंगे ऐसे में अगर मिट्टी को निकाल लिया जाएगा तो इन सब को दुबारा डालना पड़ेगा। किसान जितना ज्यादा लाभ अर्जित करेगा उससे ज्यादा उसको खाद के अलावा अन्य पोषक तत्वों को खेत में डालना पड़ेगा तब कही जाकर फसल उपलब्ध होगी। मिट्टी बेचने वाले किसानों को हमारी ओर से यही सलाह होगी कि ईंट भट्टों के त्वरित लालच में किसान कतई नहीं आए और अपनी ज़मीन को बचाए रखे। वो यह भी कहने से नहीं चूके कि जिस जमीन से मिट्टी खोद-खोद करके निकाली जा रही है वो ज़मीन हकीक़त में कुपोषित हो रही है मिट्टी निकले जाने से उसमें कोई तत्व बचता ही नहीं है उसमें उपर जो नाईट्रोजन, फास्फोरस,पोटाश है वो मिट्टी से समाप्त हो जाते हैं और कम मात्रा में ही उपलब्ध रह जाते हैं इसलिए किसानों को यही सलाह होगी कि वो अपनी जीवन क्षमता को बढ़ाये रखे। उनका तो यहां तक कहना है कि समय रहते अगर किसानों ने जमीन को बचाने की दिशा में सही ढंग से कदम नहीं उठाया तो आने वाले दिनों में खाद्यान्न की भारी किल्लत इटावा में तो होगी। जहां-जहां पर भी मिट्टी का इस तरह से कटान हो रहा होगा सब जगह पर इसी तरह का संकट आ खड़ा होगा क्योंकि यह प्रकिया बेहद घातक है।

इटावा में किसानों की ओर बड़ी तादाद में बेची जा रही मिट्टी के बाबत इटावा के जिलाधिकारी पी.गुरूप्रसाद का कहना है कि यह मामला अभी हमारे संज्ञान में आया है अगर मिट्टी उपजाऊ है और किसान उसको बेच रहा है तो ऐसे में यही प्रयास होगा कि ऐसे किसानों को रोक कर मिट्टी किसी अन्य को उपलब्ध नहीं कराना चाहिए और उन किसानों को भी हम अपनी ओर से सुझाव भी देंगे कि अपने खेतों की उपजाऊ मिट्टी को ना बेचे। माकपा नेता मुकट सिंह भी किसानों की ओर से अपनाई जा रही इस प्रकिया के बेहद खिलाफ हैं उनका कहना है कि प्रशासन को चाहिए कि किसानों की जमीन से मिट्टी को खरीदने वाले ईंट भट्टे वालों के खिलाफ कड़ी और कानूनी कार्यवाही अमल में लाई जानी चाहिए क्योंकि इस प्रकिया के चलते किसानो की काम के प्रति रूचि तो कम होगी ही उसके भीतर कई तरह की भावनाए भी घर कर जाएगी। किसान को हमेशा मेहनतकश और संघर्षशील माना गया है क्योंकि किसान की ही मेहनत का नतीजा यह है कि देश में इंसानों को खाने के लिए खाद्यान्न के अलावा सब्जियां आदि भी मिल रही है अगर किसान इसी तरह से अपने उपजाऊ खेतों को बर्बाद करता रहेगा तो जाहिर है कि एक ना एक दिन हमारे सामने ऐसे ऐसे संकट आ खड़े होंगे जिसकी हम सब परिकल्पना भी नहीं कर पाएंगे।

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