राजस्थान

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जल से लौटा जीवन
Posted on 25 Apr, 2011 10:16 AM

पिछले एक दशक से जल-संकट झेल रहे केवलादेव घना राष्ट्रीय अभयारण्य को अब इंद्रदेव की मेहरबानी से

आओ मूंडवा, पी लो पानी
Posted on 01 Apr, 2011 09:53 AM

हमारा शहर बड़ा नहीं है। पर ऐसा कोई छोटा-सा भी नहीं है। इस प्यारे से शहर का नाम है मूंडवा। यह राजस्थान के नागौर जिले में आता है। नागौर से अजमेर की ओर जाने वाली सड़क पर कोई 22 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में है यह मूंडवा। आबादी है कोई चौदह हजार। इसकी देखरेख बाकी छोटे-बड़े नगर की तरह ही एक नगर पालिका के माध्यम से की जाती है। शहर छोटा है पर उम्र में बड़ा है, काफी पुराना है। इसकी गवाही यहां की सुंदर हव

नरेगा और सोशल ऑडिट
Posted on 21 Mar, 2011 11:44 AM

मनरेगा के पारदर्शिता और जवाबदेही समूह के सदस्य शेखर सिंह की जुबानी- मनरेगा में सोशल ऑडिट की कहानी। शेखर सिंह यहां अपनी बातचीत में राजस्थान और आंध्र प्रदेश के सोशल ऑडिट के बारे में बता रहे है।

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दैनिक भास्कर की तिलक होली
Posted on 14 Mar, 2011 03:41 PM

पानी को देखते हुए पश्चिमी राजस्थान में वैसे ही किल्लत है। ऊपर से होली पर पानी खर्च करने से किल्

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का पानी व्यापार
Posted on 10 Mar, 2011 01:04 PM विश्व बैंक, मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन की नापाक तिकड़ी के सहारे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दुनिया भर में पेयजल के व्यापार में उतर पड़ी हैं। व्यापार के बहाने पानी पर नियंत्रण अचूक तरीका सिद्ध होगा लोगों के जीवन को नियंत्रित करने का।
निजीकरण नहीं, अपने भीतर झाँकने की आवश्यकता
Posted on 10 Mar, 2011 11:07 AM जबलपुर के पास कूइन द्वारा बनाया गया ताल आज कोई एक हजार वर्ष बाद भी
फिर तो भू-जल भी एक दिन खत्म हो जाएगा!
Posted on 07 Mar, 2011 10:15 AM

अजमेर के आठों ब्लॉक अब भू-गर्भीय जल की मौजूदगी के मामले में अत्यधिक दोहित ब्लॉक्स बन गए हैं। यह कहना है केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक एमएन खान का। उन्होंने बताया कि साल 2000 में इनकी संख्या 6 थी, लेकिन पिछले 10 सालों में बिगड़े हाल तो सुधरे नहीं, लेकिन दो और ब्लॉक भिनाय और केकड़ी में भी हालात परम-चरम पहुंच गए हैं। खान गुरुवार को अजमेर में बोर्ड द्वारा आयोजित जल चेतना समारोह में आ

जल विरासत की कहानी कहते जलाशय
Posted on 02 Mar, 2011 01:13 PM

यह किसी कल्पनालोक की कथा या फिर किसी कहानी का हिस्सा नहीं, बल्कि हकीकत है। याद करें साठ-सत्तर का दशक जब जीवन की अहम जरूरत जल छोटे-छोटे गांवों, कस्बों व शहरों के तालाब, नाड़ियों, सरों व कुओं में लबालब भरा रहता था। मनुष्यों की ही नहीं, पशु-पक्षियों तक की जल जरूरतें स्थानीय स्तर पर ही पूरी हो जाया करती थीं। इसके पीछे लोगों की वह मेहनत काम कर रही होती थी, जिसके बल पर जलाशयों का निर्माण कराया गया था

सोड़ा गांवः फिर से सजने लगी चौपाल
Posted on 01 Mar, 2011 02:20 PM

भारत में लोकतंत्र का अर्थ लोक नियुक्त तंत्र बना दिया गया है, जबकि इसे लोक नियंत्रित तंत्र होना चाहिए था। संविधान द्वारा तंत्र संरक्षक की भूमिका में स्थापित है, जबकि उसे प्रबंधक की भूमिका में होना चाहिए था। ज़ाहिर है, संरक्षक लगातार शक्तिशाली होता चला गया और धीरे-धीरे समाज को ग़ुलाम समझने लगा। तंत्र आदेश देता है और लोक पालन करता है। लोक और तंत्र के बीच दूरी बढ़ती ही जा रही है। इस दूरी को कम करने

पनघटों पर पसरा सन्नाटा
Posted on 16 Feb, 2011 10:22 AM


बुजुर्गों की विरासत को भूल गये लोग जल स्तर गिरने से सूखे कुएं बावड़ी/ कचरा पात्र बने प्राचीन जल स्त्रोत
किसी दौर में एक गाना चला था -

…सुन-सुन रहट की आवाजें यूं लगे कहीं शहनाई बजे, आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे…

well
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