विश्व बैंक, मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन की नापाक तिकड़ी के सहारे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ दुनिया भर में पेयजल के व्यापार में उतर पड़ी हैं। व्यापार के बहाने पानी पर नियंत्रण अचूक तरीका सिद्ध होगा लोगों के जीवन को नियंत्रित करने का।
पानी के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह बिक भी सकता है। लेकिन आज पानी बिक रहा है। प्यास बुझाने की कीमत ली जा रही है। पूरे विश्व में पेयजल का संकट जरूर उत्पन्न हुआ है। लेकिन इस संकट के कारणों को खोजकर उसके निराकरण के बजाय पानी का बाजार बनाने में अधिक दिलचस्पी ली जा रही है। पेयजल समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बाहर से पानी लाकर बेचने की व्यवस्था बनाई जा रही है। यह व्यवस्था कब तक चल सकती है।
राजस्थान के थार मरु भूमि के गाँवों में जितना पानी का संकट है उतना शायद ही कहीं हो। वहाँ के लोगों ने जब ऐसी व्यवस्था बना ली कि उन्हें वर्ष भर पानी उपलब्ध रहता है, तो हरे भरे प्रदेशों में यह सम्भव क्यों नहीं हो पा रहा है। पानी के इतने संकट ग्रस्त क्षेत्रों में भी पानी कभी नहीं बिका तो इस सहज विचार के कारण कि पानी मानव का वह अधिकार है जो बिक नहीं सकता है।
इस पानी की बिक्री के खिलाफ हमें एकजुट होना ही होगा।
तथ्यों को समेटने में ‘आज भी खरे हैं तालाब’, ‘राजस्थान की रजत बूँदें’ पुस्तकों और लोक संवाद, थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क, मल्टीनेशनल मॉनीटर और रिसर्च फाउंडेशन फार साइंस टेक्नोलाजी एवं इकोलाजी की पत्रिकाओं से विशेष सहयोग मिला।
पानी के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह बिक भी सकता है। लेकिन आज पानी बिक रहा है। प्यास बुझाने की कीमत ली जा रही है। पूरे विश्व में पेयजल का संकट जरूर उत्पन्न हुआ है। लेकिन इस संकट के कारणों को खोजकर उसके निराकरण के बजाय पानी का बाजार बनाने में अधिक दिलचस्पी ली जा रही है। पेयजल समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बाहर से पानी लाकर बेचने की व्यवस्था बनाई जा रही है। यह व्यवस्था कब तक चल सकती है।
राजस्थान के थार मरु भूमि के गाँवों में जितना पानी का संकट है उतना शायद ही कहीं हो। वहाँ के लोगों ने जब ऐसी व्यवस्था बना ली कि उन्हें वर्ष भर पानी उपलब्ध रहता है, तो हरे भरे प्रदेशों में यह सम्भव क्यों नहीं हो पा रहा है। पानी के इतने संकट ग्रस्त क्षेत्रों में भी पानी कभी नहीं बिका तो इस सहज विचार के कारण कि पानी मानव का वह अधिकार है जो बिक नहीं सकता है।
इस पानी की बिक्री के खिलाफ हमें एकजुट होना ही होगा।
तथ्यों को समेटने में ‘आज भी खरे हैं तालाब’, ‘राजस्थान की रजत बूँदें’ पुस्तकों और लोक संवाद, थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क, मल्टीनेशनल मॉनीटर और रिसर्च फाउंडेशन फार साइंस टेक्नोलाजी एवं इकोलाजी की पत्रिकाओं से विशेष सहयोग मिला।
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