राजस्थान

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पाट नाला, नदी की गोद में बना रहे सड़क
Posted on 20 May, 2016 11:03 AM
इधर अफसर करते रहे पर्यावरणीय स्वीकृति के लिये बैठकें, उधर चलता रहा नदी-नाला पाटने का काम
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति
Posted on 17 May, 2016 01:27 PM

अरावली वनीकरण परियोजना न केवल अरावली पर्वत श्रेणी को संरक्षित रखने की योजना है वरन यह राज

दक्षिणी राजस्थान में फ्लोरोसिस
Posted on 05 May, 2016 01:06 PM
Fluorosis in southern Rajasthan
क्षेत्र में एनपीपीसीएफ का क्रियान्वयन और जटिलताएँ
क्षेत्र में फ्लोरोसिस के सम्बन्ध में किये गए शोध

हरियाली के नाम बहा रहे ‘अमृत’, आमजन बेहाल
Posted on 03 May, 2016 12:16 PM

शहर में अमीनशाह नाला और सी-स्कीम का गंदा नाला प्रमुख हैं। सरकार यदि इन नालों के गंदे पानी

वाहनों एवं ध्वनि प्रसारक यन्त्रों से वायु एवं ध्वनि प्रदूषण
Posted on 02 May, 2016 12:53 PM

प्रदूषण से अभिप्राय प्रकृति को दूषित करने से है। प्रकृति में सभी व्यवस्थाएँ स्वयं संचालित

राजस्थान में बारानी खेती की प्रगति
Posted on 01 May, 2016 03:02 PM

राजस्थान के गाँवों का कठिन जीवन वहाँ के लोगों में अजीब आत्म विश्वास भी भर देता है। चीताखे

नव स्थापित उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण
Posted on 01 May, 2016 02:35 PM

प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था पर आने वाला व्यय परियोजना लागत में एक आवश्यक मद के रूप में श

अवसर देती जल अपील और प्रतिक्रियाएँ
Posted on 23 Apr, 2016 11:51 AM तारीख : 14 अप्रैल - बाबा साहब अम्बेडकर की 125वीं जन्मतिथि;
स्थान : परम्परागत तरीकों से जल संकट के समाधान की पैरोकारी के लिये विश्व विख्यात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाले संगठन तरुण भारत संघ का गाँव भीकमपुरा स्थित तरुण आश्रम;
मौका : 130 संगठनों के जमावड़े का अन्तिम दिन; जारी हुई एक अपील।

जारी जल अपील

कम पानी से नहीं कम अकली से पड़ता है अकाल
Posted on 22 Apr, 2016 11:04 AM
राजस्थान के जैसलमेर जिले के रामगढ़ क्षेत्र में पिछले वर्ष कुल 48 मिलीमीटर यानी 4.8 सेंटीमीटर या मात्र 2 इंच के करीब पानी बरसा और वहाँ अकाल नहीं पड़ा। भारत में इतनी कम बारिश कहीं और नहीं होती। अधिक बारिश वाले तमाम क्षेत्र सूखाग्रस्त क्यों हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। हमारी कमअकली और अदूरदर्शिता ने विकास का जो मॉडल खड़ा किया है वह विनाश की ओर ले जा रहा है। क्या हम अब भी आँख खोलकर नहीं देखेंगे?

पिछले साल के कुल गिरे पानी के आँकड़े तो आपने ऊपर देखे ही हैं। अब उनको सामने रखकर इस विशाल देश के किसी भी कृषि विशेषज्ञ से पूछ लें कि दो-चार सेंटीमीटर की बरसात में क्या गेहूँ, सरसों, तारामीरा, चना जैसी फसलें पैदा हो सकती हैं। उन सभी विशेषज्ञों का पक्का उत्तर ‘ना’ में होगा। पर अभी आप रामगढ़ आएँ तो हमारे यहाँ के खड़ीनों में ये सब फसलें इतने कम पानी में खूब अच्छे से पैदा हुई हैं और अब यह फसल सब सदस्यों के खलियानों में रखी जा रही है। तो धुत्त रेगिस्तान में, सबसे कम वर्षा के क्षेत्र में आज भी भरपूर पानी है, अनाज है और पशुओं के लिये खूब मात्रा में चारा है।

टेलिविजन कहाँ नहीं है? हमारे यहाँ भी है। हमारे यहाँ यानी जैसलमेर से कोई सौ किलोमीटर पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा पर भी। यह भी बता दें कि हमारे यहाँ देश का सबसे कम पानी गिरता है। कभी-कभी तो गिरता ही नहीं। आबादी कम जरूर है, पर पानी तो कम लोगों को भी जरूरत के मुताबिक चाहिए। फिर यहाँ खेती कम, पशुपालन ज्यादा है। लाखों भेड़, बकरी, गाय और ऊँटों के लिये भी पानी चाहिए। इस टेलिविजन के कारण हम पिछले न जाने कितने दिनों से देश के कुछ राज्यों में फैल रहे अकाल की भयानक खबरें देख रहे हैं। अब इसमें क्रिकेट का भी नया विवाद जुड़ गया है।
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