महोबा जिला

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जीवन दायिनी आज खुद लाचार
Posted on 25 Jun, 2009 09:40 AM
महोबा- मुख्यालय के पश्चिम में स्थित पड़ोसी गांव चांदौ, चंद्रपुरा के पहाड़ी झरनों से निकली चंद्रावल नदी हजारों साल अपने किनारे बसने वाले आधा सैकड़ा से ज्यादा गांवों को जीवन का अमृत पिलाती रही। चंद्रावल बांध के साथ आधा सैकड़ा से ज्यादा गांवों की जीवनदायिनी यह नदी वक्त और प्रदूषण की मार से खुद का अस्तित्व नहीं बचा सकी। इस नदी के सूख जाने से अब बांध के अस्तित्व पर भी ग्रहण लग गया है।
किसानों को बर्बाद कर देंगे आवारा पशु
Posted on 18 Sep, 2018 11:57 AM

बुन्देलखण्ड के किसान इन दिनों आवारा पशुओं की समस्या से बेहद परेशान हैं। पहली बार फसलों को बचाने के लिये किस

आवारा पशु
श्रम और सोच ने लिखी नई इबारत, बदले खेतों के हालात
Posted on 26 May, 2016 12:49 PM

खेतों के पास से एक वर्षा से आच्छादित होने वाला नाला निकलता है जिसका बेतरतीब बहने वाला पानी खेतों को नहीं मिल पाता था मैंने उस नाले का पानी का प्रयोग अपने तालाब को भरने में किया और उसका इनलेट इस तरह से बनाया कि जितना हमारा तालाब गहरा है उतना ही पानी उसमें जा सके। यह कमाल सिर्फ इनलेट का है जो नाले का वर्षाजल हमारे खेतों को नुकसान नहीं कर पाता है। जिन किसानों के पास धन की व्यवस्था नहीं है उन किसानों को भी यह जान लेना चाहिए कि पानी वर्षाजल संचयन के लिये तालाब से बेहतर कोई उपाय नहीं है।

पिता से विरासत में मिली जमीन को खुशी-खुशी जब मैं जोतने चला तो खेत की स्थिति देख दंग रह गया। समझ नहीं आया काम कहाँ से शुरू करुँ। अपनी ही जमीन पहाड़ जैसी लगने लगी। लेकिन घर से तो खेत जोतने को चले थे, लौटकर घर में क्या कहता? सो स्टार्ट किया ट्रैक्टर और शुरू किया ढालूदार खेत को समतल करना। समतल करने से निकली कंकड़ वाली मिट्टी से मेड़ बनाना।

बुन्देलखण्ड की वीर भूमि महोबा जिले के ग्राम बरबई के ऊर्जावान किसान बृजपाल सिंह ने अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा कि असिंचित एवं ढालूदार जमीन होने के कारण जमीन लगभग ऊसर हो चुकी थी। ट्रैक्टर चलाने के शौक ने खेत पर पहुँचा दिया। ढालूदार जमीन को समतल करने का सबसे पहले मन बनाया सो जोतने वाला औजार निकाल समतल करने वाला सूपा ट्रैक्टर में लगवाया और खेत को समतल करना शुरू किया।
बुन्देलखण्ड : तालाबों से लिखी जा रही नई इबारत
Posted on 16 Jan, 2016 10:53 AM

भयंकर सूखे में भी किसानों ने बोई फ़सल



मैयादीन के पास पट्टे की दो बीघा बंजर ज़मीन है बंजर ज़मीन और उस पर सिंचाई के साधन भी नहीं। मैयादीन सरकार से मिली ज़मीन का उपयोग खेती के लिये करने में असमर्थ थे उन्होंने भी अपने खेत में एक छोटा तालाब खुदवाने का निर्णय लिया आज उनके तालाब में पानी है जो उनकी उम्मीदों को पुख्ता करने के लिये काफी है। उनका कहना है कि तालाब ने एक आस जगा दी है।

महोबा जनपद की तहसील चरखारी के गाँव काकून में तालाबों ने नई इबारत लिखनी शुरू कर दी है। गाँव के किसान खुश हैं कि उन्होंने खेत पर ही तालाब बनाकर जमीन की प्यास बुझाने के लिये वर्षाजल का संचयन करने का इन्तजाम कर लिया है।

वर्ष 2014-15 में अपना तालाब अभियान के अन्तर्गत काकून गाँव में सूखे से तंग आकर लगभग 70 किसानों ने अपनी प्यासी खेती की ज़मीन पर तालाब बनाने का संकल्प लिया आज वो तालाब नई इबारत लिखने को तैयार हैं।

जिन किसानों ने तालाब अपने खेतों में अभी नहीं बनवाए हैं वो उतावले हैं कि कब वह भी तालाब बनवाकर अपनी वर्षा के पानी का संचयन कर खुशहाल हों।
पानी से बदलती कहानी
Posted on 02 Aug, 2015 04:42 PM

अपना तालाब अभियान की पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली लाल’ का नारा लगाते हुए लगभग 4 हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिये कूद पड़े। लोगों ने महज दो घंटे में ही तालाब की अच्छी खासी खुदाई कर डाली। पूरे 46 दिन तक काम चला और 21 हजार लोगों ने मिलकर सैकड़ों एकड़ में फैले जय सागर तालाब को नया जीवन दे दिया। खर्च आया महज 35 हजार रुपए। सरकारी आकलन से पता चला कि लोगों ने करीब 80 लाख रुपए का काम कर डाला था।

अच्छे-अच्छे काम करते जाना। राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न अपने भाइयों के साथ रोज खेतों पर काम करने जाता दोपहर को कूड़न की बेटी आती, खाना लेकर। एक दिन घर वापस जाते समय एक नुकीले पत्थर से उसे ठोकर लग गई। मारे गुस्से के उसने दरांती से पत्थर उखाड़ने की कोशिश की। लेकिन यह क्या? उसकी दरांती तो सोने में बदल गई। पत्थर उठाकर वह भागी-भागी खेत पर आती है और एक साँस में पूरी बात बताती है। एक पल को उनकी आँखे चमक उठती हैं, बेटी के हाथ पारस पत्थर लगा है। लेकिन चमक ज्यादा देर नहीं टिक पाती। लगता है देरसबेर कोई-न-कोई राजा को बता ही देगा। तो क्यों न खुद राजा के पास चला जाए। राजा न पारस लेता है न सोना। बस कहता है,‘इससे अच्छे-अच्छे काम करते जाना। तालाब बनाते जाना।’

Apna talab abhiyan
वर्षा: बुन्देली लोकगीत
Posted on 13 Mar, 2014 10:44 PM कन्हैया तोरी चितवन लागे प्यारी।

सावन गरजे भादों बरसे

बिजुरी चमके न्यारी (कन्हैया)

मोर जो नाचे पपीहा बोले

कोयल कूके प्यारी (प्यारी)

नन्हीं-नन्हीं बुंदिया मेहा बरसे

छाई घटा अंधियारी (कन्हैया)

सब सखियां मिल गाना गाए

नाचे दे दे तारी (कन्हैया)

2 राते बरस गओ पानी
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