महाराष्ट्र

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कहानी रालेगण सिद्धी की
Posted on 03 Jul, 2015 08:45 PM विकास का अनूठा रास्ता अपनाकर रालेगण सिद्धी ने पहले महाराष्ट्र में,
ਮੇਰੀ ਕਹਾਣੀ ਮੇਰੀ ਜ਼ੁਬਾਨੀ
Posted on 30 May, 2015 11:27 AM ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਸੁਭਾਸ਼ ਸ਼ਰਮਾ ਨੇ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਨੂੰ ਆਤਮਸਾਤ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ, ਜਲ ਅਤੇ ਮਿੱਟੀ 'ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਗਿਆਨ ਅਤੁਲਨੀਯ ਹੈ। ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ੰਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਲੱਗ ਮੁਕਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਟਾਟਾ ਸਕਾਲਰਸ਼ਿਪ ਮਿਲੀ ਅਤੇ ਬਾਬਾ ਰਾਮਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਪ੍ਰਯੋਗ ਖੇਤਰ ਦੇ ਸਲਾਹਕਾਰ ਵੀ ਹਨ।
पाणी
Posted on 18 Feb, 2015 10:37 AM

पाणी (H2

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मालिन हादसे का मर्म
Posted on 01 Sep, 2014 01:04 PM बयान में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो में सरकार को इस तरह की आपदा
कॉमनसेंस भी करोड़पति बना सकता है
Posted on 25 Jun, 2014 12:23 PM आज यहां 295 कुएं हैं। और पानी 15 से 45 फीट तक मिल जाता है। जबकि अहमदनगर जिले के दूसरे इलाकों में 200 फीट तक पानी मिल पाता है। बहरहाल, हिवड़े बाजार आज वह गांव है, जहां हर परिवार खुशहाल है। यह कैसे हुआ? खासकर तब जबकि गांव में सालाना बारिश सिर्फ 15 फीसदी होती थी। जब पवार सरपंच बने तो उन्होंने सबसे पहले ये दुकानें बंद कराई। शुरुआत मुश्किल थी। गांव में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग के काम में लगाया। गांव वालों ने मिट्टी के 52 बांध बनाए। बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए दो बड़े टैंक और 32 पथरीले बांध बनाए। पोपटराव पवार अब 54 साल के हो चुके हैं। वे अपने गांव में एक समय इकलौते पोस्ट ग्रेजुएट हुआ करते थे। लिहाजा, गांव के युवाओं ने उनसे आग्रह किया कि वे सरपंच का चुनाव लड़ें। लेकिन पवार की इसमें दिलचस्पी नहीं थी। परिवार ने भी उनके चुनाव लड़ने पर समहति नहीं दी। परिवार वाले चाहते थे कि वे शहर जाएं और कोई बढ़िया सी नौकरी करें। जबकि पवार खुद क्रिकेटर बनने की इच्छा रखते थे। खेलते भी अच्छा थे। घर के लोगों को भी लगता था कि वे एक एक दिन कम से कम रणजी टूर्नामेंट में तो खेल ही लेंगे।
एक व्यक्ति के प्रयास से हरी-भरी हुई पहाड़ी
Posted on 20 Jul, 2012 10:09 AM बंजर जमीनों पर सरकार तथा बिल्डर्स लॉबी की आंखें लगी हुई हैं कि कहां ऐसी जमीन मिले और हम अपने फायदे के लिए अपार्टमेंट्स बना लें। ऐसा ही एक घटना पुणे के सुस और बनेर गांव की है जहां पहाड़ी के बंजर जमीन पर सरकार तथा बिल्डरों की नजरें लगी हुईं थीं। लेकिन बापू कलमरकर के प्रयास से उस पहाड़ी पर हरे-भरे जंगल तथा डैम बन जाने से पहाड़ी की बंजर जमीन बच गई। कलमरकर के प्रयास से हरी-भरी हुई पहाड़ी के बारे में बता रहे हैं एन रघुरामन।

जब कलमरकर और उनके गांव के साथियों को यह पता चला कि सरकार इस पहाड़ी का सीमांकन करने पर विचार कर रही है, तो उन्होंने साथ मिलकर इसे बचाने की योजना बनाई। उन्होंने तय किया कि इस पहाड़ी का तेजी-से वनीकरण किया जाए, क्योंकि बंजर जमीन के मुकाबले जंगली जमीन को बचाना ज्यादा आसान होता है। उन्होंने वहां पर वर्षाजल को एकत्रित करने के लिए छोटे-छोटे डैम बनाए, ताकि पौधरोपण में आसानी हो सके।

किसी भी फैलते शहर में जमीन एक बहुमूल्य संसाधन है।
जंगल को बचाने का प्रयास
Posted on 23 May, 2012 12:28 PM प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल। इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, जलावन के लिए लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है। इन जंगलों को जहां कुछ माफिया लोग अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में भरत मंसाता, जादव और नारायण सिंह जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी। इन अद्भुत प्रयास क
थोड़ा है, काफी कुछ करने की जरूरत है
Posted on 30 Jan, 2012 02:16 PM

कोंकण के डहाणू में प्राथमिक स्कूल के एक शिक्षक ने होली के त्योहार को स्वच्छता से जोड़ते हुए पूरे स्कूल के बच्चों को गांव में होली के त्योहार के एक दिन पहले साफ सफाई करने को प्रोत्साहित किया। पूरे गांव में बच्चों ने झाड़ू लगाकर नालियां साफ कर होली की तैयारी की। बच्चों को साफ-सफाई करते देख गांव के युवक भी इस अभियान में शामिल हो गए। सफाई के लिए जाने जाने वाले संत गाडगे बाबा का नाम लेकर 'देवकी नंदन गोपाला' का नारा लगाते हुए पूरे गांव की सफाई की गई। अब वहां होली के पहले सफाई का काम एक त्योहार बन गया है।

अकोला जिले के संगलूड़ गांव में रीना और अमोल इंगले नाम के भाई-बहन ने पिछले तीन महीनों से स्कूल जाना छोड़ दिया। इसके पहले भी शिक्षकों ने इंगले के घर जा कर बच्चों को स्कूल भेजने की उनके पिता बंडू इंगले से गुजारिश की थी, लेकिन आश्वासन देने के बाद भी बंडू ने बच्चों को स्कूल नहीं भेजा। बंडू के इस रवैए से परेशान शिक्षकों ने एक जुगत लगाई। एक दिन रीना की पूरी कक्षा को लेकर शिक्षक उसके घर पहुंचे और रीना को साथ बिठाकर पढ़ाना शुरू कर दिया।
काठेवाडी गाँव का कायाकल्प
Posted on 22 Feb, 2011 01:54 PM


महाराष्ट्र के नांदेड जिले का एक छोटा सा गाँव है काठेवाडी। गाँव की आबादी मात्र ७०० है। तहसील डेगलुर के इस छोटे से गाँव का आज दूर-दूर तक नाम है। नाम है अच्छाई है लिए। इस गाँव को लोग पहले भी जानते थे पर बदमाशी के लिए। गाँव का नाम लेते ही लोगों में डर भर जाता था। गाँव की ज्यादातर आबादी पियक्कड़ थी। लोग पूरे दिन जमकर दारू पीते और बीड़ी फूँकते थे।

गोदावरी नदी
Posted on 21 Dec, 2010 11:29 AM

वैदिक साहित्य में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। बौद्ध ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। ब्रह्मपुराण में गौतमी नदी पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पार्श्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने श्रावस्ती में बुद्ध के पास कतिपय शि

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