मध्य प्रदेश

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पानी के निजीकरण का खंडवा मॉडल फेल
Posted on 04 Dec, 2015 01:05 PM

पूरे देश के साथ-साथ अब मध्य प्रदेश में भी पानी के निजीकरण का मॉडल फेल होने की कगार पर पहुँच गया है। खंडवा शहर में नर्मदा नदी से पानी लाकर लोगों के घरों तक पहुँचाने के लिये प्रदेश सरकार ने एक निजी कम्पनी विश्वा से अनुबन्ध किया है। इसमें एक अरब छह करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी अब तक लोगों को साफ़ और समुचित मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है।

भोपाल गैस त्रासदी के 31 साल : शोक, जुलूस, पुतला दहन और प्रदर्शन
Posted on 04 Dec, 2015 10:22 AM भोपाल गैस त्रासदी पर विभिन्न जनसंगठनों, संस्थाओं के साथ-साथ सरकार एवं विपक्ष ने भी भीषणतम औद्योगिक घटना को याद करते हुए उसमें मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त किया। घटना के 31 साल बाद भी न्याय के इन्तजार कर रहे पीड़ितों के संगठनों ने जुलूस निकाले, प्रदर्शन किया और पुतला दहन किया। दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने त्रासदी में मारे गए लोगों को लेकर आयोजित सर्वधर्म श्रद
नहीं बीते भोपाल गैस कांड से पीड़ितों के बुरे दिन
Posted on 03 Dec, 2015 04:32 PM साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे, पैगम्बर मरिहैं
मरिहैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी...
-कबीर


. 2 दिसम्बर,1984 की रात यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस ने हजारों को मौत की नींद सुला दिया था। जो लोग बचे हैं वे फेफड़े, आँख, दिल, गुर्दे, पेट और चमड़ी की बीमारी झेल रहे हैं। सवा पाँच लाख ऐसे गैस पीड़ित हैं, जिन्हें किसी तरह की राहत नहीं दी गई है। साथ ही 1997 के बाद से गैस पीड़ितों की मौत दर्ज नहीं की जा रही है।

सरकार भी यह मान चुकी है कि कारखाने में और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कचरा ज़मीन में दबा हुआ है। अभी तक सरकारी स्तर पर इसे हटाने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। खुले आसमान के नीचे जमा यह कचरा बीते कई सालों से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 14 बस्तियों की 40 हजार आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है।
अमरीकी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई में केन्द्र सरकार विफल
Posted on 01 Dec, 2015 10:10 AM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे की 31वीं बरसी पर गैस पीड़ित मशाल जुलूस लेकर यूनियन कार्बाइड कम्पनी का विरोध करेंगे। हर बार की तरह इस बार भी गैस पीड़ित मुफ्त इलाज, मुआवजा के साथ-साथ जन्मजात विकलांगता वाले बच्चों की पुनर्वास सुविधाओं की भी माँग करेंगे।

इस तरह का विरोध पहली बार नहीं हो रहा है, बल्कि लगातार 30 वर्षों से गैस पीड़ित इसी तरह यूनियन कार्बाइड के खिलाफ अपना विरोध जताते आ रहे हैं। लेकिन इस दफा मामला इसलिये भी गम्भीर है, क्योंकि पेरिस में 125 देश मिलकर पर्यावरण प्रदूषण के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन पर बहस और दिशा तय करेंगे।
भयावह रिसाव
Posted on 30 Nov, 2015 03:27 PM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की पॉल्युशन मॉनिटरिंग लैब (पीएमएल) ने विषैले रसायनों की उपस्थिति का पता लगाने के लिये यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड (यूसीआईएल) फ़ैक्टरी के भीतर और इसके आसपास पानी और मिट्टी के नमूनों की जाँच की।

पीएमएल ने यूसीआईएल में विभिन्न कीटनाशकों के उत्पादन के लिये इस्तेमाल की जा रही प्रक्रियाओं की जाँच की और इनके आधार पर मिट्टी तथा पानी के नमूनों की जाँच के लिये रसायनों के चार समूहों का चयन किया। इसने क्लोरिनेटेड बेंज़ीन कम्पाउंड में 1,2 डाइक्लोरोबेंज़ीन, 1,3 डाइक्लोरोबेंज़ीन, 1,4 डाइक्लोरोबेंज़ीन तथा 1,2,3 ट्राइक्लोरोबेंज़ीन की जाँच की।
जानलेवा कचरे का अधूरा निपटान
Posted on 29 Nov, 2015 01:29 PM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने का घातक कचरा पीथमपुर में निपटाया जाना शुरू कर दिया गया है लेकिन पर्यावरणविद और विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कचरा स्थानीय पर्यावरण को बहुत अधिक हानि पहुँचा सकता है।

.सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद यूनियन कार्बाइड कारखाने का विषाक्त कचरा निपटाने की प्रक्रिया इन्दौर के निकट पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में शुरू कर दी गई है। लेकिन विषय विशेषज्ञों का कहना है कि कचरा निपटाने के लिये समुचित मानकों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है जो आसपास की आबादी के लिये घातक हो सकता है।

दरअसल यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा तीन दशक बाद भी विवाद का विषय बना हुआ है। इस कचरे को दुनिया का कोई भी देश अपने यहाँ निपटाने को तैयार नहीं है। हालांकि बीच में जर्मनी की एजेंसी जीईजेड इस कचरे को जर्मनी ले जाकर कुशलतापूर्वक नष्ट करने को तैयार थी लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से उससे करार नहीं हो सका।

यूनियन कार्बाइड के कचरे से प्रदूषित भूजल
Posted on 29 Nov, 2015 12:33 PM

भोपाल गैस कांड पर विशेष


आज से 31 साल पहले दुनिया की सबसे भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना (भोपाल गैस कांड) में हजारों लोगों की मौतें हुई थीं और हजारों लोग जिन्दगी भर पीछा न छोड़ने वाली बीमारियों से पीड़ित हो गए लेकिन अब भी हालात नहीं सुधरे हैं।

यूनियन कार्बाइड कारखाने में जमा कई टन कचरे की वजह से आसपास (करीब चार किमी की परिधि) में रहने वाले लोगों के जिन्दगी पर अब भी इसका बुरा साया बरकरार है। कचरे के जमीन में रिसने से यहाँ का भूजल इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुका है कि यहाँ हर दिन एक व्यक्ति गम्भीर बीमारियों की चपेट में आ रहा है।

यहाँ के पानी की जाँच में खतरनाक तत्व मिले हैं और यह पानी प्रतिबन्धित भी कर दिया है लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने से लोगों को यही पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
समझदारी और भागीदारी से भागी फ्लोरोसिस की बीमारी
Posted on 25 Nov, 2015 10:09 AM कालापानी, बड़ी छतरी और दहेरिया गाँवों में जल उपयोगकर्ता समितियों का गठन किया गया जिनका काम पीने का साफ पानी एकत्रित करना और हर हालत में उसकी देखभाल और साफ-सफाई सुनिश्चित करना है। कालापानी गाँव की जल उपयोगकर्ता समिति की अध्यक्ष सक्कू बाई ने बताया कि किस तरह उनकी टीम पानी को साफ रखने और उसके उचित उपचार का काम करती है। कालापानी गाँव के किसान उदय सिंह ने तो फ्लोराइड के कम स्तर वाला अपना कुआँ ही गाँव के लोगों को इस्तेमाल के लिये दान में दे दिया है। धार जिले के कुछ गाँवों में स्वयंसेवी शोध संगठन पीएसआई के साथ मिलकर स्थानीय लोगों ने पानी में अतिरिक्त फ्लोराइड की समस्या को दूर कर लिया है।

जो भी लोग मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिला धार के कालापानी, बड़ी छतरी और दहेरिया गाँवों के बारे में जानते हैं, उनके मन में इनका जिक्र आते ही निराशा और आशा के मिले-जुले भावों का संचार होता है। इन तीन गाँवों की कहानी एक विकट समस्या से जूझने और देश को उससे उबरने की राह दिखाने की कहानी है।

निराश करने वाली बात यह है कि ये गाँव देश के उन क्षेत्रों में आते हैं जहाँ के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है और जिसके चलते बच्चों से लेकर वयस्क तक फ्लोरोसिस जैसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
जनभागीदारी से दूर होती फ्लोरोसिस की बीमारी
Posted on 19 Nov, 2015 03:46 PM राज्य स्तरीय कार्यशाला में बनी सहमति, स्थानीय समुदायों, स्यवंसेवी संगठनों और सरकार के तालमेल से दूर हो सकती हैं फ्लोरोसिस जैसी क्षेत्र आधारित बीमारियाँ

पेयजल से पैदा होने वाली इस बीमारी की भयावहता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है देश के 20 राज्य और अकेले मध्य प्रदेश के 27 जिले इसकी चपेट में हैं। पानी में फ्लोराइड की बढ़ी हुई मात्रा कई तरह की बीमारियों को जन्म दे सकती है। इससे निपटने के क्रम में शासकीय-स्वयंसेवी प्रयास और आम लोगों में जागरुकता दोनों समान रूप से आवश्यक हैं। प्रदेश के 27 जिलों में पेयजल फ्लोराइड से ग्रस्त है, लोक विज्ञान संस्थान तथा कुछ अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर प्रदेश सरकार तेजी से इस समस्या से निपटने का प्रयास कर रही है।राजधानी भोपाल स्थित पलाश रेजिडेंसी होटल में 18 नवम्बर को ‘सहभागी भूजल प्रबन्धन के जरिए फ्लोरोसिस शमन’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में पानी में फ्लोराइड की जरूरत से ज्यादा मौजूदगी से होने वाली समस्याओं और उनसे निपटने के जनभागीदारी वाले तरीकों के बारे में न केवल गहन चर्चा हुई बल्कि वहाँ ऐसे निष्कर्ष भी निकाले गए जो इस बीमारी से जूझ रहे जिलों और आबादी को नई राह दिखा सकते हैं।

कार्यशाला के समापन तक इस बात पर आम सहमति बन गई कि स्थानीय समुदायों को यदि थोड़ा शोध, थोड़ा प्रशिक्षण और सरकारी-गैरसरकारी मदद मुहैया करा दी जाये तो वे स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उपजी फ्लोरोसिस जैसी समस्याओं से काफी हद तक खुद ही निपट सकते हैं।

कार्यशाला का आयोजन देहरादून स्थित शोध संस्था लोक विज्ञान संस्थान (पीएसआई), ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी), भोपाल, फ्रैंक वाटर यूके, वसुधा, विकास संस्थान, वाटर एड, इनरेम फ़ाउंडेशन और अर्घ्यम के सहयोग से किया था।
meet on fluorosis
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