ललितपुर जिला

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अनुपयोगी धूल (क्रेशर से निकली) से आजीविका संवर्धन
Posted on 09 Apr, 2013 03:32 PM ऐसे स्थानों पर जहां प्रकृतिगत विरोध के कारण खेती संभव नहीं हो पा रही है, वहां पर आजीविका के अन्य विकल्पों की तलाश कर लोग उन पर अपनी निर्भरता बना रहे हैं।

संदर्भ

सूखा के दौर में आजीविका बनी बागवानी
Posted on 09 Apr, 2013 11:20 AM बागवानी लगाकार एक तरफ तो खेती में हो रहे नुकसान को पूरा कर सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ पेड़-पौधों की बढ़ती संख्या पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

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सूखे बुंदेल में कृषि की एक संभावना “सन”
Posted on 09 Apr, 2013 11:14 AM सूखा क्षेत्र के रूप में जाने वाले बुंदेलखंड में किसानों ने यहां की जलवायु, मिट्टी के अनुसार स्थानीय ज्ञान को विकसित करते हुए बहु आयामी फसल ‘सन’ को प्रोत्साहित किया है।

परिचय

सूखे के दौरान छोटी व मिश्रित खेती ने दिया लाभ
Posted on 09 Apr, 2013 10:21 AM मिश्रित खेती में सब्जियों व मसालों को प्राथमिकता देते हुए किसानों ने न सिर्फ सूखे के कारण हुए नुकसान को कम किया, वरन् शहर की ज़रूरतों को भी पूरा करने में अहम् भूमिका निभाई।

संदर्भ


मिश्रित खेती के अंतर्गत किसानों द्वारा औसतन 15-20 फसलें एक साथ ली जाती हैं, जिनके लिए पानी, खाद तथा अन्य जैविक एवं सस्य क्रियाएं समान व एक बार में ही सबको लाभान्वित करने वाली होती है।
मंगल सिंह का मंगल कार्य
Posted on 18 Jun, 2012 02:58 PM

पानी उठाने के अलावा जलचक्र मशीन से अन्य अनेक ग्रामीण कार्य जैसे आटा पिसाई, गन्ना पिराई, फसल गहाई, तेल प्रसंस्करण

ग्रामीण वैज्ञानिक की बाधा भरी राह
Posted on 08 Sep, 2011 06:06 PM

देश के एक ग्रामीण वैज्ञानिक मंगल सिंह ने न केवल देश को अरबों रुपए की बिजली व डीजल की बचत की राह दिखाई है। बल्कि पर्यावरण-रक्षा करते हुए बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी का अवसर भी उपलब्ध किया है। लाखों किसानों को उनकी इस खोज से सस्ती सिंचाई की सुविधा मिल सकती है और ग्रामीण कुटीर उद्योगों को बिजली भी मिल सकती है। इस आविष्कार 'मंगल टरबाइन' को पेटेंट प्राप्त हो गया है, साथ ही मौक

दम तोड़ रही है बेतवा की धार
Posted on 29 Jul, 2011 09:25 AM

ओरछा अप्रैल। बुंदेलखंड की जीवन रेखा बेतवा नदी की धार दम तोड़ती नजर आ रही है। नदी की धार टूटना शुभ संकेत नहीं है। बुंदेलखंड के लिए यह खतरे की घंटी है। महोबा से ओरछा पहुंचे तो बेतवा को देखकर हैरान रह गए। यही बेतवा हमीरपुर तक बुंदेलखंड में लोगों की जीवन रेखा का काम करती है। सामने बिना पत्तियों वाले पेड़ों का सूखा जंगल है तो दाएं-बाएं सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर। कहीं कोई धारा या प्रवाह दिखाई नहीं पड़ता।

बेतवा नदी का धारा अब नल के धार से भी कम है
कुख्यात चंबल घाटी होगी विख्यात
Posted on 05 Jul, 2011 10:02 AM

बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं। अटेर का अपना ए

घटता पानी, बढ़ती प्यास
Posted on 06 May, 2011 01:18 PM

बेतवा, शहजाद, केन, धसान, मंदाकिनी, यमुना, जामनी, एवं सजनाम जैसी सदा नीरा नदियां होने के बावजूद पानी के लिए तरस रहे लोगों के दर्द को समझना बड़ा कठिन है। बुंदेलखंड में जल युद्ध होने से कोई रोक नहीं सकता। बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर हुई लूट ने हालात बदतर कर दिए हैं। 2003 में हुई वर्षा 1044.88 एमएम से घटते-घटते वर्ष 2009 तक 277.30 एमएम रह गई। दो हज़ार से अधिक चंदेलकालीन तालाबों में पानी नहीं है। ललित

विकास की बलि : ललितपुर
Posted on 10 Mar, 2011 02:26 PM

नदियों पर बनने वाले बांधों के विरोध में बीसवीं सदी में विरोध की घटनाओं में एक बेतवा नदी पर बने

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