कोटा जिला

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महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश
Posted on 24 Oct, 2012 04:45 PM निर्मल भारत अभियान की कमान अब स्वयं महिलाओं को अपने हाथ में ले लेनी चाहिये। भारत के प्रत्येक गांव को निर्मल गांव बनाना महिलाओं के हाथ लगाये बगैर असंभव है, क्योंकि यह हमारे मर्यादा का सवाल है। सरकार के इस अभियान को समाज में मान-प्रतिष्ठा से जोड़ा जाना चाहिए। केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री ने महिलाओं से हरियाणा में इस समय पॉपुलर हुए उस संकल्प को अपनाने की अपील की जिसमें वहां की बेटियों के लिये धक्काड़े के साथ कहा जा रहा है कि ‘शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं।’ सांगोद (कोटा)। महिलाएं, निर्मल गांव और जयराम रमेश, क्या इन तीनों में कोई साम्यता हो सकती है। यदि केंद्रीय ग्रामीण एवं पेयजल मंत्री जयराम रमेश की सुने तो, हां। इतना ही नहीं इस त्रिकोणमिती में तो उनको चमत्कार का भी दीदार हो रहा है। पहले इन्दौर में उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि पानी के बिना निर्मल गांव बनाना असंभव है। लेकिन भारत निर्मल यात्रा के कोटा राजस्थान पहुंचने पर जब ग्रामीण मंत्री ने मंच के सामने महिलाओं की अपार भीड़ देखी तो उनके स्वर बदल गए।
Sanitation
चंबल में नयी सभ्यता का उदय
Posted on 31 Dec, 2011 10:58 AM

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।

चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो।
chambal river
चंबल से मगर का मोहभंग
Posted on 28 Jul, 2011 10:12 AM

कोटा। कहीं रेत भरते ट्रैक्टर-ट्रॉलियों की धड़धड़ाहट तो कहीं अवैध खनन के धमाके। अब ऐसे में कोई अपने नन्हें बच्चों को कैसे छोड़ सकता है? बरसों को चंबल नदी में रह रहे मादा मगरमच्छों की भी ऐसी ही स्थिति है। चंबल की कराइयों में बढ़ती मानवीय गतिविधियों के चलते इन्होंने अपने प्रजनन स्थल बदल लिए हैं। अब ये चंबल छोड़कर उसकी सहायक नदी चंदलोई व उसमें गिरने वाले नालों के इर्दगिर्द अण्डे दे रही हैं।

घड़ियालों का अस्तित्व संकट में
पनघटों पर पसरा सन्नाटा
Posted on 16 Feb, 2011 10:22 AM


बुजुर्गों की विरासत को भूल गये लोग जल स्तर गिरने से सूखे कुएं बावड़ी/ कचरा पात्र बने प्राचीन जल स्त्रोत
किसी दौर में एक गाना चला था -

…सुन-सुन रहट की आवाजें यूं लगे कहीं शहनाई बजे, आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे…

well
गुरु जल संयंत्र (परमाणु ऊर्जा विभाग) कोटा राजस्थान
Posted on 08 Oct, 2008 09:15 PM जल संरक्षण, बेकार पानी में कमी, सीवेज शोधन और पौधा रोपण
क्या कोई मां से ऐसा बर्ताव करता है
Posted on 10 Sep, 2008 08:23 PM

भास्कर न्यूज/ कोटा। मैं चंबल हूं। मैं इस शहर की कब से प्यास बुझा रही हूं, अब तो बरस भी याद नहीं रहे। कोटा के लिए मुझे जीवन रेखा माना जाता है तो दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के लिए धरोहर। मेरा जल मूलत: शुद्ध, अलवण और गंगाजल के समतुल्य है, इसीलिए मुझे लोग चर्मण्यवती कहकर पूजते रहे हैं।

तैरना शान समझा जाता था

तब
राजस्थान में जलग्रहण विकास चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ
Posted on 08 Sep, 2018 06:20 PM

11.1 प्रस्तावना (Introduction)
धरती पर जल

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसम्बर 1992 को एक प्रस्ताव पारित कर 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में बनाए जाने की शुरूआत की। पहला विश्व जल दिवस वर्ष 1993 में मनाया गया।

Johad
पर्यावरण सामाजिक मुद्दे, समस्याएँ, संघृत विकास
Posted on 07 Sep, 2018 01:42 PM

10.1 प्रस्तावना
सामाजिक मुद्दे एवं पर्यावरण: अपोषणीय से पोषणीय या संघृत विकास की ओर

Step well
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