झांसी जिला

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आमंत्रण पत्र - विकल्प संगम 2017
Posted on 26 Aug, 2017 01:53 PM
मध्य प्रदेश विकल्प संगम में (जिसमें विकास की मुख्य धारा से हटकर अन्य विकल्पों पर कार्यरत या कार्य करने के लिये उत्सुक संस्थान एवं लोग शामिल हो रहे हैं) आपको आमंत्रित करते हुए प्रसन्नता हो रही है। म.प्र. विकल्प संगम 18 से 19 सितंबर 2017 को डेवलपमेंट अल्टरनेटिव ओरछा झांसी में आयोजित होने जा रहा है। यह संगम विशेष रूप से बुन्देलखण्ड जो कि सूखा, गरीबी, जैसी समस्याओं से ग्रसित क्षेत्र के रूप में जाना जाने लगा है, पर केन्द्रित होगा। यह संगम ‘विकल्प संगम’ की सतत और व्यापक प्रक्रिया का हिस्सा है जोकि पिछले कुछ वर्षों से देश के विभिन्न क्षेत्रों में समय-समय पर आयोजित किया जाता रहा है।

विकल्प संगम का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न विषयों जैसे प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ्य, शिल्पकला, मीडिया, न्याय, आजीविका, बाजार/व्यापार, कला एवं संस्कृति, प्रशासन आदि के व्यावहारिक विकल्पों पर चर्चा करना है साथ ही क्षेत्रीय संगम में निकले विषय बिन्दुओं को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विकल्प संगम में ले जाना है।
झांसी जिले के तालाब
Posted on 27 Jun, 2016 12:01 PM

भसनेह का तालाब भसनेह के जागीरदार विजयसिंह बुन्देला ने सन 1618 ई.

लोगों को डीलिंक करती केन-बेतवा लिंक परियोजना
Posted on 08 Jun, 2016 03:01 PM
नदी जोड़ परियोजना के अंतर्गत कुल 30 नदी जोड़ प्रस्तावित हैं, जिसमें से 14 हिमालयी भाग के और 16 प्रायद्वीपीय भाग के हैं। इन्हीं नदी जोड़ परियोजनाओं में बुंदेलखंड की केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना लाइन में सबसे आगे है। परियोजना में कुल 7 बांध बनने वाले हैं और 1 बांध से 10 हजार हेक्टेयर जमीन डूब क्षेत्र में आएगी। न केवल पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क, केन घड़ियाल अभ्यारण्य खत्म हो जाएंगे बल्कि बुंदेलखंड में पानी के लिए जंग होने के आसार भी हैं। परियोजना के खतरों से रूबरु करा रहे हैं आशीष सागर।

केन-बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना में सुप्रीम कोर्ट के सहमति के पश्चात सुकवाहा गांव में सर्वे कार्य चल रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क संरक्षित वन क्षेत्र है यदि लिंक बनता है तो यहां कि बायोडायवर्सिटी के विलोपन का खतरा है। साथ ही प्रस्तावित केन-बेतवा नदी गठजोड़ में डाउनस्ट्रीम में स्थित केन घड़ियाल अभ्यारण्य भी पूरी तरह जमींदोज हो जायेगा। तथा जल जमाव, क्षारीयकरण, जल निकास व जैव विविधता से जो उथल-पुथल होगी उससे न सिर्फ सैकड़ों वन्यजीवों पर संकट के बादल आयेंगे बल्कि बुंदेलखंड पानी की जंग के दौर से गुजरेगा ऐसे आसार हैं।

राष्ट्रीय नदी विकास अभिकरण (एन.डब्लू.डी.ए.) द्वारा देश भर में प्रस्तावित तीस नदी गठजोड़ परियोजनओं में से सबसे पहले यूपी. एम.पी. के बुंदेलखंड क्षेत्र से केन-बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना पर अमलीकरण प्रस्तावित है। 19 अप्रैल 2011 को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पूर्व मुखिया जयराम रमेश ने केन-बेतवा लिंक को एन.ओ.सी. देने से मना कर दिया है। क्योंकि वे खुद ही इस लिंक के दायरे में आ रहे पन्ना टाइगर नेशनल रिजर्व पार्क के प्रभावित होने के खतरे को भांप चुके थे। बड़ी बात ये है कि वर्ष 2009 तक परियोजना के डी.पी.आर. पर ही 22 करोड़ रु. खर्च हो चुके हैं। केन-बेतवा लिंक परियोजना को आगे बढ़ाने तथा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिये परियोजना को हाथ में लेने हेतु म.प्र. तथा उ.प्र. राज्यों व केंद्र सरकार के बीच इस पर 25 अगस्त 2005 को अंतिम रूप दिया गया। जिस पर म.प्र. व उ.प्र. के सी.एम. बाबूलाल गौड़ व मुलायम सिंह यादव ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किये थे।
तो कहानियों में भी नहीं होगा पानी
Posted on 04 Jun, 2016 04:05 PM

विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष


झाँसी शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर खरेला गाँव है। भीषण गर्मी और तेज धूप के बीच गाँव बेहद शान्त लगता है। खबर थी कि यहाँ के तालाब बुरे हाल में हैं। जब बूँद-बूँद पानी के लिये लोग भटक रहे हों। पानी के लिये संघर्ष बनी हो। पुलिस के पहरे के बीच पानी बँट रहा हो। पानी बिक रहा हो। ऐसे में तालाब जिन्हें भुला दिया गया, काफी प्रासंगिक हो जाते हैं।

इसी प्रसंग के साथ गाँव में घुसने के बाद तालाबों को तलाश करते हैं, लेकिन निगाहों को कामयाबी नहीं मिलती। बातचीत के बीच गाँव के लोग बताते हैं जहाँ हम खड़े थे उसी जगह एक जिन्दा तालाब था। हैरत हुई कि जहाँ हम खड़े थे वहाँ कुछ साल पहले तक 7 बीघा में फैला तालाब हुआ करता था। 7 बीघा के मैदान को देख अन्दाजा लगाना मुश्किल था कि यहाँ कभी तालाब भी फैला हुआ था।
इस मैदान में एक झील दफन है, उसे हमने मारा है
Posted on 30 Apr, 2016 12:56 PM
झील-झरनों का जिक्र ही मन में ठंडक भर देता है। अगर आपने झील-झरनों के सानिध्य में कुछ पल बिताए हैं तो आनन्द के चरम को महसूस भी किया होगा। करीब 5 साल पहले मैंने भी ऐसे ही चरम को महसूस किया। मन काफी समृद्ध महसूस करता था कि झाँसी से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर बरुआसागर कस्बे में एक झील (इसे स्वर्गाश्रम झरना भी कहते हैं) है, जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य, मनोहारी दृश्य का लुत्फ उठा सकते थे। मन होने पर कल-कल बहते झरने में नहा भी सकते थे। 10 से 15 फीट तक इसमें पानी रहता था।

दरअसल, आज जिस मैदान के बीचों-बीच मैं खड़ा हूँ, ये वही झील है, जो बुन्देलखण्ड के सबसे समृद्ध शहर झाँसी के बरुआसागर में है। 237 हेक्टेयर में फैली झील के मैदान में किसान खेती कर रहे हैं। खुरपी, फावड़े से फसल ठीक कर रहे हैं। एक युवक इसमें बने आशियाने में सो रहा है तो कोई इसमें बनाए गए कुओं से गन्दा पानी भर रहा है।
सटीक समय पर बुन्देलखण्ड कार्यशाला
Posted on 19 Feb, 2016 10:14 AM
तिथि : 25-26 फरवरी, 2016
समय : प्रातः 9.30 बजे से सायं 5 बजे तक।
स्थान : इण्डियन ग्रासलैंड एंड फॉडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झाँसी
आयोजक : जन जल जोड़ो अभियान



बुन्देलखण्ड में नई लूट का जो नया दौर आया है, उससे पर्यावरण और विकास की कुछ नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। गौर कीजिए कि आत्महत्या के सबसे ज्यादा आँकड़े उन्हीं जिलों के हैं, जहाँ सबसे ज्यादा खनन है और वन व चारे का संकट भी सबसे ज्यादा है। इन चुनौतियों पर चिन्तन इसलिये भी जरूरी है; चूँकि एक समय आई पी एस अधिकारी नरेन्द्र ने इन्हीं चुनौतियों को चुनौती देने की कोशिश की थी; बदले में उन्हें मौत दे दी गई। जन जल जोड़ो अभियान के संयोजक संजय सिंह द्वारा प्रेषित आमंत्रण पत्र में बुन्देलखण्ड संकट के जिक्र के साथ यह चिन्ता व्यक्त की गई है कि पहले से संकटग्रस्त इलाकों में पानी की कमी, वनों का विध्वंस और कृषि की अनिश्चितता का दौर जारी है। तीन साला अकाल, गैर मौसमी बारिश और ओलावृष्टि के कारण फसलें नष्ट हुईं हैं। ग्रामीण आबादी की आजीविका संकट में पड़ गई है; लिहाजा, आत्महत्या और पलायन के मामले बढ़े हैं। खेत बिना बोए रह गए हैं। पानी का संकट इतना गहरा है कि पेयजल की उपलब्धता भी अब संकट के दायरे में आ गई है।

जो कुछ किया गया, वह अपर्याप्त है। निस्सन्देह, समस्या का ऐसा समाधान हासिल करने की जरूरत है, जिससे बुन्देलखण्ड की पारिस्थितिकी के साथ-साथ स्थानीय आबादी की आजीविका व सम्मान का दीर्घकालिक हासिल सम्भव हो सके। स्पष्ट किया गया है कि जन जल जोड़ो अभियान द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का मुख्य मन्तव्य तत्काल राहत के कदमों की समीक्षा के साथ-साथ, बुन्देलखण्ड की खोई पारिस्थितिकी और ग्रामीण आर्थिकी को वापस हासिल करने के कदम तय करना है।
किसान जितनी मौसम की मार झेल रहे हैं, उतनी ​ही कर्ज की भी : प्रीति चौधरी
Posted on 07 Feb, 2016 12:32 PM


गौरवशाली अतीत से समृद्ध बुन्देलखण्ड की धरती पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से सूखे की चपेट में है। यह धरती अब अपने अतीत की समृद्धि और शौर्यगाथाओं नहीं, बल्कि गरीबी, भुखमरी, कर्ज, पलायन और हर दूसरे दिन किसानों की आत्महत्याओं की कहानी सुनाती है।

अभी पिछले तीन-चार महीनों में ही लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन बुन्देलखण्ड के किसी-न-किसी गाँव से किसान की आत्महत्या की खबर आती रही है और अप्रैल 2003 से मार्च 2015 तक यहाँ के लगभग 3280 किसानों ने आत्महत्या की है।

पिछले साल ओलावृष्टि और फिर सूखा ने हालात और खराब बना दिया। आमतौर पर बुन्देलखण्ड में औसत बारिश 1145.7 मिमी. तक होती है लेकिन पिछले मानसून में यहाँ केवल 643.2 मिमी. बारिश ही दर्ज हुई है और कुछ जिलों में तो केवल 484.1 मिमी. तक।

कराह रहा बुंदेलखंड, सुध लेने वाला कोई नहीं
Posted on 28 Apr, 2014 12:15 PM बुंदेलखंड के इतिहास पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में हर पांच साल में
दम तोड़ रही है बेतवा की धार
Posted on 29 Jul, 2011 09:25 AM

ओरछा अप्रैल। बुंदेलखंड की जीवन रेखा बेतवा नदी की धार दम तोड़ती नजर आ रही है। नदी की धार टूटना शुभ संकेत नहीं है। बुंदेलखंड के लिए यह खतरे की घंटी है। महोबा से ओरछा पहुंचे तो बेतवा को देखकर हैरान रह गए। यही बेतवा हमीरपुर तक बुंदेलखंड में लोगों की जीवन रेखा का काम करती है। सामने बिना पत्तियों वाले पेड़ों का सूखा जंगल है तो दाएं-बाएं सिर्फ बड़े-बड़े पत्थर। कहीं कोई धारा या प्रवाह दिखाई नहीं पड़ता।

बेतवा नदी का धारा अब नल के धार से भी कम है
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